आइस हॉकी! वो खेल जिसके बारे में हमें अक्सर इंटरनेट पर ही देखने और पढ़ने को मिलता है. अब इसी खेल में भारतीय महिला टीम भी अपने जलवे बिखेर रही है. पर्याप्त संसाधन न मिल पाने और तमाम तरह की मुश्किलों के बावजूद इस टीम ने बेहद कम समय में दुनिया की बड़ी टीमों की बैंड बजा दी है. भारतीय ‘महिला आइस हॉकी’ टीम की खास बात ये है कि इसके सभी खिलाड़ी लद्दाख से हैं. 

अब आप सोच रहे होंगे कि सभी खिलाड़ी लद्दाख से क्यों? वो इसलिए कि लद्दाख में हर साल नवंबर से लेकर जनवरी तक बर्फ़ गिरती है. जिस कारण वहां बच्चे ठंड से जम चुके पानी के तालाबों के ऊपर आइस हॉकी की प्रेक्टिस कर लेते हैं. यही कारण है कि भारत के पास भी अपनी ‘महिला आइस हॉकी’ टीम है.

बड़े दुःख की बात है कि इतने बड़े देश में आइस हॉकी खेलने वाले खिलाड़ी ही नहीं हैं और जो हैं भी उनको पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिलती. वो तो शुक्र है कि लद्दाख में बर्फ़ गिरती है इसलिए भारतीय टीम के खिलाड़ी 2 महीने के लिए वहां जमे हुए पानी के तालाबों में प्रेक्टिस कर लेते हैं.

‘लद्दाख विंटर स्पोर्ट्स क्लब’ के मुताबिक़, लद्दाख में हर साल 10,000-12,000 युवा आइस हॉकी खेलते हैं. ये युवा हर साल जनवरी में आयोजित किये जाने वाले ‘नेशनल आइस हॉकी चैम्पियनशिप’ और IHAI (आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया) जैसे प्रमुख टूर्नामेंट्स में खेलते हैं.

लद्दाख में 70 के दशक में शुरू हुई आइस हॉकी

लद्दाख में आइस हॉकी की शुरुआत 1970 के दशक में हुई, जब भारतीय सेना के जवानों ने ब्लेड वाले जूतों की मदद आइस हॉकी खेलना शुरू किया था. इसके बाद यहां के लोगों ने भी इस खेल में दिलचस्पी दिखाई और कुछ ही साल बाद 1972 में यहां पहला आइस हॉकी टूर्नामेंट खेला गया, जबकि 1980 तक यहां के लोगों ने अपनी-अपनी टीमें बना ली थी.

साल 2005 तक खिलाड़ी बिना किसी सुरक्षा के आइस हॉकी खेलते थे जिस कारण कई खिलाड़ियों को गंभीर चोटें भी आती थी, लेकिन साल 2006 के बाद लद्दाख की लोकल अथॉरिटी ने खिलाड़ियों के लिए हेड-गियर और उचित पैड पहनना अनिवार्य कर दिए है.

लद्दाख में कई सालों तक महिलाओं को ये खेल नहीं खेलने दिया गया. साल 2008 में जब महिलाओं को मौका मिला तो उन्होंने हर किसी को ग़लत साबित किया. साल 2013 में ‘लद्दाख विंटर स्पोर्ट्स क्लब’ द्वारा पहली बार महिला आइस हॉकी ‘नेशनल चैंपियनशिप’ आयोजित की गई थी. आज यहां की महिलाएं न सिर्फ़ लद्दाख बल्कि देश का नाम भी रौशन कर रही हैं.

साल 2017 में ‘एशिया कप’ के दौरान जब भारतीय महिला टीम ने अपने दूसरे ही मैच में फ़िलीपीन्स की मज़बूत टीम को 4-3 से पटखनी दी थी तो उस वक़्त पूरा कोचिंग स्टाफ़ रोने लगा था. क्योंकि इतने कम समय में भारतीय टीम ने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की थी. उसके बाद भारत ने मलेशिया जैसी मज़बूत टीम को भी एक रोमांचक मुक़ाबले में 5-4 से हराया था. 

इन खिलाड़ियों को ट्रेनिंग के लिए Ice Rink न मिल पाने के कारण 9 महीने घर पर ही खाली बैठना पड़ता है. जब मौका मिलता है तो किर्गिस्तान, मलेशिया और यूएई में ट्रेनिंग कर पाते हैं, वो भी क्राउड फ़ंडिंग से पैसा इकठ्ठा करने के बाद. पिछले कई सालों से ये खिलाड़ी फ़ेडरेशन और सरकार से मदद मांग चुके हैं लेकिन इस देश में आश्वासन के सिवा कुछ भी नहीं मिलता.

सरकार और नेताओं को खेल की नहीं बल्कि अपने राजनीतिक खेल के बिगड़ने की ज़्यादा परवाह होती है. खिलाड़ियों का क्या है वो मांग करते-करते एक दिन चुप हो जायेंगे, लेकिन इन सब चीज़ों के लिए काफ़ी हद तक हम लोग भी जिम्मेदार हैं, जो क्रिकेट के सिवा किसी अन्य खेल को आगे बढ़ने देना ही नहीं चाहते.