कहतें हैं कि बिना संघर्ष के साथ कुछ नहीं मिलता. ऊपर से आप लड़की हों तो आपका संघर्ष दोगुना हो जाता है. हमारे देश में आज भी लड़कियों को अपने हालातों से लड़ने के साथ ही समाज की दकियानूसी सोच से भी लड़ना होता है. लेकिन जो इन मुश्किलों का डटकर सामना करते हैं उसे उदय होने से कोई नहीं रोक सकता.

bhaskar

राजस्थान के एक छोटे से गांव काबरा की रहने वाली भावना जाट भी उन्हीं में से एक हैं. भावना ने लोगों के ताने सहे, आर्थिक तंगी का सामना किया, दोस्तों से जूते उधार लेकर Racewalking की प्रैक्टिस की और ओलंपिक का टिकट हासिल किया. भावना इन दिनों ‘टोक्यो ओलंपिक 2021’ में इतिहास रचने के लिए पसीना बहा रही हैं.

shethepeople

भावना ने 2009 में Racewalking शुरू की थी. उनके स्कूल के पीटी टीचर ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और इस खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. दिन में गांव में प्रैक्टिस करना मुश्किल था, तो उन्होंने रात के अंधेरे और सुबह तड़के दौड़ना शुरू किया.

thebridge

भावना जाट का ये सफ़र इतना आसान नहीं था. उनके घर के हालात इतने अच्छे नहीं थे कि वो इस खेल की तैयारी कर सके. दूसरा गांव के लोग इतने उदार नहीं थे. वो उन्हें शॉर्ट्स पहनकर प्रैक्टिस नहीं करने देते थे. लोग उन्हें ऐसा करने पर टोकते थे, लेकिन ये दिक्कतें उनके जुनून और जज़्बे को हिला नहीं सकीं. भावना ने प्रैक्टिस जारी रखी और ‘नेशनल गेम्स 2020’ में 20 कि.मी. Racewalking में 1 घंटे 29 मिनट 54 सेकंड का नया रिकॉर्ड बनाया.

scroll

आर्थिक हालात सही नहीं थे तो कई बार टूर्नामेंट में दोस्तों से जूते उधार लेकर दौड़ना पड़ा. भावना को अपने इस पैशन को ज़िंदा रखने के लिए लोन भी लेना पड़ा. घरवालों ने भी उन्हें पूरा सपोर्ट किया. 

newindianexpress

भावना कहती हैं, ‘एक समय ऐसा भी था कि हमें दो वक़्त का खाना भी मुश्किल से मिलता था. हम मिट्‌टी के घर में रहते थे. ऐसे में ओलंपिक में चुना जाना बहुत बड़ी बात है. पिता और भाई ने भी मुझ पर भरोसा किया.’ 

bhaskar

भावना ने भी अपने घरवालों को कभी निराश नहीं किया. वो पिछले साल मार्च से बेंगलुरू के ‘साई सेंटर’ में ट्रेनिंग ले रही हैं. वो लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार कर रही हैं. भावना से ओलंपिक में मेडल जीत सकती हैं, क्योंकि वो ट्रेनिंग में कई बार 1 घंटे 28 मिनट 4 सेकंड का समय निकाल चुकी हैं. ये रियो ओलंपिक की ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट के समय के बराबर है.