साइखोम मीराबाई चानू (Saikhom Mirabai Chanu) ने टोक्यो ओलंपिक(Tokyo Olympics) में भारत के लिए पहला मेडल जीत कर इतिहास रचा. उन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 में वेटलिफ़्टिंग में भारत के लिए पहला सिल्वर मेडल जीता. मणिपुर के पूर्वी इंफाल ज़िले की रहने वाली मीराबाई चानू ने 49 किलोग्राम महिला वर्ग के इवेंट में ये कीर्तिमान रचा. वो टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई करने वाली पहली और एकमात्र भारतीय वेटलिफ़्टर भी हैं.
यहां तक पहुंचने के लिए मीराबाई चानू ने जी तोड़ मेहनत की है. चलिए जानते हैं मीराबाई चानू की संघर्ष भरी कहानी जो दूसरे लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं.
ये भी पढ़ें: ओलंपिक के लिए प्रैक्टिस करते एथलीट्स की 24 फ़ोटोज़ कह रही हैं कि मेडल के लिए बस जीतोड़ मेहनत चाहिए
बचपन में आसानी से उठा लेती थीं भारी सामान
मीराबाई चानू की कहानी की शुरुआत होती है आज से 14 साल पहले जब वो 12 वर्ष की थीं. वो अपने भाई सैखोम सनातोम्बा के साथ जंगल में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां लेने जाया करती थीं. जंगल में एक दिन भाई ने बहुत सारी लकड़ियां काट ली और उसका गट्ठर बना लिया. मगर वो उसे उठा न सके, भाई को परेशान देख चानू ने लकड़ी के गट्ठर को उठाया और उसके साथ आराम से घर चली आईं.
ये भी पढ़ें: इन 18 फ़ोटोज़ में देखिए ओलंपिक गेम्स ख़त्म होने के बाद आयोजन स्थलों का क्या हाल होता है
घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी
मीराबाई चानू का घर मणिपुर की राजधानी इंफाल में पहाड़ों पर हैं, यहां से जंगलों का रास्ता भी दुर्गम है. ऐसे में चानू का आसानी से लकड़ियों को उठाकर आते देख सब हैरान रह गए. चानू के पिता एक मज़दूर हैं और उनकी माता घर चलाने के लिए एक छोटी सी चाय की दुकान चलाती हैं. 6 भाई-बहनों में वो सबसे छोटी हैं.
साइकिल से जाती थीं प्रैक्टिस करने
इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. मीराबाई चानू ने ओलंपिक तक का सफ़र अपने दम पर तय किया है. उनके भाई सनातोम्बा बताते हैं कि घरवालों ने उनकी बहुत कम ही आर्थिक मदद की है. वो तो चानू का जज़्बा था कि वो यहां तक पहुंची है. परिवार तो उनकी डाइट तक को सपोर्ट करने में सक्षम नहीं था. चानू 40 किलोमीटर तक इंफाल कभी साइकिल या फिर कभी रेत के ट्रक में लिफ़्ट लेकर प्रैक्टिस करने जाया करती थीं.
पहले बनना चाहती थीं तीरअंदाज
उनके कोच/गुरुओं ने भी चानू की बहुत मदद की है. कई बार तो चानू को भूरे चावल खाकर ही गुज़ारा करना पड़ता था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वैसे मीराबाई चानू पहले वेटलिफ़्टर नहीं बल्कि एक तीरंदाज बनाना चाहती थीं. वो जब इंफाल के साई(Sports Authority Of India) के सेंटर में गई थीं तो तब उन्हें तीरंदाजी का कोई कोच नहीं मिला. तब पास में ही मणिपुर की वेटलिफ़्टर कुंजारानी देवी, जो विश्व चैंपियनशिप में सात बार की रजत पदक विजेता थीं उनके वीडियो देखे. तब उनसे प्रेरित होकर चानू ने वेटलिफ़्टर बनना तय किया.
जीते हैं कई मेडल
अब दिक्कत ये थी कि अकेले मीराबाई चानू को इंफाल भेजने के लिए घरवाले तैयार नहीं थे. तक कोच अनीता चानू ने उनके परिवार वालों को समझाया था, तब जाकर मीराबाई चानू की ट्रेनिंग शुरू हुई थी. इसके बाद मीराबाई चानू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने पहले स्टेट लेवल पर सब-जूनियर कैटेगरी में गोल्ड जीता और 2011 में नेशनल लेवल पर वेटलिफ़्टिंग में गोल्ड जीता. फिर उन्हें अपनी आइडल कुंजारानी देवी से ट्रेनिंग लेने का मौक़ा मिला. उनकी ट्रेनिंग में चानू ने 2014 में ग्लासगो में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीता था.
भारत सरकार ने पद्मश्री देकर किया सम्मानित
#PresidentKovind confers the Rajiv Gandhi Khel Ratna Award 2018 upon Ms Saikhom Mirabai Chanu in recognition of her outstanding achievements in Weightlifting
— President of India (@rashtrapatibhvn) September 25, 2018
•Gold Medal in CWG 2018
•Gold medal in IWF World championship 2017
•Silver medal in CWG 2014 pic.twitter.com/ywsFVwukl4
2016 के रियो ओलंपिक में वो पदक जीतने से चूक गई थीं. इससे वो ख़ासी निराश भी हुई थीं, लेकिन मीराबाई चानू अपनी हार से सबक लेते हुए नए सिरे से ट्रेनिंग की और टोक्यो ओलंपिक में इतिहास रच दिया. मीराबाई चानू को भारत के सर्वोच्च नागरिक खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है और 2018 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री देकर सम्मानित किया था.
मीराबाई चानू देश के नौजवानों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं.