हाल ही में इंडोनिशिया की राजधानी जकार्ता में आयोजित हुए ‘पैरा एशियन गेम्स’ में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बेहद शानदार रहा. इस प्रतियोगिता में भारतीय खिलाड़ियों ने कुल 36 मेडल जीते, इसमें 7 गोल्ड, 13 सिल्वर, 16 ब्रोंज़ मेडल थे. भारत के लिए गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ियों में एक ऐसे खिलाड़ी भी थे, जिन्होंने कठिन परिस्तिथियों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को मेडल दिलाया.

हम बात कर रहे हैं पैरा एथलीट नारायण ठाकुर की, जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर ‘पैरा एशियन गेम्स’ में पुरुषों की 100 मीटर T35 स्पर्धा में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया. उन्होंने लगभग असंभव सी लगने वाली इस उपलब्धि को हासिल कर दुनियाभर में ये संदेश दिया कि अगर कुछ कर गुज़रने की चाहत हो, तो दुनिया की कोई भी ताक़त आपको नहीं रोक सकती है. नारायण की ज़िंदगी हर किसी के लिए प्रेरणादायक है.

मूलरूप से बिहार निवासी नारायण ठाकुर के पिता कई साल पहले रोज़गार की तलाश में दिल्ली आए थे. दिल्ली आने के कुछ वर्षों बाद नारायण के पिता की ब्रेन ट्यूमर के चलते मौत हो गयी. पिता की मौत के बाद जन्म से ही दिव्यांग नारायण की मां के लिए तीन बच्चों का पालन पोषण करना मुश्किल हो गया था. जिस कारण मां ने नारायण को दरियागंज के एक अनाथालय में भेज दिया, जहां उसे दो वक़्त का खाना और पढ़ने को मिल जाता था.
शरीर का एक हिस्सा लकवे से ग्रस्त है

नारायण के शरीर का बांया हिस्सा ‘हेमी पैरेसिस’ बीमारी से ग्रस्त है. ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें दिमाग़ में स्ट्रोक लगने के कारण शरीर का एक हिस्सा लकवा ग्रस्त हो जाता है. पर नारायण ने विषम परिस्थितियों और शारीरिक अक्षमता को कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया.
नारायण को बचपन से ही पसंद है क्रिकेट

पैरा एथलीट नारायण बचपन से ही खेल के शौक़ीन रहे हैं. आज भी क्रिकेट उनका पहला प्यार है, लेकिन किन्हीं कारणों से वो क्रिकेट नहीं खेल सके. उन्होंने खेल के कारण ही 2010 में अनाथालय छोड़ दिया था. इस दौरान उन्होंने पेट भरने के लिए डीटीसी बसों में सफ़ाई से लेकर सड़क किनारे ठेलों पर भी काम किया. मगर उन्होंने खेलों के प्रति अपनी दीवानगी को हमेशा बरकरार रखा.
नारायण ठाकुर ने बताया, ‘वो समय बेहद कठिन था जब समयपुर बादली की उन झोपड़ियों को तोड़ दिया गया, जहां मेरा परिवार रहता था. हमारे पास वहां से जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था. उस समय आर्थिक हालात भी ठीक नहीं थे. ऐसे में खेल के लिए समय दे पाना मुश्किल हो रहा था.
कुछ इस तरह बदल गई ज़िंदगी

नारायण की ज़िंदगी में उस वक़्त बड़ा बदलाव आया जब किसी ने उन्हें जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रैक्टिस करने की सलाह दी. उस वक़्त उनके पास घर से स्टेडियम तक जाने के पैसे भी नहीं थे. समयपुर बादली से लोधी रोड स्थित जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम तक पहुंचने के लिए उन्हें तीन बसें बदलनी पड़ती थीं. जिसके लिए उन्हें हर दिन कम से कम 60 से 70 रुपये किराये पर ख़र्च करने पड़ते थे. कुछ दिन आने के बाद पैसों के अभाव में उन्होंने प्रैक्टिस पर आना बंद कर दिया.

इसके कुछ समय बाद वो अपने परिवार के साथ त्यागराज स्टेडियम के पास ही झुग्गियों में रहने लगे, ताकि वहां रहकर अपने खेल को निखार सकें. कुछ साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद नारायण ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने शानदार प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया. इसके बाद ही उन्हें जकार्ता में आयोजित ‘पैरा एशियन गेम्स’ का हिस्सा बनाया गया.

इस शानदार प्रदर्शन के बाद नारायण कहते हैं, ‘मैं देश के लिए जकार्ता में गोल्ड जीतकर काफ़ी ख़ुश हूं. ‘पैरा एशियन गेम्स’ या एशियाड में 100 मीटर में गोल्ड जीतने वाला इकलौता भारतीय हूं’

नारायण ने कहा, ‘मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने पुरस्कार वितरण कार्यक्रम के दौरान 40 लाख रुपये का चेक दिया है. साथ ही मुझे दिल्ली सरकार से भी कुछ आर्थिक मदद की उम्मीद है’.

जब उनसे पूछा गया कि वो इस रकम का क्या करेंगे, तो इस पर उनका जवाब था कि सबसे पहले अपने परिवार के लिए एक घर बनाऊंगा और बाकी अपनी ट्रेनिंग पर ख़र्च करूंगा.’
Meet my friend Narayan Thakur. He clinched the Gold medal in Men’s 100M T35 event at the Asian ParaGames 2018 held in Indonesia. The entire country is proud of this achievement. Wishing him the very best for his future endeavours. pic.twitter.com/gNPe4NJBKy
— Narendra Modi (@narendramodi) October 16, 2018
‘पैरा एशियन गेम्स’ में गोल्ड जीतने के बाद भी फिलहाल नारायण ठाकुर के पास कोई नौकरी नहीं है. वो अपनी मां को मदद करने के लिए पान/गुटखा की दुकान चलाते हैं. हालांकि, उन्हें अब उम्मीद है कि उनका जीवन बदलेगा.