भारत में क्रिकेट, हॉकी, फ़ुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन, कुश्ती, बॉक्सिंग जैसे कई अन्य खेल जाते हैं. लेकिन क्रिकेट को ही सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाता है.

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एक ओर क्रिकेट मैदान ख़चाख़च भरे होते हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय फ़ुटबॉल कप्तान को दर्शकों से अपील करनी पड़ती है कि वो मैदान पर उनका मैच देखने आएं. ऐसा नहीं है कि भारत में क्रिकेट के अलावा किसी अन्य खेल में टेलेंटेड खिलाड़ी नहीं है. रेसलिंग, बॉक्सिंग, बैडमिंटन और कबड्डी कुछ ऐसे खेल हैं जिनके हम वर्ल्ड चैंपियन हैं. अगर इन खेलों की ओर भी बराबर ध्यान दिया जाये तो ओलिंपिक और कॉमनवेल्थ जैसे बड़े मंचों पर मेडल की संख्या बढ़ सकती है. हमारे पास आज मैरीकॉम, सुशील कुमार, विजेंद्र सिंह, साइना नेहवाल और पीवी सिंधु वर्ल्ड चैंपियन खिलाड़ी मौजूद हैं. 

आइये अब जानते हैं कि भारत में कब-कब और किन खेलों और खिलाड़ियों को अच्छे प्रदर्शन के बावजूद नज़रअंदाज़ कर किया गया है:

1. 13 साल के लंबे अंतराल के बाद बने हॉकी एशिया कप के विजेता

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साल 2017 में भारतीय महिला हॉकी टीम ने 13 साल के लंबे अंतराल के बाद हॉकी एशिया कप के विजेता का ख़िताब अपने नाम किया था. रानी रामपाल के नेतृत्व में भारतीय टीम ने जापान में खेले गए इस टूर्नामेंट में एक भी मैच नहीं हारा. इस शानदार जीत के बावजूद भारतीय हॉकी टीम की नायिकाओं का जिस ज़ोरदार तरीके से स्वागत होना चाहिए था वैसा हुआ नहीं. भारत ने इससे पहले 2004 में नई दिल्ली में महिला हॉकी एशिया कप जीता था.

2. भारतीय महिला क्रिकेट टीम को नहीं दिया जाता ज़्यादा महत्व 

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भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अपना पहला टेस्ट मैच 31 अक्टूबर 1978 को खेला था. लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी महिला क्रिकेट को वो पहचान नहीं मिल पाई, जो पिछले 2 साल में मिली है. वो भी इसलिए कि भारतीय महिला टीम 2017 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में पहुंची थी. इस वर्ल्ड कप के सभी मैचों का टीवी पर प्रसारण किया गया था. इतने सालों से पुरुष क्रिकेट की छोटी सी छोटी सीरीज़ का टीवी पर प्रसारण किया जाता है, लेकिन महिला क्रिकेट का क्यों नहीं?

3. तीरंदाज़ी टीम का स्वदेश लौटने पर हुआ फ़ीका स्वागत 

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साल 2013 में पोलैंड में संपन्न हुए विश्वकप के चौथे चरण में स्वर्ण पदक जीतकर देश को गौरवान्वित करने वाली महिला तीरंदाज़ी टीम का स्वदेश लौटने पर बेहद फ़ीका स्वागत हुआ. दीपिका कुमारी, एल. बोम्बायला देवी और रिमिल बुरुली की रिकर्व टीम का स्वागत करने के लिए इंदिरा गांधी हवाइअड्डे पर कोई शीर्ष अधिकारी मौजूद नहीं था जिससे सभी तीरंदाज़ों को काफ़ी निराश हुई थी.

4. शतरंज में विश्व विजेता का ख़िताब जीत कर लौटे, नहीं मिला कोई सम्मान

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साल 2007 में T-20 विश्व कप जीत कर स्वदेश लौटी भारतीय क्रिकेट टीम का स्वागत बहुत जोरदार किया गया था. लेकिन कुछ समय बाद शतरंज में विश्व विजेता का ख़िताब जीत कर लौटे खिलाड़ियों का उतना ही फ़ीका स्वागत हुआ. जबकि उस टीम में भारतीय सुपरस्टार और वर्ल्ड चैंपियन ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद भी थे.

5. भारतीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 3-1 से दी थी मात

साल 2014, इंडियन हॉकी टीम के खिलाड़‍ियों का देश वापसी पर अत्‍यंत ही फ़ीके अंदाज में स्‍वागत किया गया. गौरतलब है कि भारतीय हॉकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया में चार मैचों की सीरीज़ में विश्‍वचैंपियन ऑस्ट्रेलिया को 3-1 से मात दी थी. इसके बावजूद भारतीय खिलाड़‍ियों के स्‍वागत के लिए कोई ख़ास इंतज़ाम नहीं किये गए. लेकिन जब भी इंडियन क्रिकेट टीम कोई सीरीज़ जीतकर देश वापस आती है, तो टीम के स्वागत के लिए बैंड-बाजे का इंतजाम होना आम बात है.

6. पुरुष खिलाड़ियों के मुक़ाबले महिला खिलाड़ियों को दिया जाता है बेहद कम पैसा

भारतीय खेल इतिहास में हमेशा से यही होता आया है कि पुरुष खिलाड़ियों के मुक़ाबले महिला खिलाड़ियों को बेहद कम पैसा दिया जाता है. जबकि दोनों बराबर मेहनत करते हैं और देश के लिए खेलते हैं. पुरुष क्रिकेट खिलाड़ियों को सालाना 7 करोड़, तो महिला खिलाड़ियों को मात्र 50 लाख सालाना दिया जाता है. आखिर इतना भारी अंतर क्यों? ये अंतर सिर्फ़ क्रिकेट में ही नहीं अन्य खेलों में भी देखा जाता है. ओलंपिक हो या कॉमनवेल्थ में गोल्ड, सिल्वर और ब्रोंज़ जीतने वाले महिला-पुरुष खिलाड़ियों के बीच भी इनामी राशि में अंतर होता है. लेकिन ये परम्परा पिछले कुछ सालों में कम हुई है.

7. इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में अच्छे प्रदर्शन के बाद भी महिला खिलाड़ियों को नहीं मिलता सम्मान

साल 1998, बैंकाक में हुए एशियाई खेलों में भारतीय महिलाओं ने 27 पदक जीत कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था. इसके बाद इंचियोन एशियाई खेलों में 57 पदक जीत कर ये साबित कर दिया कि वो किसी से कम नहीं हैं. बावजूद इसके प्रोत्साहन के तौर पर महिला खिलाड़ियों को कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे उनका जीवनयापन अच्छे से हो पाए.

8. सरकारी महकमों में क्रिकेटरों को ही क्यों दी जाती है नौकरी?

भारत में लोगों को क्रिकेट से इतना ज़्यादा लगाव है कि लोग ओलंपिक और कॉमनवेल्थ में गोल्ड, सिल्वर और ब्रोंज़ जीतने वाले चैंपियंस के नाम तक नहीं जानते. अक्सर ख़बरों में सुनने को मिलता है कि फलाना इंटरनेशनल चैंपियन बेरोज़गार है, नेशनल चैंपियन मज़दूरी करके पेट पाल रहा है. लेकिन क्रिकेटर को हर सरकारी और निजी संस्थान खेल से पहले और बाद अपने साथ जोड़ लेती है. जो क्रिकेटर खिलाड़ी पहले से ही करोड़ों कमा चुके होते हैं उन्हें आर्मी, एयरफ़ोर्स और पुलिस जैसे सरकारी महकमों में अच्छे पद पर नियुक्ति दी जाती है. लेकिन ओलंपिक हो या कॉमनवेल्थ चैंपियंस को कुछ भी नहीं.

न तो भारतीय खेल प्रेमी, न ही स्पोर्ट्स अथॉरिटी पुरुष क्रिकेट के अलावा किसी अन्य खेल को बढ़वा देते हैं. बात यहीं पर ख़तम नहीं होती, चाहे खेल कोई भी हो जब बात मेहनताने की होती है, तो भारत में पुरुष खिलाड़ियों के मुक़ाबले महिला खिलाड़ियों को बेहद कम पैसा दिया जाता है. भारत में पुरुष क्रिकेट को छोड़ दें तो अन्य सभी खेलों की हालत आज भी पहले जैसी ही है. वो तो शुक्र है पिछले कुछ समय में खिलाड़ियों की ज़िन्दगी पर फ़िल्में बननी शुरू हो गयी हैं. इससे पहले तो भारतीय खेल प्रेमी वर्ल्ड चैंपियन बॉक्सर मैरीकॉम का नाम भी नहीं जानते थे. मिल्खा सिंह कौन हैं ये भी नहीं मालूम था. आख़िर भारत में अन्य खेलों के साथ इतना भेदभाव क्यों होता है?