रणजीत सिंह को भारत का पहला क्रिकेटर कहा जाता है. इनका जन्म गुजरात के नवानगर में हुआ था. रणजीत सिंह को बचपन में क्रिकेट के प्रति कोई ज्यादा रूचि नहीं थी क्योंकि उन्हें टेनिस खेलना पसंद था. इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान क्रिकेट के प्रति लोगों के प्यार को देखते हुए उन्होंने क्रिकेटर बनने की ठान ली.
उस वक़्त इंग्लैंड में Susex Cricket Club काफ़ी नामी क्लब था. ग्रेजुएशन के बाद रणजीत सिंह ने Susex के लिए क्रिकेट खेलना शुरू किया. उस समय किसको पता था कि भारत में भी एक ऐसा क्रिकेटर जन्म लेगा, जो आगे चलकर देश का नाम रौशन करेगा.
विदेशी क्रिकेट क्लब में पहले भारतीय कप्तान
रणजीत सिंह ने Susex के लिए चार साल तक कप्तानी भी की. प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड काफ़ी अच्छा रहा. उन्होंने 307 प्रथम श्रेणी मैच खेलते हुए क़रीब 56 के शानदार औसत से 24,692 रन बनाए, जिसमें 72 शतक और 109 अर्धशतक शामिल हैं.
पहले भारतीय के रूप में इंग्लैंड टीम में हुआ चयन
रणजीत सिंह भारत के पहले क्रिकेटर थे, जिन्होंने इंग्लैंड की तरफ़ से अपना क्रिकेट करियर शुरू किया. साल 1896 में जब रणजीत सिंह का चयन इंग्लैंड की टीम में हुआ था, तो इस पर काफ़ी विवाद हुआ था. इंग्लैंड के क्रिकेटर लार्ड हारिस का कहना था कि रणजीत सिंह का जन्म इंग्लैंड में नहीं हुआ है इसलिए इंग्लैंड की टीम में उनका चयन नहीं होना चाहिए.
बावजूद इसके ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ रणजीत का चयन हुआ. पहले टेस्ट मैच में रणजीत को मौक़ा नहीं मिला था, लेकिन मैनचेस्टर में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच में रणजीत को खेलने का मौक़ा मिला. पहली पारी में रणजीत सिंह ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 62 रन बनाए, वहीं दूसरी पारी में उन्होंने धमाकेदार बल्लेबाज़ी करते हुए 23 चौकों की मदद से 154 रन की नाबाद पारी खेली.
इसके साथ ही रणजीत सिंह दुनिया के ऐसे पहले क्रिकेटर बने जिन्होंने अपने पहले टेस्ट मैच की पहली पारी में अर्धशतक और दूसरी पारी में शतक मारने का रिकॉर्ड बनाया. सिर्फ़ इतना ही नहीं, वो पहले टेस्ट खिलाड़ी थे, जो अपने करियर के पहले टेस्ट मैच में शतक बनाने के साथ ही नाबाद भी रहे.
रणजीत सिंह ने अपने पूरे करियर के दौरान इंग्लैंड के लिए 15 टेस्ट मैच खेले. इस दौरान उन्होंने 44.96 के औसत से 989 रन बनाए. ख़ास बात ये रही कि उन्होंने ये सभी मैच ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ही खेले. उन्होंने अपने क्रिकेट करियर का पहला और आख़िरी मैच ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफ़र्ड मैदान पर खेला था. वो अपने आख़िरी मैच की दोनों परियों में कुल 6 रन ही बना पाए थे.
रणजीत सिंह के नाम से ‘रणजी ट्रॉफ़ी’
साल 1904 में रणजीत सिंह भारत वापस लौट आए. इस दौरान उन्होंने भारत में क्रिकेट का विस्तार किया. रणजीत को क्रिकेट के प्रति इतना प्यार था कि वो 48 साल के उम्र में भी भारत के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना चाहते थे. साल 1907 में रणजीत नवानगर के महाराजा बने. साल 1934 में रणजीत सिंह के नाम पर भारत ने ‘रणजी ट्रॉफ़ी’ शुरू हुई.