तारीख थी 20 जनवरी, साल था 1987. क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया(CCI) के गोल्डन जुबली के मौके पर भारत-पाकिस्तान के बीच मुंबई के Brabourne Stadium में एग्ज़िबिशन मैच होने वाला था. आगे की कहानी उस खिलाड़ी के बारे में, जिसे क्रिकेट के भगवान का दर्जा प्राप्त है और जो भारतीयों के दिलों पर राज करने से पहले पाकिस्तान की तरफ़ से मैच खेला था.  

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40 ओवर वाला ये मैच, पांच टेस्ट मैच वाली सीरीज़ के पहले खेला गया था. ये टेस्ट सीरीज़ सुनिल गावास्कर की आखिरी टेस्ट सीरीज़ थी. सचिन तेंदुलकर के तब चौदह साल के होने में भी 3 महीने कम थे.  

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सचिन के बचपन के दोस्त और रिटायर्ड अंपायर Marcus Couto बताते हैं, ‘पाकिस्तान के कुछ खिलाड़ी आराम के लिए होटल गए हुए थे. पाकिस्तान के कप्तान इमरान खान ने CCI के कप्तान हेमंत से कहा कि उन्हें फ़ील्डिंग के लिए कुछ 3-4 खिलाड़ी चाहिए. उस वक्त दो नौजवान खिलाड़ी उपलब्ध थे- सचिन तेंदुलकर और Khushru Vasania.  

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‘सचिन ने हेमंत को देखा और मराठी में पूछा ‘मी जाउं का? (मैं जाउं क्या)?’ इससे पहले हेमंत सिर हिलाते, सचिन सब्स्टिट्युट खिलाड़ी के तौर पर फ़ील्ड में पहुंच चुके थे. मैच अपने अंतिम पड़ाव पर था, सचिन लगभग 25 मिनट तक मैदान पर थे.’  

-Marcu Couto

सचिन को बाउंड्री के पास फ़ील्डिंग मिली थी और वो काफ़ी निराश थे क्योंकि उन्होंने सिर के ऊपर से जाती गेंद को नहीं लपका था.  

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भारतीय तेज़ गेंदबाज़ भरत अरुण याद करके बताते हैं कि उन्होंने सुन रखा था कि पाकिस्तान के लिए एक टैलेंटेड सब्स्टिट्युट खिलाड़ी खेल रहा है, ‘ईमानदारीपूर्वक बताऊं तो, हमें नहीं पता था कि वो खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर है. हमें बाद में पता चला कि वो सचिन था. जो काफ़ी प्रतिभावान है.’  

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Couto भी यादों को खंगाल कर बताते हैं कि मैच के बाद जब वो लोकल ट्रेन से घर वापस लौट रहे थे, तो सचिन काफ़ी उदास थे क्योंकि उन्होंने बाउंड्री के पास कैच नहीं पकड़ा था. सचिन अपना किट बैग लिए दादर स्टेशन से शांतिपूर्वक उतर गया.