Shooter Divyansh Panwar Inspiring Story: चीन के हांगझोऊ में एशियन गेम्स चल रहे हैं. सोमवार को राइफ़ल टीम इवेंट में दिव्यांश सिंह पंवार, ऐश्वर्य प्रताप सिंह और रुद्रांक्ष पाटिल ने 1893.7 स्कोर कर गोल्ड मेडल (Gold In Asian Games) हासिल किया है. इस शानदार टीम का हिस्सा बने दिव्यांश कभी लकड़ी की बंदूक से शूटिंग प्रैक्टिस करते थे. एक वक़्त ऐसा भी था, जब वो PUBG जैसे गेम के लती हो गए. जीवन में ऐसी उथल-पुथल मची कि उन्हें सब कुछ छोड़ कर शांति के लिए विपश्यना जाना पड़ा.

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आइए जानते हैं एशियन गेम्स में भारत का नाम रौशन करने वाले दिव्यांश सिंह पंवार की कहानी-

लकड़ी की राइफ़ल से की शूटिंग प्रैक्टिस

दिव्यांश के पिता अशोक पंवार जयपुर के सवाई मान सिंह मेडिकल कॉलेज में सुपर स्पेशलिटी विंग में गैस्ट्रोलॉजी इंचार्ज हैं. वहीं, मां निर्मला देवी भी नर्स हैं. दिव्यांश को शुरू से ही खेलने का शौक़ था. वो अपनी छत पर बचपन में प्लास्टिक की बंदूक से टारगेट प्रैक्टिस करते थे.

जब वो 7वीं क्लास में थे, तब उन्हें और उनकी बहन को 2014 में कोच कुलदीप शर्मा के पास भेजा गया. यहां जगतपुरा शूटिंग रेंज में उन्होंने प्रैक्टिस स्टार्ट कर दी. कोच ने उनके पिता को बोला कि फ़िलहाल इन्हें लकड़ी की राइफ़ल दिलवा दीजिए. इनका खेलने का शौक़ पूरा हो जाएगा और इनकी क्षमता भी पता चल जाएगी.

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हालांकि, एक ही महीने में दिव्यांश ने कोच को इम्प्रेस कर दिया और फिर एक जर्मन मेड इलेक्ट्रिक राइफ़ल मंगवाई गई. महज़ 7 महीने बाद ही राजस्थान स्टेट चैंपियनशिप हुई, जिसमें उन्होंने गोल्ड हासिल किया.

13 साल की उम्र में लगी PUBG की लत

दिव्यांश का फ़ोकस शूटिंग से हट कर PUBG पर आ गया. वो महज़ 13 साल की उम्र में दिन भर मोबाइल फ़ोन में ही लगे रहते थे. पिता का फ़ोन लेकर वो इधर-उधर गेम खेलते थे.

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PUBG खेलने के लिए वो अपने पिता से झूठ भी बोलते थे. जब भी वो दिव्यांश से पूछते कि क्या कर रहे हो, तो वो कह देते कि प्रैक्टिस कर रहा हूं. हालांकि, दिव्यांश का ये झूठ पकड़ा गया. दरअसल, अशोक पंवार का भतीजा भी एक दिन अपने फ़ोन पर PUBG खेल रहा था. उन्होंने पूछा कि तुम भी शूटिंग की प्रैक्टिस करते हो, तो उसने कहा नहीं, गेम खेल रहा हूं. उसके बाद दिव्यांश को काफ़ी डांट सुननी पड़ी. इसके बाद दिव्यांश को जयपुर से दिल्ली ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया.

विपश्यना और गीता से मिली हिम्मत

दिव्यांश की PUBG की लत तो छूट गई, मगर अभी उन्हें ज़िंदगी के कड़वे अनुभवों का भी अनुभव करना था. 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद टोक्यो ओलंपिक से उन्हें काफ़ी उम्मीदें थीं. मगर उन्हें सफलता नहीं मिली. इस वजह से वो काफ़ी टूट गए. वो इस सदमे को भूल नहीं पा रहे थे. हर वक़्त वो परेशान रहते. उनका ध्यान किसी चीज़ में नहीं लगता. ऐसे में उन्हें विपश्यना के लिए हरिद्वार भेजा गया.

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विपश्यना में उन्हें संभलने और दिमाग़ को शांत करने का मौक़ा मिला. उनकी ज़िंदगी में लय दोबारा लौट आई. उनके अंदर पुरानी असफलताएं भूल कर नए कीर्तिमान हासिल करने की ऊर्जा पैदा हुई.

गीता ने भी दिव्यांश का हौसला बढ़ाया. वो हर रोज़ गीता पढ़ते हैं. शूटिंग प्रैक्टिस के दौरान जब भी उन्हें समय मिलता है, वो गीता पढ़ने लगते हैं. वो पॉकेट गीता हमेशा अपने पास रखते हैं.

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