भारत में क्रिकेट का जुनून कुछ अलग ही होता है. ऐसा जुनून कि लोग एक दूसरे से लड़ने-भिड़ने तक को भी तैयार हो जाते हैं. लेकिन ऐसे लड़ने का क्या फ़ायदा, जिसका कोई मतलब ही ना हो. विपरीत परिस्तिथियों से लड़कर जब कोई इंसान किसी लड़ाई को जीतता है, तो उसका मज़ा ही कुछ और होता है. ऐसी ही एक लड़ाई लड़ी थी भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट के स्टार खिलाड़ी दीपक मलिक ने. कुछ क्रिकेट प्रेमियों ने तो ये नाम आज पहली बार सुना होगा.
स्कूली क्रिकेट से अंतरराष्ट्रीय ब्लाइंड क्रिकेट तक अपनी छाप छोड़ने वाले सोनीपत के भैंसवाल कलां गांव के दीपक मलिक वनडे में सबसे तेज़ हाफ़ सेंचुरी सहित कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं. टीम इंडिया में जितने बड़े स्टार विराट कोहली हैं, भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट में दीपक मलिक भी उतने ही बड़े स्टार हैं. एक खिलाड़ी के तौर पर दोनों में फ़र्क बस इतना सा है कि विराट को दुनियाभर के क्रिकेट प्रेमी जानते हैं, जबकि दीपक को कुछ ही लोग जानते हैं.
एक कहावत है अगर दिल में कुछ कर गुज़रने का जुनून हो, तो मंज़िल आसान हो जाती है. दीपक ने भी जुनून, साहस और दृढ़निश्चय की ऐसी ही मिसाल कायम की है. दरअसल साल 2004 में दीवाली के दिन एक हादसे में दीपक ने अपने दोनों आंखों की रौशनी खो दी. डॉक्टर ने उनके परिवार को बता दिया था कि अब उनका बेटा दीपक छह मीटर तक ही मुश्किल से देख पाएगा. ट्रक ड्राइवर पिता पैसे के अभाव में किसी अच्छे हॉस्पिटल में बेटे का इलाज नहीं करा सके और दीपक इस हादसे के बाद गहरे सदमे में चला गया, लेकिन उसके सपने जिंदा रहे. करीब चार साल बाद गांव के जिस स्कूल में वह पढ़ने जाता था, वहीं के एक शिक्षक ने दिल्ली के ब्लाइंड स्कूल के बारे में बताया और पिता ने दीपक का वहां दाखिला करा दिया. यहां से शुरू हुई दीपक के संघर्ष की कहानी.
पहली बार दृष्टिहीनों को क्रिकेट खेलते हुए देखा
दीपक बताते हैं कि जब वो ब्लाइंड स्कूल गए तो देखा कि वहां नेत्रहीन बच्चे भी क्रिकेट खेल रहे हैं. उनके मन में भी फिर से क्रिकेट खेलने की इच्छा जाग उठी. स्कूल के ही एक टीचर से पूछा कि क्या दृष्टिहीन बच्चे भी देश के लिए खेल सकते हैं? टीचर की उस हां की वजह से उसने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया और कुछ समय बाद ही दीपक स्कूल की टीम में सलेक्ट भी हो गया.
लगातार प्रैक्टिस से बन पाया बेहतर खिलाड़ी
दीपक ने बताया कि स्कूल की टीम में सलेक्ट होने के साथ ही उसने क्रिकेट के अपने इस जुनून को दोगुना कर दिया. जब रात में स्कूल के सभी बच्चे सो जाते थे, तो वो अकेले दीवार पर बॉल मारकर प्रैक्टिस किया करता था और ग्राउंड पर भी अकेला ही खेला करता था. इस लगन को देखकर सभी उसकी हौसला अफ़ज़ाई करते थे. साल 2009 -10 में स्कूल की टीम बनाई और वर्ष 2012 में हरियाणा की टीम से खेलने का मौका मिल गया, फिर 2013 में नेशनल टीम में जगह पक्की की.
वर्ल्ड कप, टी-20 व एशिया कप में टीम को बना चुके हैं चैंपियन
भारतीय ब्लाइंड क्रिकेट में दीपक इस समय एक बड़ा नाम बन चुके हैं. वर्ल्ड कप 2018 में भारत को वर्ल्ड चैंपियन बनाने में दीपक ने अहम योगदान दिया. इसके अलावा दीपक ने टीम को एशिया चैंपियन और टी-20 चैंपियन बनाने में भी अहम योगदान दिया. जनवरी में खेले गए वर्ल्ड कप में दीपक एक बार भी आउट नहीं हुए और फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नाबाद 179 रनों की पारी खेलकर भारत को चैंपियन बनाया. उनको शानदार बल्लेबाज़ी के लिए मैन ऑफ़ द सीरीज़ से भी नवाजा गया. दीपक को 2014 के वर्ल्ड कप में भी बेस्ट प्लेयर का अवार्ड मिल चुका है.
वनडे में सबसे तेज़ हाफ़ सेंचुरी का रिकार्ड
दीपक मलिक ने बताया नवंबर 2014 में साउथ अफ्रीका के केपटाउन में हुए वर्ल्ड कप में टीम इंडिया की ओर से खेलते हुए उन्होंने वनडे का सबसे तेज़ अर्धशतक जड़ा. जबकि सेमीफाइनल में श्रीलंका के खिलाफ़ उन्होंने 17 गेंदों पर 51 रनों की रिकॉर्ड पारी खेली. इतना ही नहीं फ़ाइनल में भी उन्होंने ऑलराउंड प्रदर्शन (65 रन और दो विकेट) करते हुए टीम को वर्ल्ड कप दिलाने में अहम योगदान दिया.
सरकार से नहीं मिलीं कोई आर्थिक मदद
दीपक बताते हैं कि भारतीय क्रिकेट के लिए इतनी उपलब्धि और अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी होने के बाद भी हरियाणा सरकार ने आज तक किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं की. उनकी आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब है, बावजूद इसके सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही, जबकि दीपक देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. सरकार से मदद या कोई नौकरी की आस तो दूर की बात, वर्ल्ड कप जीतने के बाद सरकार का कोई नुमाइंदा उन्हें बधाई तक देने तक नहीं आया.
दीपक जैसे प्रतिभावान खिलड़ियों की अनदेखी और खेलों को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार ब्लाइंड क्रिकेट को भुलाए बैठी है. सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा, तभी दीपक जैसी प्रतिभाएं सामने आ पाएंगी.