‘न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं’.
स्वर्ण सिंह की बाज़ुएं जैसे ही थकने लगी थीं, उनके मुंह से पंजाबी में ये पंक्तियां निकलीं. एक नए जोश के साथ उन्होंने अपने साथियों के साथ हुंकार भरी और अपने जीवन की सबसे ऐतिहासिक जीत हासिल की.
जकार्ता में खेले जा रहे 18वें एशियन गेम्स के छठे दिन शुक्रवार को भारतीय पुरुष रोइंग (नौकायन) टीम ने शानदार खेल दिखाते हुए गोल्ड अपने नाम किया. स्वर्ण सिंह, भोकानल दत्तू, ओम प्रकाश और सुखमीत सिह की टीम इस टीम ने फ़ाइनल में 6 मिनट और 17.13 सेकेंड का समय लेकर पहला स्थान हासिल किया.
इस टीम की सबसे ख़ास बात ये रही कि इसके चारों सदस्य स्वर्ण सिंह, भोकानल दत्तू, ओम प्रकाश और सुखमीत सिह भारतीय सेना के जवान हैं. वैसे भी जवान अगर किसी काम को करने की ठान लें तो फिर उसे कर के ही दिखाते हैं.
भारतीय फ़ैंस को शायद ही इस गेम में गोल्ड की उम्मीद रही होगी, लेकिन इस टीम के अन्य सदस्यों ने अपने नायब सूबेदार स्वर्ण सिंह की बात को सच कर दिखाया और भारत को रोइंग में दूसरा गोल्ड दिलाया.
भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट में तैनात 28 वर्षीय नायब सूबेदार स्वर्ण सिंह जब अपने करियर के सबसे अच्छे पड़ाव में थे, तो उस वक़्त चोट ने उन्हें इस खेल से दो साल के लिए दूर कर दिया था. कुछ महीनों पहले ही उन्होंने इस खेल में एक बार फिर वापसी की थी, लेकिन इसके बाद भी वो टायफ़ाइड से जूझ रहे थे. इन तमाम तकलीफ़ों के बाद एशियाई खेलों में शामिल होना और अपनी टीम के साथ मिलकर भारत को गोल्ड दिलाना किसी चमत्कार कम नहीं है.
इस टीम के दूसरे अहम खिलाड़ी भोकानल दत्तू भी बुखार से जूझ रहे थे, एक दिन पहले ही वो सिंगल्स स्पर्धा में भाग लेने की वजह से थके हुए भी थे. शुक्रवार का दिन बेहद गरम था और हवा भी विपरीत दिशा में चल रही थी,लेकिन कठिन परिस्तिथियां के बावजूद भारतीय स्वर्ण सिंह ने अपने युवा साथियों को एकजुट कर एक शानदार रणनीति के तहत ऐतिहासिक जीत हासिल की.
इस शानदार जीत के बाद नायब सूबेदार स्वर्ण सिंह ने कहा कि, ‘सैनिक कभी हार नहीं मानते. मैंने अपनी टीम के साथियों से कहा था कि हमें बस सोना जीतना है और इसके लिए हम अपना सब कुछ झोंक देंगे’.
भोकानल दत्तू ने कहा कि ‘उस वक़्त परिस्तिथियां बेहद ख़राब थी, सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, ऐसा लग रहा था मानो जान ही निकल जायेगी, लेकिन स्वर्ण सिंह लगातार हमारा हौसला बढ़ा रहे थे. इन कठिनाइयों के बावजूद हमने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, पहला स्थान ही हासिल करना ही है’.
भारतीय टीम को एशियाई खेलों की रोइंग में पहला स्वर्ण पदक जीतने में 28 साल लगे थे. साल 2010 ग्वांगझू एशियाड में भारत के बजरंग लाल ठाकुर ने सिंगल स्कल्स में स्वर्ण पदक जीता था. इसके बाद से भारत अब तक रोइंग स्पर्धा में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया था.
क्वाड्रूपुल स्कल्स स्पर्धा को साल 2014 में इंचियोन एशियाड में शामिल किया गया था. तब इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक चीन की टीम ने जीता था.