वो तकरीबन नक्सली बन ही गए थे. फिर उनकी ज़िंदगी में बॉक्सिंग की एंट्री हुई और उनकी दुनिया बदल गई. बात हो रही है एशियन गेम्स 1998 में बॉक्सिंग में पहली बार भारत को सोना दिलाने वाले बॉक्सर नगागेम डिंको सिंह की. हो सकता है आपने इनका नाम न सुना हो, पर जो बॉक्सिंग के खेल में दिलचस्पी रखते हैं, उन्हें ये नाम ज़रूर याद होगा. क्यों? उनकी कहानी इतनी प्रेरणादायक है कि उसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता.

b’Source:xc2xa0xc2xa0′

आइए जानते हैं कि कौन है डिंको सिंह और वो बॉक्सिंग के इतिहास में क्यों इतने अहम हैं.

बॉक्सर्स मानते हैं अपना रोल मॉडल

डिंको सिंह मणिपुर के ऐसे बॉक्सर हैं, जिन्होंने मैरी कॉम, सरिता देवी और देवेंद्र सिंह अपना रोल मॉडल मानते हैं. उनका कारनामा ही ऐसा था. डिंको ने मात्र 19 साल की उम्र में बैंकॉक में हुए एशियन गेम्स में देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाया था. जितनी सिंपल उनकी स्टोरी लगती है, उतनी है नहीं.

thelogicalindian

डिंको सिंह की स्टोरी में सरकारी तंत्र और ज़िंदगी ने अपनी भूमिका तबियत से निभाई है. एक ग़रीब परिवार में जन्म लेना, बाद में आर्थिक हालातों के चलते नक्सलियों के झांसे में आना. जब संघर्ष कर इनके चंगुल से निकले, तो स्पोर्ट्स फ़ेडरेशन की राजनीति का शिकार होना. आख़िर में कैंसर जैसी घातक बीमारी का शिकार होना, ये सारे उतार-चढ़ाव डिंको सिंह की कहानी में मौजूद हैं.

स्पेशल स्कीम की वजह से नेशनल लेवल पर खेलने का मौका मिला था

youthkiawaz

एक अनाथालय में पले-बढे हैं डिंको सिंह. उन्होंने एथलीट बनने का सपना यहीं बुना. Sports Authority of India (SAI) की एक स्पेशल स्कीम के कारण उन्हें नेशनल लेवल पर खेलने का मौका मिला. 1989 में नेशनल सब जूनियर बॉक्सिंग जीतने के बाद वो 13 साल की उम्र में अंबाला आ गए. यहां ट्रेनिंग के साथ ही उन्होंने कई प्रतियोगिताएं भी जीती, मगर नाम नहीं हुआ.

1997 वो साल था, जब डिंको सिंह को पूरी दुनिया में ख्याति मिली. उन्होंने बैंकॉक में हुए King’s Cup में विदेशी मुक्केबाज़ों को नॉक ऑउट कर ख़िताब जीत लिया, मगर यहां भी उनकी किस्मत ने धोखा दिया.

खेल राजनीति का हुए शिकार

ndpaedia

अगले साल होने वाले एशियन गेम्स के बॉक्सर्स की फ़ेहरिस्त में उनका नाम नहीं आया. इससे वो काफ़ी निराश हुए. बात जब मीडिया में आई और काफ़ी हो-हल्ला मचा, तब जाकर उनका नाम शामिल किया गया. डिंको ने यहां भी उन पर विश्नास रखने वाले लोगों का भरोसा टूटने नहीं दिया. फ़ाइनल में डिंको सिंह ने दुनिया में तीसरी रैंकिंग वाले उज़्बेकिस्तान के बॉक्सर तिमूर को चित्त कर दिया.

कैंसर को दी मात

indianexpress

1998 में उन्हें सरकार ने अर्जुन अवॉर्ड और नेवी में नौकरी दी. उसके बाद वो SAI के नए बॉक्सर्स को ट्रेनिंग देने लगे. 2017 में फिर से ज़िंदगी ने उनकी परीक्षा ली. उन्हें पता चला कि वो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से ग्रसित हैं. यहां भी डिंको सिंह ने हार नहीं मानी और कैंसर का डटकर सामना किया.

कैंसर के ट्रीटमेंट के लिए उनके पास पैसे नहीं बचे, तब मुश्किल की इस घड़ी में क्रिकेटर गौतम गंभीर और बॉक्सर सरिता देवी ने उनकी मदद की. 13 राउंड कीमोथेरेपी कराने के बाद अब वो ठीक हो चुके हैं और फिर से बॉक्सर्स को ट्रेनिंग देने की तैयारी में जुटे हैं.

Indianexpress

ओलंपिक्स के लिए तैयार कर रहे हैं बॉक्सर

उनका लक्ष्य 2024 के ओलंपिक्स तक 2 ओलंपियन बॉक्सर तैयार करने का है.