जब लोग असंभव काम को सम्भव कर दिखाते हैं तो वे खुद को इतिहास का हिस्सा बना लेते हैं.
स्पोर्ट्स जगत ने ऐसे बहुत से चेहरे देखें हैं जिन्होंने अपने जीवन की सारी बाधाएं पार कर अपने लिए एक मुक़ाम हासिल किया है. ऐसा ही एक उदाहरण हैं, वरुण सिंह भाटी.
वरुण पैरा हाई जम्पर हैं जिन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत को गौरवान्वित किया है. मगर जैसा कि आप समझ ही गए होंगें कि उनकी सबसे बड़ी चुनौती खेल नहीं, बल्कि इससे कई ज़्यादा थी.
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उनको बचपन में ही पोलियो हो गया था जिसकी वजह से उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत होती थी. इसके बावजूद उन्होंने स्कूल में खेल चुना क्योंकि वो इसे अपनी कमज़ोरी नहीं बनाना चाहते थे.
खेलों के लिए उनका ये प्यार कॉलेज में भी जारी रहा. एक युवा के रूप में उनकी ट्रेनिंग अधिक गंभीर रूप लेने लगी. वरुण का ये सारा त्याग और समर्पण उन्हें आने वाले समय में एक बड़ा मुक़ाम देने वाला था.
उन्होंने 2012 पैरालिम्पिक्स के लिए क्वालीफाई किया लेकिन स्लॉट की कमी के कारण अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने में असफ़ल रहे.
2014 के एशियाई पैरा खेलों में, वो 5वें स्थान पर रहे, लेकिन ये केवल आने वाली चीज़ों का संकेत था.
चाइना ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उसी वर्ष उन्होंने एक स्वर्ण पदक जीता.
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2016 पैरालिम्पिक्स उनके लिए गर्व के पल लेकर आए जब उन्होंने एक कांस्य पदक अपने नाम दर्ज किया. उसी वर्ष उन्होंने आईपीसी एथलेटिक्स एशिया-ओशिनिया चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने के लिए एक एशियाई रिकॉर्ड भी बनाया था. बाद में 2018 के एशियाई पैरा खेलों में एक रजत पदक भी उनकी झोली में आया.
2017 में, टाइम्स ऑफ़ इंडिया स्पोर्ट्स अवार्ड्स ने उन्हें पैरा-एथलीट ऑफ़ द ईयर के रूप में वोट किया था. 2018 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.