‘राज़ी’ देखने के बाद आपको पता चल गया होगा कि कुछ गुमनाम हीरो बिना किसी शोहरत की चाहत के लिए देश की ख़ातिर किस हद तक चले जाते हैं. भारत के रॉ(R&AW) में ऐसी कितनी कहानियां होंगी जिन पर फ़िल्में बन सकती हैं. ख़ुद इस संस्थान के संस्थापक की कहानी ऐसी है जिस पर कोई फ़िल्म बन जाए तो अरबों कमाएगी. किसने रॉ की नींव रखी, कौन है भारत का पहला स्पाइमास्टर?

आर. एन. काव

जासूसी कला के मास्टर, एक रहस्यपूर्ण शख़्सियत जिसने विश्वभर में भारत के लिए जासूसी का एक नेटवर्क खड़ा किया. वो इतने ख़ूफ़िया तौर पर रहते थे कि उनकी बहुत कम तस्वीरें ही मौजूद हैं.

काव का जन्म सन 1918 में बनारस के एक कश्मीरी पंडित परिवार में जन्म हुआ. इलाहाबाद विश्वविद्याल से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर कर उन्होंने 1939 में भारतीय पुलिस सेवा ज्वाइन की.भारत की आज़ादी से कुछ साल पहले ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इंटेलिजेंस ब्यूरो का डायरेक्टर बना दिया.

1957 की बात है, घाना को स्वतंत्रता हासिल हुई थी. वहां के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से देश में इंटेलिजेंस ब्यूरो स्थापित करने के लिए मदद मांगी. देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने काव को घाना भेजा, वहां कुछ साल काम कर उन्होंने Foreign Service Research Bureau(FSRB) की स्थापना की.

1965 के दौरान चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद देश में एक ऐसी संस्थान की ज़रूरत महसूस होने लगी, जो मुख्यत: पड़ोसी देशों की गतिविधियों और देश के बॉर्डर पर नज़र रखे. इससे पहले भारत की सरकार को पूर्णत: इंटेलिजेंस ब्यूरो पर आश्रित रहना पड़ता था.

1968 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तय किया कि एक ऐसी संस्था बनाई जाए, इस महत्वपूर्ण कार्य को आर. एन. काव के जिम्मे सौंपा गया. दुनिया भर के इंटेलिजेंस सिस्टम के ऊपर रिसर्च करने के बाद काव ने भारत की इस नई इंटेलिजेंस संस्था का खाका तैयार किया.

उस संस्था का नाम रखा गया Research And Analysis Wing(R&AW), संस्था के नाम को जानबूझ कर ऐसा रखा गया ताकि ये सुनने में किसी शोध संस्था जैसा प्रतित हो. काव ने खुद इंटेलिजेंस ब्यूरो से 250 लोगों को चुन कर इस संस्था की नींव रखी. उनकी टीम को ‘कावबॉयज़’ कहा जाता था. एक साल के भीतर रॉ अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप और दक्षिण-पूर्वी एशिया में फैल गई.

साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान की आर्मी जब पश्चिमी पाकिस्तान के ऊपर कहर बरपा रही थी. पश्चिमी पाकिस्तान के लोग जान बचाने के लिए भारत में शरण ले रहे थे. दूसरी तरफ़ काव को ये सूचना मिली की पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान पर आधिकारिक रूप से सैन्य कार्यवाई करने वाला है. आर. एन. काव ने बिना देरी के ऑपरेशन की शुरुआत कर दी. तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से सलाह मशवरा कर आग की कार्यवाई शुरु कर दी गई. पूर्वी पाकिस्तान के सभी जहाज़ो को भारतीय क्षेत्र से गुज़रने से रोक दिया गया. कहा जाता है कि इसके लिए काव ने रॉ के एजेंट से ही भारत के एक हवाई जहाज़ को हाइजैक करवाया और हाइजैक करने वालों को कश्मीर के अलगावादी की पहचान दी गई. सभी यात्रियों को सुरक्षित भारत पहुंचा कर हवाईजहाज़ को लाहौर एयरपोर्ट पर ब्लास्ट करा दिया गया. इस बहाने से पूर्वी पाकिस्तान की सेना को भारत के क्षेत्र से उड़ने पर पाबंदी लगा दी गई.

काव के रहनुमाई में पश्चिमी पाकिस्तान के स्थानीय लोगों को गोरिल्ला लड़ाई के लिए प्रशिक्षित किया गया. ‘मुक्ती वाहिनी’ नाम की इस गोरिल्ला सेना ने आठ महीनों तक पाकिस्तान आर्मी के छक्के छुड़ा दिए थे.

1971 में बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजिबुर रहमान पर जान लेवा हमले की साजिश बनाई जा रही थी, काव ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री से मिल कर इस बारे में भी सूचित भी किया था, लेकिन वो अपनी सुरक्षा को लेकर मुतमइन थे. कुछ सप्ताह बाद ही जिस मिलेट्री ऑफ़िसर को लेकर काव ने प्रधानमंत्री को आगाह किया था, वो टैंक लेकर प्रधामंत्री के निवासस्थल पहुंच गया और प्रधानमंत्री को परिवार सहित मार दिया.

आर.एन. काव प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काफ़ी करीबी थे. मोरारजी देसाई की सरकार आने पर उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. 1980 में जब दोबारा इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो उन्होंने काव को सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया.

क्योंकि उनकी ज़िंदगी काफ़ी रोमांचक रही है इसलिए आर.एन. काव के करीबी दोस्तों ने कई बार उनसे अपनी जीवनी लिखने के लिए आग्रह किया. लेकिन काव अपनी ज़िंदगी को निजी रखने में ही विश्वास करते थे, वो सार्वजनिक स्थलों पर भी कम ही दिखते थे.

साल 2002 में 84 वर्ष की उम्र में इस सुपरस्पाई ने अपनी अंतिम सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया.