कहते हैं कि ईमानदारी से अगर आप अपना काम करते हैं, तो इससे इसका परिणाम हमेशा ही अच्छा होता है. हर कोई आपकी तारीफ़ करता है और आपकी वाहवाही हर जगह होती है. लेकिन इन सिविल सर्विसेज़ के ऑफ़िसर्स ने जब ईमानदारी से अपना काम करना चाहा, तो खुद सरकार ने उन्हें या तो उस काम से हटा दिया या फिर उनका तबादला कहीं और कर दिया गया.

1. दुर्गा शक्ति नागपाल

2013 में दुर्गा शक्ति नागपाल ने न्यूज़ में सुर्खियां बटोरी थीं. कारण था एक मस्जिद की दीवार गिराना. इसके बाद इन्हें हिंसा भड़काने के डर से सस्पेंड कर दिया गया था. लेकिन इनको सस्पेड करने का कारण असल में इनका ईमानदार होना था. इन्होंने उत्तर प्रदेश में बालू माफ़ियाओं पर नकेल कसने का काम किया था. बालू के इस गोरघ धंधे में यूपी के कई बड़े नेताओं का नाम भी शामिल था, जिस मस्जिद की दीवार गिराने के कारण इन्हें सस्पेड किया गया था वहां किसी भी प्रकार की हिंसा की कोई रिपोर्ट नहीं आई थी. लेकिन यूपी सरकार को दुर्गा शक्ति नागपाल फूटी आंख नहीं सुहा रही थी और इस कारण उन्हें उनके पद से हटा दिया गया. बाद में इन्हें कृषि विभाग में ट्रांसफ़ार कर दिया गया.

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2. अभिषेक सिंह

अभिषेक सिंह, दुर्गा शक्ति नागपाल के पति हैं और ये भी उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में SDM की पोस्ट पर नियुक्त थे. इन्हें भी अमानवियता वाला रैवेया अपनाने के लिए सस्पेड कर दिया गया था. लेकिन आज तक उस केस के बारे में मीडिया को कोई भी जानकारी नहीं दी गई थी.

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3. अशोक खेमका

देश के सबसे बड़े गांधी परिवार के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और DLF द्वारा किए गए ज़मीन घोटाले को सामने लाने वाले अशोक खेमका ही थे. इन्होंने कई घोटालों का खुलासा किया है. लेकिन अपने कर्मठ रवैये और ईमानदारी की भारी कीमत अशोक खेमका को उठानी पड़ी. घोटालों के खुलासे के बाद ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में इनका ट्रांसफ़र कर दिया गया था. ये ट्रांसफ़र मात्र 124 दिन के अंदर हुआ था. अशोक खेमका जी ने 23 साल की अपनी जॉब में 45 ट्रांसफ़र देखे हैं. ईमानदारी का इतना अच्छा गिफ़्ट शायद ही किसी को मिला होगा.

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4. मुग्धा सिंहा

मुग्धा राजस्थान की पहली कलेक्टर थी. इनकी नियुक्ती झुनझुनु जिले में हुई थी. यहां जाते ही इन्होंने लोकल माफ़ियाओं पर नकेल कसनी शुरू की. लेकिन राज्य सरकार को ये पसंद नहीं आया और उन्होंने मुग्धा का ट्रांसफ़र दूसरे जिले में कर दिया. इसके बाद झुनझुनु जिले की जनता बड़ी तादाद में मुग्धा के सपोर्ट में सड़क पर उतर आई. लेकिन इसका कुछ फ़ायदा नहीं हुआ और सरकार आंख और कान बंद कर के सोती रही.

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5. शमित शर्मा

अपनी ईमानदारी और साफ छवि के लिये शमित शर्मा को राजस्थान की जनता काफ़ी पसंद करती थी. उनके ऑफ़िस में विधायक के आने पर जब एक क्लर्क अपनी सीट पर नहीं खड़ा हुआ, तो विधायक ने शिमत को उसे निकाल देने को कहा. लेकिन शमित ने इससे साफ़ इनकार कर दिया, जिसके बाद सरकार ने शमित को सस्पेंड कर दिया. करीब 1200 सरकारी कर्मचारी इन फ़ैसले से नाराज़ हो हुए और काम न करने का फ़ैसला लिया. लेकिन इससे भी सरकार को कई फ़र्क नहीं पड़ा. हालांकि, बाद में उन्हें फिर Commissioner in Investment Bureau नियुक्त कर दिया गया.

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6. श्रेष्ठा ठाकुर

श्रेष्ठा ठाकुर का वीडियो हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वो बीजेपी के एक नेता के साथ बहस करती दिख रही थीं. अपने काम के प्रति श्रेष्ठा ईमानदार दिख रही थीं. उन्होंने बीजेपी नेता के कहे को मानने से साफ़ इनकार कर दिया था और इसका परिणाम ये हुआ की उन्हें भी ट्रांसफर ही इनाम के तौर पर मिला.

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इन ऑफ़िसर्स ने अपने काम को सबसे बड़ा माना लेकिन इनको अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का ऐसा परिणाम मिलेगा, ये न तो इन्होंने सोचा होगा और न ही किसी और ने.