कहते हैं संगीत एक नशा है. अगर है, तो ए. आर. रहमान जैसे संगीतकार ही होते हैं, जो ऐसा नशा संगीत में घोल देते हैं, जिसकी बार-बार तलब उठती है. ऐसा नशा, जो सब कुछ सुन लेने के बाद भी भावनाओं के सबसे गहरे क्षणों में आपको इन गानों तक खींच लाता है. ए. आर. रहमान बेहतरीन संगीतकार होने के साथ-साथ गीतकार और गायक भी हैं.
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‘मोज़ार्ट ऑफ़ मद्रास’ कहे जाने वाले ए. आर. रहमान का आज जन्मदिन है. उनका नाम पहले ए. एस. दिलीप कुमार था, जिसे बदल कर बाद में अल्लाह रखा रहमान कर दिया गया. रहमान की प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं है, उनके गाने ही उनकी इस प्रतिभा के प्रमाण हैं. ‘ये हसीं वादियां’ की बहती हुई लय हो, ‘मां तुझे सलाम’ का रौंगटे खड़े कर देने वाला जोश हो या ‘तू ही रे’ का उदास समर्पण, रहमान का एक-एक गीत मानों आपको किसी और ही जादुई दुनिया में ले जाता है. उस दुनिया में, जहां प्यार, देशभक्ति, जोश, दर्द, मदहोशी, हर एहसास और बड़ा दिखायी देता है.
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1992 में आई मणि रत्नम की फ़िल्म रोजा के संगीत ने उन्हें बॉलीवुड में पहचान दिलायी. तबसे उनका सफ़र जारी है और संगीत की दुनिया के बड़े से बड़े पुरस्कार वो अपने नाम कर चुके हैं, पर आज भी उनके संगीत की ताज़गी वैसी ही है. रहमान गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय हैं, गीत ‘जय हो’ के लिए सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक कंपाइलेशन और सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत की श्रेणी में दो ग्रैमी पुरस्कार जीत चुके हैं और इसी गीत के लिए ऑस्कर भी ला चुके हैं. 2010 में सरकार उन्हें पद्म-भूषण से भी सम्मानित कर चुकी है.
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यूं तो रहमान को हिंदी नहीं आती, पर संगीत की कहां कोई ज़बां होती है. कई भाषाओं के गानों को अपने संगीत से सजा चुके रहमान को भी भाषा की दीवार कभी रोक न पायी. मदमस्त कर देने वाले संगीत के लिए जितने फैन उनके बॉलीवुड में हैं, उतने ही साउथ में भी हैं.
‘बॉम्बे’, ‘दिल से’, ‘रंगीला’, ‘ताल’, ‘लगान’, ‘मंगल पांडे’, ‘स्वदेश’, ‘रंग दे बसंती’, ‘जोधा-अकबर’, ‘जाने तू या जाने ना’, ‘युवराज’, ‘स्लम डॉग मिलेनियर’, ‘गजनी’, ‘ज़ुबेदा’, ‘नायक’, ‘मंगल-पाण्डेय’, ‘किसना’, ‘गुरु’, ‘दिल्ली 6’, ‘रावण’, ‘रॉकस्टार’, ‘जब तक है जान’, ‘रांझणा’, हाइवे, ‘तमाशा’ कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनके संगीत के ज़िक्र के बिना उन्हें दिया ट्रिब्यूट अधूरा रहेगा.
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रहमान के पिता आर.के. शेखर मलयाली फ़िल्मों में संगीत देते थे. कहा जा सकता है कि संगीत की शुरुआती समझ उन्हें विरासत में मिली होगी, पर काम करते-करते जो मुकाम उन्होंने हासिल किया है, उसे देखते हुए ये भी कहना गलत नहीं होगा कि रहमान ने खुद ही फ़िल्मी संगीत को एक विरासत दे डाली है.
उनके गीत ‘ऐ अजनबी’ में इक कसक सी है, ‘छैंया-छैंया’ मस्ती लिए है, तो ‘कुन फ़ाया कुन’ सूफ़ी रंग ओढ़े है. ये जीते-जागते गाने हैं, जिनकी एक रूह है, जो आपको गम में और ग़मगीन भी बना सकती है और इश्क़ में और दीवाना भी. शायद ये उनके संगीत की उदास खूबसूरती ही है, जो उसे अनोखा बनाती है.
एक इंटरव्यू में रहमान बताते हैं कि उनसे किसी ने कहा था कि संगीत ही ज़रिया है खुदा तक पहुंचने का. इतना तो यकीनन कहा जा सकता है कि उनका संगीत रूह तक पहुंचता है.
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रहमान की धुनें वाकई जीती हैं, नौकरी से ऊब चुके उस वर्कर की बोरियत में जीती हैं, नए-नए इश्क में पड़ा वो लड़का जब ‘रांझणा हुआ मैं तेरा’ सुनता है, तो उसके जूनून में जीता है ये संगीत, जब कोई मुसाफ़िर अपने सफ़र में इयरफ़ोन में ‘माही वे’ सुनता है, तो उसका हमसफ़र बन जी उठता है ये संगीत, जब कॉलेज में नौजवान ‘मस्ती की पाठशाला’ पर बेफ़िक्र नाचते हैं, तो उनकी मस्ती बन जी उठता है ये संगीत, जब खफ़ा हुए प्रेमी ‘जश्न-ए-बहरा’ सुन कर नाराज़गी में भी प्यार महसूस करते हैं, तब भी ये संगीत जी उठता है.
ये तो रहमान के चंद नगमें हैं, जाने ऐसे कितने ही गीतों से कितनी ही भावनाओं को महसूस कराते हैं उनके गाने. हाल ही में उन्होंने ‘OK Jaanu’ फ़िल्म को अपने संगीत से सजाया है. जाते-जाते रहमान के फ़ैन्स के लिए एक अच्छी ख़बर दे जाते हैं, रहमान अपने जन्मदिन पर 4.30 PM से 5 PM तक Facebook पर लाइव आने वाले हैं, तो उन तक अपनी बात पहुंचाने का मौका मत गंवाना.