ईद को खुशियों का त्यौहार माना जाता है और इस दिन लोग खुदा की इबादत में भी अपना समय देते हैं और सभी लोगों की ख़ुशी के लिए दुआएं भी मांगते हैं. लेकिन हमारे देश में एक गांव ऐसा भी जहां मुस्लिम लोग इसद के मुबारक मौके पर खुदा से कब्रिस्तान की दुआ करते हैं. जी हां, है न ये हैरानी वाली बात, लेकिन ये सच है. यह गांव उत्तर प्रदेश के आगरा शरह से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है, इस गांव का नाम है पोखर छः गांव। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस गांव के लोग अपनी दुआओं में कब्रिस्तान इसलिए मांगते हैं क्योंकि इस गांव में कब्रिस्तान नहीं है.

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गौरतलब है कि इस गांव में करीब 70 मुस्लिम परिवार रहते हैं, जिनकी आबादी लगभग 200 है. ये सभी लोग मजदूरी करते हैं, पर हैरान करने वाली बात हैं कि अभी तक इस गांव में मुस्लिमों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है. इसलिए गांव के सभी मुस्लिमों को अपने परिजनों की मौत के बाद उनकी मृत शरीर को अपने ही घर के पीछे या बाहर ही दफ़नाना पड़ता है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पिछले 60 सालों में यहां 50 से अधिक मुस्लिमों की मौत हुई है और उन्हें घर के बाहर ही दफ़नाया गया है. पिछले दो दशकों से कब्रिस्तान के लिए ज़मीन देने के वादे तो किये जाते हैं लेकिन वो वादे फ़ाइलों में ही डाब कर रह जाते हैं.

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ग्राम प्रधान सुंदर सिंह ने TOI से बात करते हुए बताया कि गांव में कुल 2,500 वोट हैं और कुल आबादी 4,000 के आस-पास है. यहां कुछ घरों में ही शौचालय है. यहां के 35 मुस्लिम परिवार बहुत परेशान हैं क्योंकि उनके घरों में कब्र ही कब्र हैं. इस संबंध में एसडीएम किरावली से बात करने की कोशिश की गई पर फ़ोन नहीं उठाया गया. उनके ऑफ़िस के नंबर पर बात करने पर लेखपाल द्वारा पैमाइश की बात बताई गई.

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वहीं 80 वर्षीय खातून बताती हैं कि अब तक यहां 50 से अधिक लोग दफ़न हो चुके हैं. बारिश में पोखर में पानी भर जाता है और उसके कारण कब्र धंस कर खत्म हो गई हैं. हमारे यहां तो हर ईद पर दुआ में कब्रिस्तान मांगा जाता है, लेकिन यह आस पूरी नहीं होती है.

कई लोगों का मानना है कि कब्र की वजह से उनके घर के बच्चों पर शैतान का साया मंडराता रहता है. और पाने के लिए ये लोग झाड़फूंक के का सहारा लेते हैं. गांव के कई बच्चे सालों से बीमार हैं. यहां की रहने वाली नूरबानो के घर के बाहर इनके ससुर हुसैन खान की कब्र है. नूरबानो बताती हैं कि उनकी 18 साल की बेटी रजिया पिछले तीन साल से बीमार है और किसी भी दवा का असर नहीं हो रहा है. इस कारण अब झाड़फूंक का इलाज चल रहा है.

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वहीं मुमताज़ जब 11 साल की थी, तब बारिश के दौरान बाहर बनी कब्र धंस गई औरउसमें से अस्थियां बाहर बहने लगीं थी, जिसे देख कर मुमताज़ बहुत ज़्यादा डर गई थी, क्योंकि उसने जो देखा था वो अकल्पनीय था. वो मंज़र उसके दिलो-दिमाग में घर कर गया और वो सदमें में गुम हो गई. तब से लेकर अब तक उसके पेरेंट्स ने ना जाने उसका कितनी जगहों पर इलाज करा लिया, लेकिन वो ठीक नहीं हुई. आज वो16 साल की हो चुकी है पर उसकी स्थिति पहले जैसे ही है.

अब इसे प्रशासन की नाकामी नहीं कहा जाए तो फिर क्या कहा जाए. लोगों को ये परेशानी अधिकारियों की लापरवाही की वजह से ही तो उठानी पड़ रही है. लोगों को इस प्रकार की परेशानी से बचाने के लिए जिले स्तर के अधिकारियों को इस ओर ध्यान देकर उनकी अनिवार्य ज़रूरत को पूरा करने के लिए कदम उठाने चाहिए.