1947 की सुबह कैसी होगी, ये मैं तो नहीं जानता, लेकिन सुनने में आता है कि इस सुबह का आगाज़, 'उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां' की शहनाई से हुआ था. लाल किले की प्राचीर से उस्ताद की शहनाई ने जो हौसला बिखेरा, वो आज भी हर भारतीय में बरकरार है. उनका संगीत ही उनकी इबादत थी, ये इस वीडियो में देखकर आप जान जायेंगे.
क्यों शहनाई उस्ताद बिस्मल्लाह खां का जन्मदिन है हर भारतीय के लिए गर्व की बात!
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