Villagers Sent Elders in Forest as Tiger Prey: हेडिंग पढ़कर आपका दिमाग़ ज़रूर भन्ना गया होगा कि जिस जानवर की गुर्राहट सुन कर रूह कांप जाए, इंसान ख़ुद उसका शिकार होना क्यों चाहेगा. लेकिन, कहते हैं न कि ये दुनिया जितनी ख़ूबसूरत दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा अजीबो-ग़रीब है. जो हम बताने जा रहे हैं वो बात बिल्कुल सही है और ये घटना कहीं बाहर की नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की है.  

इस पूरी कहानी का केंद्र बिंदु है उत्तर प्रदेश का Pilibhit Tiger Reserve, जहां  के बाघ इंसानों का लंबे समय से शिकार करते आए हैं, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि यहां इंसान ख़ुद ही बाघ का शिकार बनने के लिए जंगल के अंदर चले जाया करते थे. आखिर क्यों? ये जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत ज़रूर पढ़ें.

आइये, अब विस्तार से पढ़ते (Villagers Sent Elders in Forest as Tiger Prey) हैं आर्टिकल

पीलीभीत टाइगर रिज़र्व

Pilibhit Tiger Reserve
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पीलीभीत टाइगर रिज़र्व उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और शाहजहांपुर ज़िले में स्थित है. इस टाइगर रिज़र्व का कोर ज़ोन क्षेत्र 602.79 किमी और बफ़र ज़ोन क्षेत्र 127.45 किमी में फैला है. पीलीभीत टाइगर रिजर्व को सितंबर 2008 में अपने विशेष प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र के आधार पर रिज़र्व घोषित किया गया था. ये भारत का 45 वां टाइगर रिज़र्व प्रोजेक्ट है.  

ये रिज़र्व 127 से अधिक जानवरों की प्रजातियां, 326 पक्षियों की प्रजातियां और 2100 प्रकार के फूलों का घर है. पर्यटन के लिहाज़ से भी टाइगर रिज़र्व ख़ास माना जाता है और दूर-दराज के सैलानी यहां रोमांचक अनुभव के लिए आते हैं.

पीलीभीत टाइगर रिज़र्व से जुड़ी हैरान कर देने वाली घटना

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Villagers Sent Elders in Forest as Tiger Prey: पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के आसपास कई छोटे-छोटे गांव हैं, जिनकी शिकायत रही है कि जंगली जानवर उनकी फसलों और उनके अपनों को शिकार बना लेते हैं. एक के बाद कई मौतों की घटनाएं बाघ के द्वारा मारे गए ग्रामीणों की दर्ज की गई. लेकिन, जब इस बात का खुलासा हुआ, तो पता चला कि टाइगर रिज़र्व के आसपास के गांव के कई गरीब परिवार अपने बुजुर्गों को जंगल बाघ का शिकार करने के लिए भेज दिया करते थे, ताकि वन विभाग द्वारा उन्हें मुआवजा मिल सके.

जानकारी के अनुसार, क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे मानव-पशु संघर्ष का समाधान न कर पाने की जिम्मेदारी लेते हुए वन विभाग जंगली जानवरों द्वारा मारे गए व्यक्ति के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देता है. लेकिन, कंडीशन ये है कि मौत जंगल के अंदर नहीं गांवों के आसपास होने पर ही मुआवज़ा मिलेगा.

ग़रीबी से मजबूर होकर बनते थे बाघ का शिकार

Tiger
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ज़ाहिर सी बात है कि कोई शौक़ से बाघ का शिकार नहीं बनेगा. ये फैसला गांव के वो परिवार लेते थे, जो ग़रीबी से बुरी तरह त्रस्त थे. ग़रीबी से मजबूर होकर वो परिवार के बुजुर्ग को ही बाघ का शिकार बनने के लिए जंगल भेज दिया करते थे.

जंगल से लाश खेतों में शिफ़्ट कर दी जाती थी

Pilibhit Tiger Reserve
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Villagers Sent Elders in Forest as Tiger Prey: मुआवज़े का दावा करने के लिए ये ज़रूरी था कि बाघ का अटैक खेत में हुआ हो. इसलिए, लाश को जंगल से लाकर खेतों में शिफ़्ट कर दी जाती थी, ताकि वन विभाग से मुआवज़े का दावा किया जा सके. अगर मौत जंगल में होती है, तो गांव वाले मुआवज़े के हक़दार नहीं होते हैं.

बुजुर्ग अपनी इच्छा से लेते हैं इसमें भाग

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गांववालें की मानें, तो बुजुर्ग अपनी मर्ज़ी से ही इस बाघ का शिकार बनने के चलन का हिस्सा बनते हैं. उनका मानना है कि जंगल से उन्हें कुछ भी संसाधन नहीं मिल सकते हैं, इसलिए यही एकमात्र ज़रिया परिवार को ग़रीबी से निकालने का.

मीडिया की मानें, तो 24 अक्टूबर 2016 से लेकर 1 जुलाई 2017 तक बीच 15 लोग जंगली जानवर का शिकार हुए थे, जिनमें 8 मामलों में मुआवज़ा दिया गया था. इनमें रिज़र्व के पास के अलग-अलग गांव के लोग शामिल थे. स्कूपह्वूप की बातचीत में पीलीभीत वन विभाग ने बताया कि बाघ या अन्य जानवर द्वारा शिकार हुए गांववालों (जिनकी मृत्यु जानवरों द्वारा रिज़र्व के आसपास हुई) को मुआवज़ा देना बंद नहीं हुआ है, लेकिन ये जानना ज़रा मुश्किल हो जाता है कि जानवर ने जंगल में शिकार किया कि खेत में आकर.

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वन विभाग को जब पता चला, तो रिजेक्ट हुए मुआवजे

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एक मीडिया संगठन की मानें, तो वन विभाग को जब इस चलन के बारे में पता चला और जांच में चीज़ें साबित हुईं, तो उन्होंने कई मुआवज़ों के दावों को रिजेक्ट कर दिया. ऐसा ही मामला सोमप्रकाश नाम के एक शख़्स का है, जिसने दावा किया कि उसकी मां को खेत में बाघ ने मार डाला, जबकि वन विभाग ने ये कहते हुए दावे को रिजेक्ट कर दिया कि मौत जंगल में हुई थी, न कि खेत में. वन विभाग ने कहा था कि उसने जानबूझकर अपनी मां को जंगल बाघ का शिकार होने के लिए भेजा था.

हालांकि, गांव वालों का कहना था कि सोमप्रकाश की मां को खेत में ही बाघ ने मारा था. मौत ने गांव में हिंसक विरोध शुरू कर दिया था, लोग बाघों से बचाने में वन विभाग की अक्षमता से नाराज थे. एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें ग्रामीणों को ननकी देवी के शरीर को ट्रैक्टर में ले जाते और चिल्लाते हुए दिखाया गया था. इसके बाद ननकी देवी की मौत की जांच की गई. जांच करने वाले थे केंद्र सरकार की एक एजेंसी Wildlife Crime Control Bureau (WCCB) के कलीम अतहर.

अतहर ने रिज़र्व के आसपास बाघों के हमलों की जांच की, व्यक्तिगत मामले देखें, शवों के स्थान और साथ ही स्थानीय लोगों के खातों की जांच भी की. अतहर ने अपनी रिपोर्ट WCCB को सौंप दी जिसे National Tiger Conservation Authority को सौंपने का फैसला लिया गया था.

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बन चुकी है फ़िल्म

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Villagers Sent Elders in Forest as Tiger Prey: पीलीभीत टाइगर रिज़र्व की इस घटना पर फ़िल्म भी बन चुकी है, जिसका नाम है Sherdil: The Pilibhit Saga. फ़िल्म में मुख्य अभिनय में एक्टर पंकज त्रिपाठी हैं, जो गांव की ग़रीबी दूर करने के लिए जंगल चले जाते हैं बाघ का शिकार बनने. ये फ़िल्म नेटफ़्लिक्स पर उपलब्ध है, जिसे आप देख सकते हैं.