(Footprints Of Human Never Disappear On Moon)- चांद पृथ्वी का इकलौता प्राकृतिक उपग्रह है. साथ ही चांद पूरे सौर प्रणाली का 5वां सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है. ये सब जानते हैं कि  21 जुलाई 1969 को चांद पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति नील आर्मस्ट्रांग थे और आख़िरी व्यक्ति यूजीन सेरनन (Eugene Cernan) थे. जिन्होंने 1972 में आख़िरी बार चांद पर अपने कदमों के निशान छोड़े थे. इस बात को पूरे 50 साल बीत चुके हैं. लेकिन चांद की सतह पर क़दमों के निशान आज भी वैसे के वैसे ही हैं. ऐसा क्या है जो इतने वर्ष बीतने के बाद भी क़दमों के निशान नहीं मिटे. चलिए इस आर्टिकल के माध्यम से विस्तार से जानते हैं.

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चलिए विस्तार से पढ़ते है चांद के इस रहस्य के बारे में (Footprints Of Human Never Disappear On Moon)-  

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चांद के बनने के ऊपर बहुत से वैज्ञानिक ने रिसर्च की है. कहा जाता है कि चांद के निर्माण के पीछे एक विचित्र कहानी है. माना जाता है, चंद्रमा पृथ्वी और अन्य छोटे ग्रहों के बीच टक्कर के दौरान मंगल के आकार जितना बड़ा बना है. इस प्रभाव से मलबा पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में एकत्रित होकर चंद्रमा का निर्माण करता है.

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वैज्ञानिकों के रिसर्च के मुताबिक़, चांद पर इंसान का वजन 16. 5 फ़ीसद तक कम हो जाता है. ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि, भारत के मुक़ाबले चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल काफ़ी कम होता है. यही वजह है कि, अंतरिक्ष यात्री चांद पर उछलकूद कर पाते हैं. 

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रिसर्च के मुताबिक़, चंद्रमा धूल, मलबा और मिट्टी की चट्टानों से घिरा हुआ है. बता दें, चंद्रमा की सतह पर हवा और पानी से कोई Erosion नहीं होता है. इसका एक मात्रा कारण ‘वायुमंडल’ है. वायुमंडल की कमी से सतह पर पानी भी बर्फ़ बन जाती है. चंद्रमा की सतह की विशेषताओं को बदलने के लिए चंद्रमा पर कोई ज्वालामुखी गतिविधि नहीं है. जिसका मतलब कुछ भी नहीं बदलता और क़दमों के निशान सालों- साल तक वैसे ही रहते हैं.

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