फ़ैशन… बहुत से लोगों के समझ के परे, लेकिन एक ख़ास तबके के लिए सबकुछ. फ़ैशन शोज़ कुछ लोगों को वक़्त और पैसे की बर्बादी लगते हैं, तो कुछ लोगों को रचनात्मकता का पर्याय.
फ़ैशन शोज़ में मॉडल्स जो कपड़े पहनते हैं, उन्हें हम आम ज़िन्दगी में नहीं पहन सकते, ये हक़ीक़त है. लेकिन फिर भी भड़कीले मेकअप, हेयर-स्टाइल और डिज़ाइनर कपड़ों में मॉडल्स रैम्प पर चलते हैं.
तो फिर उन कपड़ों का क्या होता है? Quora पर इस सवाल का जवाब हमें मिला. जिस प्रकार कुछ पेंटिंग्स और मूर्तियों के पीछे कोई न कोई कहानी ज़रूर होती है, उसी प्रकार फ़ैशन के कपड़ों के पीछे भी कोई कहानी, डिज़ाइनर की रचनात्मकता होती है.
ज़्यादातर फ़ैशन कलेक्शन एक Theme के अनुसार होते हैं. जो रंगीले कपड़े, हेयरस्टाइल, मेकअप में हमें मॉडल्स दिखते हैं, वो उसी Theme को प्रतिनिधत्व करते हैं.
डिज़ाइनर कपड़ों से फ़ैशन इंडस्ट्री को ये भी आईडिया हो जाता है कि आने वाले दिनों में कैसे Fabric, रंग, Texture ट्रेंड में आयेंगे.
डिज़ाइनर्स जो रैम्प पर दर्शाते हैं, वो आम लोगों के ख़रीदारी के लिए नहीं होते. उन डिज़ाइन्स में ही हल्के-फुल्के परिवर्तन करके कपड़ों को मार्केट में उतारा जाता है.
Auto-Expos में दिखाई जाने वाली साड़ी गाड़ियां ख़रीदने लायक नहीं होती, यही Theory फ़ैशन शोज़ में दिखाये जाने वाले कपड़ों पर भी Apply होती है.