अगर किसी बच्चे के लिए कपड़े खरीदने की बात होती है, तो हमको पता ही होता है कि अगर लड़का है, तो नीले रंग के कपड़े और अगर लड़की है तो गुलाबी रंग के कपड़े लेने चाहिए. यह बिलकुल आम प्रवृत्ति है कि हम में से ज्यादातर लोग लड़कों के लिए नीला और लड़की के लिए गुलाबी या उससे मिलते-जुलते किसी रंग की ही ड्रेस को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन क्या आपने अभी इसके पीछे की असली वजह के बारे में सोचा है, जिसके आधार पर हमें यह आसानी हुई है और हमने अपने या बच्चों के लिए रंगों का बंटवारा कर लिया है. क्या कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है? जेंडर के हिसाब से कपड़ों के रंगों का चुनाव क्यों किया जाता है? शायद इसका जवाब आपके पास नहीं होगा, पर आज हम आपके लिए इसका सही जवाब लेकर आये हैं.

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इसका सबसे पहला तर्क यह है कि ऐसा माना जाता है कि लड़कियां नाज़ुक होती होती हैं और गुलाबी रंग को भी नाज़ुक चीज़ों की पहचान के रूप में देखा जाता है. ये भी माना जाता है कि गुलाबी आंखें, गुलाबी गाल या गुलाबी मिजाज ये सारी चीजें हमेशा से लड़कियों से जुड़ी होती हैं. वहीं दूसरी तरफ अगर लड़के नीले या उससे मिलते-जुलते रंगों की तरफ आकर्षित होने होते हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि इस रंग को गंभीरता और औपचारिकता से जोड़ा गया है. जब किशोर से युवा हुआ पुरुष काम करने के लिए के लिए बाहर निकलता है, तो उसे प्रोफेशनल दिखना होता है. इसके लिए उनके पास सिर्फ सफ़ेद, नीला या उसके दूसरे शेड्ज़ ही होते हैं. एक वजह है जो पुरुषों के बीच इस रंग को लोकप्रिय बनाती है.

आइये अब बात करते हैं इसके इतिहास के बारे में

आपको बता दें कि पुराने समय से ही रंगों का ऐसा ही बंटवारा होता रहा है. बीसवीं सदी की शुरुआत में रंगों का विभाजन बिलकुल उल्टा था. हांगकांग से छपने वाली महिलाओं की पत्रिका ‘होम जरनल’ के उस समय के कई आर्टिकल इस बात की पुष्टि भी करते हैं. एक आर्टिकल अनुसार, उस समय गुलाबी रंग लड़कों और नीला रंग लड़कियों के लिए उपयुक्त समझा जाता था, क्योंकि गुलाबी रंग कहीं ज्यादा स्थायित्व और मजबूती का प्रदर्शन करने वाला रंग है. इसलिए यह पुरुषों के लिए सही है. वहीं नीला रंग ज्यादा नाजुक और सजीला है, इसलिए ये महिलाओं के नाज़ुक और कोमल होने से जोड़ा जा सकता है. उस दौर में छपे कई लेखों से यह भी पता चलता है कि नीले रंग के चटख होने के कारण महिलाएं इसे ज्यादा पसंद करती थीं. वहीं गुलाबी रंग को पसंद करने वाले पुरुषों का तर्क था कि यह रंग आरामदायक है और आंखों में चुभता नहीं है.

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लेकिन 1940 के आते-आते रंगों का ये बंटवारा एकदम उल्टा यानी वर्तमान की तरह ही हो गया. ऐसा क्यों हुआ इसकी कोई ठोस वजह तो इतिहासकार भी नहीं बता पाए.

लोगों का मानना है कि ‘जेंडर कलर पेयरिंग की अवधारणा फ्रैंच फैशन की देन है. जेंडर कलर पेयरिंग – यह शब्दावली लिंग और रंग के समन्वय के लिए ईजाद की गई है – जैसे गुलाबी यानि महिलाएं और नीला यानी पुरुष.

गौरतलब है कि 1940 में पेरिस को फैशन दुनिया की राजधानी कहा जाता था. 1940 के दशक के दौर में महिलाओं के लिए गुलाबी और पुरुषों के लिए नीले रंग के करीबी रंगों की पोशाकों को प्राथमिकता दी जाने लगी थी. कहते हैं कि फिर यह चलन फ्रांस से निकलकर पूरी दुनिया में प्रचलित हो गया.

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फ्रांस के फैशन जगत में रंगों का यह बंटवारा होने के पहले महिलाओं और पुरुषों के रंग चयन करने की प्रवृत्ति को समझने के लिए 1927 में ‘टाइम मैगजीन’ ने एक सर्वे किया था जिसमें पूरे विश्व के अलग-अलग शहरों के फेमस फैशन स्टोर्स शामिल थे. इस सर्वे के अंत में पत्रिका की और से यह नतीजा सामने आया कि Spectrum (वर्णक्रम) के एक हिस्से की तरफ पुरुषों का ज्यादा झुकाव होता है, तो दूसरे हिस्से की तरफ महिलाओं का. इन नतीजों के मुताबिक, पुरुष Spectrum के एक तरफ स्थित नीले, हरे और जामुनी रंगों को तवज्जो देते हैं, तो महिलाओं का झुकाव Spectrum के दूसरे सिरे की तरफ होता है. इस सिरे पर लाल और उसके करीबी रंग पाए जाते हैं.

इस सर्वे में ग्राहकों को अलग-अलग समूह में बांटा गया था. इसके नतीजों से पता चला कि एक समूह के सदस्य अपने ही समूह के अन्य सदस्य से मिलती-जुलती लेकिन दूसरे समूह से एकदम भिन्न राय रखते हैं. लेकिन समूह का हर सदस्य किसी निश्चित रंग को ही पसंद करेगा ऐसा नहीं है. लोग किन रंगों को पसंद कर रहे हैं इसमें उनकी उम्र, व्यवसाय और पृष्ठभूमि भी मायने रखती है. आज के समय से तुलना करें तो लगता है कि इस सर्वे के नतीजे सही थे.

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बाद में यह बात 2007 में हुए एक वैज्ञानिक प्रयोग से भी सिद्ध होती दिखी. तब इंग्लैंड की न्यू कैसल यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. आन्या हर्लबर्ट और याज्हू लींग ने 20 से 26 साल आयुवर्ग के 206 युवाओं पर एक प्रयोग किया. इस प्रयोग में उन्होंने स्पेक्ट्रम को दो हिस्सों में बांटा. पहले वर्ग में लाल, नारंगी, पीले और हरे रंग को रखा गया. दूसरे वर्ग में बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा और पीला रंग रखे गए. स्पेक्ट्रम के इस बंटवारे के पीछे कोई वैज्ञानिक वजह न होकर यही सामाजिक मान्यता थी, जो गुलाबी या चटक रंगों को महिलाओं से और नीले या गहरे रंगों को पुरुषों से जोड़ती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, महिलाओं में रंगों को पहचानने की क्षमता अधिक होती है इसलिए वे गहरे और स्थिर रंगों के अलावा चटक-चमकीले रंगों को भी अलग-अलग कर देख सकती हैं और उन्हें पसंद भी करती हैं.

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हालांकि बीते सालों में बच्चों और उनके रंगों के चयन का संबंध स्थापित करने के लिए कई प्रयोग हुए हैं जिनमें ज्यादातर एक से ही रिजल्ट सामने आये हैं. इन परिणामों के आधार पर ये कहना गलत नहीं होगा कि कोई बच्चा, भले ही वो लड़का हो या लड़की, गुलाबी या नीले के बजाय तीन प्रमुख रंगों (लाल, हरा, नीला) की तरफ ही आकर्षित होता है. इसलिए यहां पर ‘जेंडर कलर पेयरिंग की अवधारणा गलत साबित होती है.

तो अगर आप लड़के हैं और आपको पिंक कलर की शर्ट पसंद आ रही है तो बेझिझक आप उसे खरीद कर पहन सकते हैं, क्योंकि जेंडर के आधार पर रंगों का बंटवारा करने का कोई औचित्य नहीं है. अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो इसके अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें.