हिन्दी फ़िल्म में खलनायक काफी ताकतवर होते थे. उनका किरदार ‘लार्जर दैन लाइफ’ होता था. हर फ़िल्म में हीरो से ज़्यादा ताकतवर होने के बावज़ूद अन्त में विलेन हार जाते थे, क्योंकि ये लोग खुद ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार लेते थे.

अब देखिये, अपने दोनों हाथ होने के बाद भी अगर गब्बर लालच में पड़कर ठाकुर के दोनों हाथ नहीं मांगता तो वो शायद आज भी जिंदा होता. शाकाल अगर अपने टकले पर हाथ फेर कर, अपने दुश्मनों को मगरमच्छ वाले तालाब में न फिंकवाते तो वो भी मरने से बच जाते. बाकी शाकाल साहब का धंधा तो बढ़िया चल ही रहा था. मोगैम्बो जी कुछ ज़्यादा ही खुश ही होते रहते थे. अब लोग हीरो की खुशी तो बर्दाश्त कर लेते थे. लेकिन विलेन की खुशी को भला कौन बर्दाश्त करता. बेमौत मारे गये बेचारे. आइए देखें की वो और कौन सी चीज़ें थी, जो खलनायकों के खिलाफ़ गई और उनके पतन का कारण बनी.

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नाच-गाने के शौक़ ने किया बेड़ागर्क

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खलनायक नाच-गाने के बहुत शौक़ीन होते थे. माल की सफ़ल डिलीवरी हो या कोई और खुशख़बरी, नाच गाने का कार्यक्रम तुरन्त शुरु हो जाता था. इधर ये नाच गाने में मगन रहते थे, इसी का फ़ायदा उठा कर हीरो अन्दर घुस आता था और फिर इनके बंकर का तिनका-तिनका बिखेर देता. इनका नाच गाने देखने का शौक, इनके पतन का सबसे बड़ा कारण बना.

बहुरुपियों को न पहचान पाने की कला

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खलनायक होते तो बहुत रौबदार और ताकतवर थे, लेकिन उनकी आंखें कमज़ोर होती थी. अगर हीरो अपनी पहचान छुपा कर, उनके गिरोह में घुस जाता था, तो ये उसे पहचान ही नहीं पाते थे. फिर हीरो उनके गिरोह का सदस्य बनकर, उनके पूरे गिरोह को तबाह कर देता था.

हीरो को गन पॉइंट पर लेकर लम्बा चौड़ा भाषण देने की आदत

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फ़िल्म में जब हीरो, खलनायक के शिकंजे में आ जाता और विलेन के हाथ में रिवॉल्वर रहती, तो विलेन गोली मारने की जगह उसे भाषण सुनाने लगते थे. हीरो के सामने इतने बर्बर तरीके से उसकी मां-बाप की हत्या का वर्णन करते कि हीरो का खून खौल जाता था. फिर हीरो उनकी आंखों में धूल झोंककर उनकी ही रिवाल्वर छीन कर, उन्हें गोली मार देता था.

दुश्मन के बेटे को ज़िन्दा छोड़ देना

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विलेन की जिस आदमी से दुश्मनी होती थी, उसे तो मार देते थे, लेकिन उसके बेटे को छोड़ देते थे. अब बेटा बड़ा होगा तो अपने मां-बाप का बदला तो लेगा ही. बाकी अपने फैज़लवा ने तो बाप का, भाई का, दादा का सबका बदला लिया.

शक्की स्वभाव भी उनके लिये साबित हुआ घातक

खलनायक हमेशा दिमाग से ही सोचते थे. अपने आदमी से थोड़ी सी भी गलती या शक़ होने पर तुरन्त गोली मार देते थे. इसी बात की वज़ह से खलनायकों के आदमियों ने कभी उनके साथ दिल से काम नहीं किया. उनके आदमी मन ही मन हमेशा इनका बुरा ही चाहते थे. आखिर उनकी आह और बद्दुआ रंग लाई और आज सिनेमा जगत में खलनायकों का अस्तित्व ही खतरे में है.

अन्तिम इच्छा पूछने की बीमारी

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ये बीमारी उन खलनायकों के अंदर ज़्यादा रहती था, जो ख़ुद को भगवान से दो-चार इंच ऊपर समझते थे. अपने आप को कुछ ज़्यादा ही इंसाफ़ पसंद दिखाने के चक्कर में ये हीरो से उसकी आखिरी ख़्वाहिश पूंछते थे. इसी बीच मौका पाकर हीरो कोई ऐसी चाल चल देता कि बाज़ी एकदम से विलेन महराज के हाथ से निकल जाती. 

आधुनिक हाथियारों की जगह पर बाबा आदम के जमाने के हाथियारों का प्रयोग

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दक्षिण भारतीय विलेन के साथ ये समस्या ज़्यादा है. AK-46 और AK-56 के ज़माने ने भी ये लोग नारियल काटने वाला छुरा प्रयोग करते थे. इसका ख़ामियाज़ा भी उन्हें भुगतना पड़ा. जब तक ये हीरो को काटने के लिये उसके पास पहुंचते, तब तक हीरो की जोरदार ठोकर इनके पेट में लगती. फिर ये इतनी दूर जाकर गिरते थे कि उतनी दूरी अगर हम बाइक से तय करें तो हमारा एक लीटर पेट्रोल जल जाएगा.

इन सबके अलावा निर्दशकों ने भी विलेन के साथ अन्याय किया है. अगर विलेन अपनी पूरी ताकत और होशियारी लगाकर हीरो के पूरे परिवार को खत्म कर देता था, तो निर्देशक हीरो को पुनर्जन्म देकर विलेन का खात्मा करवा देता था.