लड़कियां घर से नहीं निकल सकती हैं
ऐसी बातों को पीछे छोड़कर आज लड़कियां कहां से कहां पहुंच चुकी हैं, ये बताने की ज़रूरत नहीं है. आज इन्होंने समाज की रूढ़िवादी सोच को चकनाचूर कर दिया है और उस सोच के टुकड़ों पर अपने सपनों को बनाया है. ये उन लोगों के लिए एक सबक है जो लड़कियों को घर की चारदिवारी में रहने के लायक मानते हैं. इन सपनों को सच करने वाली कुछ महिलाओं के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं:

1. शुची मुखर्जी, Limeroad

लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से इकोनॉमिक्स ग्रेजुएट शुची मुख़र्जी LimeRoad की फ़ाउंडर और सीईओ हैं. आज Limeroad हर लड़की की मनपसंद लाइफ़स्टाइल और एक्सेसरीज़ की वेबसाइट है. शुची को LimeRoad का आईडिया अपनी मैटरनिटी लीव के दौरान आया था. वो वर्ल्ड में ‘High Potential Leaders Under 40’ की 15 महिलाओं में से एक रही हैं. आज उनकी कंपनी 20 मिलियन डॉलर के टर्नओवर के क़रीब पहुंच चुकी है.
2. चेतना सिन्हा, मान देशी तरंग वाहिनी

मान देशी तरंग वाहिनी को चलाने वाली मान विकास सामाजिक संस्था की फ़ाउंडर चेतना सिन्हा हैं. ये रेडियो महिलाओं द्वारा चलाया जाता है. इसके कंटेट से लेकर ब्रॉडकास्ट तक सब कुछ महिलाएं ही करती हैं. इस चैनल को मान तालुक के क़रीब 102 गांवों में प्रसारित किया जाता है और इसमें कुल 12 महिला वॉलंटियर्स काम करती हैं. इस चैनल में काम करने वाली ज़्यादातर महिलाएं पढ़-लिखी नहीं हैं फिर भी वो इतने अच्छे से रेडियो को संभालती हैं.
3. प्रेमा गोपालन, स्वयं शिक्षा प्रयोग

प्रेमा गोपालन के स्वयं शिक्षा प्रयोग की स्थापना के बाद महिलाएं ख़ुद को सक्षम बनाने में सफ़ल रहीं. इससे उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है. इसकी स्थापना उस दौरान हुई थी जब 1993 में आए भूकंप में महाराष्ट्र का लातूर पूरी तरह से ख़त्म हो चुका था. तब प्रेमागोपालन ने गांवों की क़रीब 1,300 महिलाओं के साथ मिलकर पुनर्स्थापन प्रोजेक्ट की शुरूआत की. साल 1998 तक सबके घर बन गए और ये प्रोजेक्ट सफ़ल हुआ.
4. उपासना टाकू, Mobikwik

कश्मीर की रहने वाली उपासना टाकू Mobikwik की को-फ़ाउंडर हैं. इन्होंने जालंधर एनआईटी से इंजीनियरिंग और अमेरिका की स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी अपनी पढ़ाई की है. पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिकी कंपनी डिजिटल वॉलेट Pay Pal में जॉब की. ग्रीन कार्ड होल्डर होने के बावजूद वो भारत वापस आईं और उन्होंने अपने पति बिपिनप्रीत सिंह के साथ 2009 में Mobikwik लॉन्च किया.
5. मोनिशा नारके, RUR

अमेरिका की स्टैंडफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से MS डिग्री लेने वाली मोनिशा नारके का सपना इंजीनियर बनने था. मगर उन्हें विदेश में न रहकर भारत वापस आना था और वो अपने देश के लिए कुछ करना चाहती थीं. इसके चलते उन्होंने मुंबई के कचरे को ख़त्म करने के लिए RUR (Are Your Reducing, Reusing, Recycling?) नाम के एनजीओ की शुरूआत की. इसके ज़रिए वो कचरे को रिसाइकल कर कुछ इस्तेमाल करने वाली चीज़ें बनाकर लोगों को जागरूक करती हैं. कुछ समय पहले उन्होंने छात्रों और शिक्षकों के साथ मिलकर टेट्रा पैक से पार्क के लिए बेंच और कचरा पेटी बनाई है.
6. महादेवी नंदीकोलमैथ

बचपन में ग़रीबी से तंग आकर आत्महत्या करने के बारे में सोचने वाली महादेवी आज एक सशक्त बिज़नेस वुमेन हैं. उनका बिज़नेस रोटी बनाने का है. इसमें उनके साथ 100 ग़रीब महिलाएं काम करती हैं.
7. वंदना लूथरा, VLCC

VLCC की सीईओ वंदना लूथरा ने इसकी शुरूआत 1989 में अपनी छोटी सी बचत से की थी. आज ये कंपनी 11 देशों में है. जर्मनी, यूके और फ़्रांस से पढ़ाई करने के बाद वंदना ने दिल्ली के पॉलिटेक्निक फ़ॉर वीमेन से प्रोफ़ेशनल कोर्स की डिग्री ली. 2013 में पद्म श्री से सम्मानित वंदना को 2015 में फ़ॉर्च्यून इंडिया ने 33 सबसे पावरफ़ुल बिज़नेस वीमेन की लिस्ट में शामिल किया गया था.
8. लतिका चक्रबर्ती, पोटली वेंचर

बचपन से सिलाई का शौक़ रखने वाली लतिका चक्रबर्ती ने 89 साल की उम्र में अपना एक ऑनलाइन बिज़नेस शुरू किया. इसके तहत वो पुरानी साड़ियों के इस्तेमाल से पोटली बनाती हैं. उनकी इस पोटली को भारत ही नहीं, बल्कि विदेश में भी ख़ूब ख़रीदा जाता है. अपने पोते द्वारा आइडिया देने के बाद लतिका जी ने इस बिज़नेस की शुरूआत की थी.
9. मीरा जाटव, ख़बर लहरिया

मीरा जाटव ‘निरंतर’ नाम के एनजीओ द्वारा 2002 में स्थापित ख़बर लहरिया की कार्यकारी अधिकारी हैं. इस अख़बार का सारा काम बिहार की ग्रामीण महिलाएं करती हैं. लिखने से लेकर डिज़ाइन करने तक हर काम की ज़िम्मेदारी महिलाओं की ही होती है. इस अख़बार की रोज़ 6500 कॉपियां पब्लिश होती हैं. यूपी और बिहार तक पहुंचने वाले इस अख़बार के क़रीब 80 हज़ार रीडर हैं. मीरा ने ख़बर लहरिया को सवांददाता के तौर पर जॉइन किया था. इसके बाद वो 2005 में इसकी एडिटर बनीं. आज इस अख़बार में क़रीब 40 महिलाएं काम करती हैं. 2004 में इस अख़बार को चमेली देवी जैन अवॉर्ड फ़ॉर वुमन और 2009 में यूनेस्को की तरफ़ से किंग सिजोंग साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
10. शायरी चहल, Sheroes

दूसरों के बारे में सोचने वाले लोग आज भी हैं और इसकी मिसाल हैं शायरी चहल. वो उन महिलाओं के लिए मसीहा बनीं जिन्होंने अपनी पारिवारिक ज़िम्मदेरियों के चलते अपने सपनों को भुला दिया. ऐसी महिलाओं को उन्होंने Sheroes नाम का प्लेटफ़ॉर्म दिया. इस प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए महिलाओं को कई तरह की ज़रूरी जानकारी देकर सशक्त बनाया जाता है. शायरी एक पत्रकार हैं और Sheroes की फ़ाउंडर और सीईओ हैं. इस प्लेटफ़ॉर्म से 2 हज़ार कॉर्पोरेट्स द्वारा जुड़े हैं र शीरोज़ 65 शहरों में मौजूद है.
इन्होंने अपने हौसलों से इस मुकाम को पाया है. इनकी कहानी हर किसी के लिए प्रेरणादायक है.
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