ग़ुलामी का दर्द वो ही समझ सकते हैं, जिन्होंने उसे झेला है उस तिरस्कार को सहा है. वो दर्द शायद इतना असहनीय था, जिसने कुछ लोगों को कठोर बना दिया. ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि ग़ुलामी हमारी क़िस्मत नहीं हो सकती हैं. आज़ाद होने का हक़ हमें भी है. शायद उनकी इसी सोच ने उन्हें क्रांतिकारी बना दिया और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ वो चट्टान बना दिया, जिसे तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. 


भारत को आज़ाद कराने में कई सवतंत्रता सेनानियों ने अपनी भूमिका निभाई. इन्हीं में से थीं, ये महिला स्वतंत्रता सेनानी, जिनके बारे में थोड़ा जानते हैं:

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1. मातंगिनी हाज़रा

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मातंगिनी हाज़रा को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के चैंपियन के रूप में जाना जाता था. लोगों पर इनका प्रभाव इतना ज़्यादा था कि अंग्रेज़ इस बात से डरने लगे थे. उन्हें डर था कि ये लोगों को आज़ादी के लिए उकसाने में क़ामयाब रहेंगी. इसी के चलते अंग्रेज़ों ने इनकी गोली मारकर हत्या करवा दी. मगर हज़रा फिर भी पीछे नहीं हटीं और जुलूस में ‘वंदे मातरम!’ का नारा लगाते हुए आगे बढ़ीं.

2. भोगेश्वरी फ़ुकनानी

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भारत छोड़ो आंदोलन में कई महिलाएं शामिल हुईं उनमें से एक बड़ा नाम भोगेश्वरी फ़ुकनानी का था. जब क्रांतिकारियों ने बेरहमपुर में अपने कार्यालयों का नियंत्रण वापस ले लिया था, तब उस माहौल में पुलिस ने छापा मार कर आतंक फ़ैला दिया था. उसी समय क्रांतिकारियों की भीड़ ने मार्च करते हुए ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाए. उस भीड़ का नेतृत्व भोगेश्वरी ने किया था. उन्होंने उस वक़्त मौजूद उस कैप्टन को मारा जो क्रांतिकारियों पर हमला करने आए थे. बाद में कप्तान ने उन्हें गोली मार दी और वह जख़्मी हालात में ही चल बसी.

3. वेलु नचियार

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वेलु नचियार शिवगंगा रियासत की रानी थीं. वो भारत में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली पहली वीरांगना थी. उन्हें तमिलनाडु में ‘वीरमंगई’ नाम से भी जाना जाता है. 

4. कनकलता बरना

आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने का सपना देखने वाली कनकलता 17 साल की उम्र में इस लड़ाई शामिल होना चाहती थीं. मगर नाबालिग होने की वजह से वो आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल नहीं हो सकीं. फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और मृत्यु बहिनी में शामिल हो गईं. असम में 1924 में पैदा हुई, कनकलता असम के सबसे महान योद्धाओं में से एक थीं. वो असम से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू की गई स्वतंत्रता पहल के लिए ‘करो या मरो’ अभियान में शामिल हो गईं. यही नहीं, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान असम में भारतीय झंडा फहराने के लिए आगे बढ़ते हुए उनकी मृत्यु हो गई.

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5. राज कुमारी गुप्ता

चंद्रशेखर आज़ाद के काकोरी षड़यंत्र में गुप्तचर के रूप में शामिल थीं, राज कुमारी गुप्ता. उनका काम गुप्त रूप से क्रांतिकारियों को संदेश और आग्नेयास्त्र ले जाकर देना था. ऐसी ही एक यात्रा के दौरान अपने अंडरगारमेंट्स में आग्नेयास्त्र छिपाते हुए, उन्हें उनके तीन साल बेटे के साथ गिरफ़्तार कर लिया गया.

6. लक्ष्मी सहगल

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लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी थीं. वे आज़ाद हिन्द फ़ौज की अधिकारी और आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं. वे व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आईं. द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी भूमिका के लिए बर्मा जेल में सज़ा काटकर, वो नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित सेना में ख़ुद को नामांकित करने के लिए अपनी मातृभूमि लौट आईं. वे आजाद हिन्द फ़ौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं.

7. कमलादेवी चटोपाध्याय

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कमलादेवी देशभक्त नेता के रूप में सक्रिय भूमिका के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ़्तार होने वाली भारत की पहली महिला थीं. साथ ही, वो विधानसभा के लिए पहली महिला उम्मीदवार भी थीं. उन्होंने मुख्य रूप से भारत में महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाने की दिशा में काम किया, थिएटर और हस्तशिल्प जैसी खोई प्रथाओं को पुनर्जीवित किया. उन्हें सामाजिक सेवा के लिए पद्म भूषण और मैग्ससे से सम्मानित किया गया था.

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8. मुलमती

मुलमती स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल की मां थीं, जिन्हें ब्रिटिश राज ने मैनपुरी षड़यंत्र मामले और काकोरी षड़यंत्र में उनकी भूमिका के लिए फ़ांसी दी थी. एक साधारण महिला, मुलमती ने स्वतंत्रता आंदोलन के अपने संघर्ष में अपने बेटे का समर्थन किया. गोरखपुर जेल में फ़ांसी से पहले बिस्मिल से मिलने पर, वो दृढ़ थीं और उन्होंने बताया कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है. 

9. बेग़म हज़रत महल

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बेगम हज़रत महल, जिसे अवध की बेग़म के रूप में भी जाना जाता है, अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पहली पत्नी थीं. वो 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान सबसे निर्णायक विद्रोह पात्रों में से एक थीं. अपने पति के निर्वासित होने के बाद, उन्होंने अवध की कमान संभाली और संघर्ष के दौरान लखनऊ का नियंत्रण भी ज़ब्त कर लिया. बाद में, बेग़म हज़रत को नेपाल वापस जाना पड़ा, जहां उनकी मृत्यु हो गई.

 10. अबादी बानो बेग़म

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अबादी बेग़म वो स्वतंत्रता सेनानी थीं, जो एक रूढ़ीवादी पृष्ठभूमि से थीं. मगर इनको कभी आज़ादी के लड़ाई में शामिल होने से नहीं रोका गया. जब उनके स्वतंत्रता सेनानी बेटे को गिरफ़्तारी किया गया, तो वो उनके समर्थन में बुर्के़ में बाहर निकलीं और उन्होंने लखनऊ में भीड़ को संबोधित किया. 

11. तारा रानी श्रीवास्तव

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बिहार के सारण में साधारण परिवार में जन्मीं तारा और उनके पति दोनों ने आज़ादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई. एक निश्चित अवसर पर, सिवान पुलिस स्टेशन में एक विरोध मार्च के दौरान, तारा के पति को जुलूस का नेतृत्व करते समय गोली मार दी गई थी, लेकिन तारा फिर भी पीछे नहीं हटीं और अपना संघर्ष जारी रखा. 

जो आप लोगों ने किया, उसके लिए हम सभी देशवासियों की तरफ़ से आपको नमन.