आज ही के दिन 1948 में ‘संयुक्त राष्ट्र असेंबली’ ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया था. इसी के साथ पहली बार अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस का ऐलान भी किया गया था. ‘अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार दिवस’ को सेलिब्रेट करने का उद्देश्य हर इंसान को उसके अधिकारों के प्रति जागरुक कराना है. मानवाधिकार के अंतर्गत हर शख़्स को आज़ादी, सम्मान और समाज में बराबरी के साथ जीने का हक़ है. संविधान के मुताबिक, इस नियम का उल्लघंन करने वाले के लिये सज़ा का प्रावधान भी है. 

ये तो बात हुई मानवाधिकार की. अब बात करते हैं देश की उन महिलाओं की, जो मानवाधिकार के लिये निडर होकर लड़ रही हैं. आइये मिलते हैं इन होनहार और जाबांज़ महिलाओं से. 

1. शाहीन मिस्त्री 

शाहीन मिस्त्री का मानना है कि हिंदुस्तान अभी भी अच्छी शिक्षा के मामले में बहुत पीछे है. यही वजह है कि उन्होंने 1991 में आकांक्षा फ़ाउंडेशन की शुरुआत की. ये एक गैर-लाभकारी संगठन जो ग़रीब परिवार के बच्चों को शिक्षित करता है. इस फ़ांउडेश के पुणे और मुंबई में मिला कर करीब 21 स्कूल हैं, जिसमें लगभग 500 शिक्षक कार्यरत हैं. 

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2. नंदिता गांधी और नंदिता शाह 

इन दोनों की मुलाक़ात एक प्रोटेस्ट के दौरान हुई थी, जिसके बाद दोनों की मुलाक़ात जल्द ही दोस्ती में तब्दील हो गई. अच्छी दोस्ती और सोच के चलते दोनों महिलाओं ने अक्षरा सेंटर की शुरुआत की. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 25 वर्षों से अक्षरा सेंटर आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाओं की सहायता करता आ रहा है. इसके साथ ही उन्हें उच्च शिक्षा के लिये प्रोत्साहित करने का काम भी करता है. 

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3. नीलम जैन 

नीलम जैन ने 2017 में PeriFerry नामक संगठन की स्थापना की थी. ये संगठन ट्रांसजेंडर लोगों की पहचान और उन्हें नौकरी देकर नई ज़िंदगी शुरू करने में मदद करता है. PeriFerry चेन्नई में स्थित है, जो कि उन्हें नौकरी और शिक्षा के साथ-साथ कम्यूनिकेशन, शिष्टाचार और मुफ़्त कंप्यूटर प्रशिक्षण भी देता है. 

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4. कृति भारती 

बाल विवाह अब भी देश के लिये एक बड़ी समस्या बना हुआ है. बस इसी बड़ी समस्या से निपटने के लिये कृति ने एक अहम कदम उठाया है. वो अब तक हज़ारों लड़कियों को बाल विवाह का शिकार होने से बचा चुकी हैं. कृति सारथी ट्रस्ट की संस्थापक हैं, जिसकी शुरुआत 2011 में हुई थी. 

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ये महिलाएं तो अपना काम कर रही हैं. अब बारी आपकी है. अपने अधिकारों को पहचानिये और उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाइये. 

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