A Trans Woman Amruta Soni Story: समाज में ट्रांसजेंडर्स को घृणा भरी नज़रों से देखा जाता है. उन्हें सोसाइटी में भेदभाव, प्रताड़ना आदि सामना करना पड़ता है. हमारी तरह उनके लिए दुनिया में चल पाना इतना आसान नहीं है. उनको घर-परिवार के साथ-साथ इस समाज से भी लड़ना पड़ता है तब जाकर उनकी ज़िंदगी चल पाती है.
हां, एक और बात, समाज उन्हें हमेशा एक पैसे मांगने वाले या भिखारी समझता है. लेकिन ये सारी रूढ़िवादी मानसिकता रखने वाले लोगों को कई बार ‘ट्रांस कम्युनिटी’ ने मिसाल कायम करके करारा जवाब दिया है. उनमें से एक ट्रांस वुमेन अमृता अल्पेश सोनी भी हैं. जिन्होंने HIV को मात देकर और अपनी कम्युनिटी को सशक्त करने का बीड़ा उठाया है. चलिए हम अपने #DearMentor कैंपेन के माध्यम से उनकी कहानी आपको बताते हैं.
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चलिए जानतें हैं कैसे ट्रांस वुमन होकर अमृता ने अपनी कम्युनिटी की सहायता की-
अमृता अल्पेश सोनी का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर शहर में हुआ था
अमृता का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर शहर के एक जनरल कैथोलिक परिवार में हुआ था. जहां बचपन में जब अमृता अपनी मां की साड़ी पहनती थीं, तो सब उनका मज़ाक उड़ाते थे. अक्सर अमृता के पिता और माता का इसी बात पर झगड़ा होता था कि ‘अमृता का चाल चलन ठीक नहीं है’ जिसके कारणवश दोनों ने कुछ समय बाद ही एक दूसरे को तलाक दे दिया.
इस बात से अमृता बिलकुल टूट सी गई थी. अमृता ने बाद में अपनी माता के साथ रहना शुरू कर दिया. लेकिन अमृता की दिक्कतों को उनकी मां भी नहीं समझ पाई और उन्होंने अमृता को स्विमिंग क्लास में डाल दिया. ताकि उनके अंदर Masculinity आए.
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जब अमृता की माता को लगा कि उनके अनुसार अमृता में बदलाव नहीं आ रहे हैं, तो उन्होंने उसे 16 वर्ष की आयु में दिल्ली पढ़ने भेज दिया. ताकि वो और लड़कों के तौर तरीक़े सीख पाए. लेकिन वहां जाकर अमृता की किस्मत में कुछ और दर्दनाक होना ही लिखा था. वहां जाकर अमृता के ही परिवार में से किसी ने उसके साथ रेप किया. बाद में किसी भी तरह की मेडिकल हेल्प न मिलने के कारण उन्हें बहुत दुख झेलना पड़ा. वो शर्म के कारण पुलिस स्टेशन भी नहीं जा पाई. अमृता थक हारकर अपनी मां के पास गईं और वहां उन्होंने अमृता को 100 रुपये दिए और ज़िंदगी में कुछ अच्छा करने को कहा.
अमृता कहती हैं- “हमारे पास जीने, प्यार करने और खुद को शिक्षित करने की स्वतंत्रता नहीं है. क्यों? और कब तक? मेरे बच्चों का क्या होगा?”
अमृता ने अपने घरवालों का घर छोड़ दिया और पुणे शिफ़्ट हो गई. जीवन यापन करने के लिए अमृता हॉस्पिटल के बेंच पर सोती थी, अपनी पहचान लोगों से छुपाने के लिए बिलकुल पुरुषों की तरह कपड़े पहनती थीं. वहीं काम करते वक़्त उनकी पहचान ‘ट्रांसजेंडर कम्युनिटी’ से हुई. ये अमृता के लिए बिलकुल अंधेरे में रौशनी की तरह थी.
ट्रांसजेंडर कम्युनिटी से मिलने के बाद अमृता ने सर्जरी भी करवाई. लेकिन अमृता समाज में अपनी आवाज़ उठाने के लिए ठीक से खुद को शिक्षित करना चाहती थीं. जिसके लिए उन्हें सेक्स वर्कर बनना पड़ा. इस काम से वो जितने भी पैसे कमाती थीं, वो अपनी पढ़ाई में लगा दिया करती थीं.
दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन पूरी की
अमृता ने अपनी ग्रेजुएशन दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से पूरी की और पुणे के सिम्बायोसिस यूनिवर्सिटी से MBA की पढ़ाई की. अमृता अभी तक समझ नहीं पा रहीं थी कि ट्रांसजेंडर के लिए समाज में कोई काम और दर्जा क्यों नहीं मिल रहा है. इसी बीच अमृता की पहचान अल्पेश सोनी से हुई और उन्होंने एक दूसरे से शादी कर ली. लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनके पति उन्हें धोखा दे रहे हैं, तो 2012 में उन्होंने उसे छोड़ दिया.
2012 में HIV पॉज़िटिव निकली अमृता
2012 में अमृता को पता चला कि वो HIV पॉज़िटिव है. ये उनके रास्ते में बहुत बड़ी दिक्कत थी. लेकिन बिना हार माने हुए उन्होंने डटकर इस मुश्किल का सामना किया और अपनी कम्युनिटी के लोगों को भी आशा दी. उन्होंने कहा-
“मैंने एक ऐसे समाज को नहीं छोड़ने का संकल्प लिया है जो मेरे लिए निर्दयी रहा है. इसके बजाय, मैं इसमें सुधार करना चाहती हूं,”
2015 में, उन्होंने Pennsylvania Convention Center द्वारा आयोजित 14वें वार्षिक फिलाडेल्फिया ट्रांस हेल्थ कॉन्फ्रेंस में भारत में एक ट्रांस महिला और एचआईवी के साथ रहने वाले व्यक्ति होने के “दोहरे कलंक (Double Stigma)” के बारे में बात की.
प्रोजेक्ट विहान के तहत हिंदुस्तान लेटेक्स फैमिली प्लानिंग प्रमोशन ट्रस्ट के साथ छत्तीसगढ़ में एक वकालत अधिकारी के रूप में काम करने के बाद, अमृता ने रांची में एक NGO TRY के साथ हेल्थ निर्देशक के रूप में भी काम किया था.
अमृता कहती हैं, “मैं नर्वस हूं लेकिन खुश हूं. मैं दुनिया को बताना चाहता हूं कि ट्रांसजेंडर लोग सिर्फ भीख मांगने के लिए पैदा नहीं होते हैं. वो काम कर सकते हैं और जेंडर की पहचान से परे भी जीवन जी सकते हैं.”
2021 में अमृता रांची में राष्ट्रीय लोक अदालत (National Lok Adalat) बेंच की पहली ट्रांस सदस्य बनीं. जिसके ज़रिये वो राज्य के 44 जेल के लोगों को Sexuality के बारे में शिक्षित करती हैं.
अमृता के जज़्बे को सलाम है.