‘तुम छोड़ो, ये लड़कियों का काम नहीं है.’

‘लड़की हो, लड़की की तरह रहो.’
‘लड़कियां सब कुछ नहीं कर सकती हैं.’

21वीं सदी में आने के बावजूद देश में आज भी ये बातें सुनने को मिलती हैं. महिलायें कहां से कहां पहुंच गईं, पर कुछ लोगों के दिमाग़ से ऐसी बातें कभी नहीं निकल सकतीं. 

वक़्त बेवक़्त महिलाओं ने ऐसी सोच वालों को अपने अचीवमेंट्स से चारों खाने चित्त किया है. ऐसी ही महिला थीं आनंदीबाई जोशी 

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कौन थीं आनंदीबाई जोशी? 


31 मार्च, 1865 में महाराष्ट्र के एक रूढ़िवादी परिवार में ‘यमुना’ का जन्म हुआ. मात्र 9 साल की उम्र में उनका विवाह, 3 बार विधुर हो चुके और उम्र में तीन गुना बड़े व्यक्ति, गोपाल जोशी से कर दिया गया. विवाह के बाद गोपाल जोशी ने उनका नाम आनंदी रख दिया. गोपाल उस समय के प्रगतिशील विचारधारा वाले गिने-चुने व्यक्तियों में से एक थे. गोपाल जोशी ने आनंदी से इसी शर्त पर शादी की थी कि उन्हें विवाह के बाद आनंदी को शिक्षित करने की स्वतंत्रता मिले. गोपाल ने आनंदी को मराठी, अंग्रेज़ी और संस्कृत पढ़ाया. 

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शिक्षा को लेकर उन्मादी थे आनंदी के पति, गोपाल जोशी 


आमतौर पर 19वीं शताब्दी के पति अपनी पत्नियों को खाना न बनाने के लिए पीटते थे. एक बार गोपाल ने आनंदी को पढ़ाई छोड़कर रसोई में खाना बनाते हुए देख लिया. गोपाल ने गुस्से में आनंदी को बुरी तरह पीटा. आनंदी के माता-पिता के विरोध के बावजूद गोपाल ने आनंदी को शिक्षित बनाया. 

क्या आप यक़ीन करेंगे कि ये बाल विवाह की शिकार महिला आगे चलकर डॉक्टर बनने वाली भारत की पहली महिला बनीं? 

एक बच्ची से विवाह करने के बावजूद गोपाल जोशी स्त्री शिक्षा पर काफ़ी ज़ोर देते थे. 19वीं शताब्दी में ये किसी महापाप से कम नहीं था! 

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यूं शुरुआत हुई डॉक्टर बनने के सफ़र की 


14 की उम्र में आनंदी मां बनीं, पर चिकित्सा के अभाव में 10 दिन बाद ही उनके बच्चे का देहांत हो गया. 14 वर्ष की उम्र में आनंदी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. इसके बाद आनंदी ने देश में चिकित्सा सुविधा सुधारने की ठानी. आनंदी ने अपने पति को बताया कि उन्हें डॉक्टर बनना है. गोपाल जोशी ने उनके निर्णय का समर्थन किया. 

आनंदी के पति ने अमेरिकी मिशनरी को एक चिट्ठी लिखी और आनंदी को अमेरिका में पढ़ाई करने का अवसर देने का आग्रह किया. गोपाल ने वहां अपने लिये नौकरी की भी बात की. 1883 में गोपाल जोशी का पश्चिम बंगाल ट्रांसफ़र हो गया और उन्होंने आनंदी को अकेले की अमेरिका जाने के लिए मनाया. 

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अमेरिका में जीवन 


आनंदी ने पेनसिलवेनिया के विमेन्स मेडिकल कॉलेज में आवेदन दिया और उन्हें वहां एडमिशन मिल गया. 19 की उम्र में आनंदी ने अपनी मेडिकल ट्रेनिंग शुरू की. अमेरिका में आनंदी की तबीयत काफ़ी ख़राब हो गई, कहा जाता है कि भारत में ही वे बीमार रहती थीं. अमेरिका की जलवायु और खान-पान के साथ उनका शरीर सामंजस्य नहीं बिठा पाया और उन्हें अमेरिका में टीबी हो गई. इन सब के बावजूद उन्होंने अपनी एमडी की पढ़ाई नहीं छोड़ी. 

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लोकमान्य तिलक और रानी विक्टोरिया से मिली थी शुभकामनायें


केसरी के संपादक, लोकमान्य तिलक ने आनंदी को शुभकामना संदेश और 100 रुपये भेजे थे. 

आनंदी का सफ़र इतना उत्साहवर्धक था कि तब की इंग्लैंड की महारानी, रानी विक्टोरिया ने उन्हें शुभकामना संदेश भेजा था. अमेरिका से मेडिकल डिग्री हासिल करने वाली, भारतीय मूल की पहली महिला थीं. 

भारत लौटने पर हुआ भव्य स्वागत 


जब 1886 में आनंदी भारत लौटी तो उनका भव्य स्वागत हुआ. महाराष्ट्र के कोल्हापुर क्षेत्र में बने अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में उन्हें बतौर फ़िज़िशियन-इन-चार्ज नौकरी मिली. 

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मात्र 22 की उम्र में निधन 


22वें जन्मदिन से लगभग 1 महीने पहले, आनंदी की मृत्यु हो गई. अपना मेडिकल कॉलेज खोलने का उनका सपना, सपना रह गया. पूरे देश ने उनकी मौत का शोक़ मनाया था. उनकी अस्थियों को न्यूयॉर्क के पोकिप्सी की एक सेमेट्री में रखा गया था.