भारत के सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों में अब तक कई महिला जज नियुक्त हो चुकी हैं. इस दौरान अधिकतर महिला जजों ने बेहद शानदार काम किया. इनमें से कुछ जज तो ऐसी भी थीं जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज़ है. लेकिन क्या आप जानते हैं भारत की पहली महिला जज कौन थीं?

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बता दें कि भारत की पहली महिला जज जस्टिस अन्ना चांडी थीं. अन्ना को महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के लिए भी जाना जाता था. अन्ना चांडी का जन्म 4 मई 1905 को केरल के त्रिवेंद्रम के एक ईसाई परिवार में हुआ था. वो बचपन से ही एडवोकेट बनना चाहती थी. इसलिए कॉलेज की पढ़ाई के बाद उन्होंने लॉ कॉलेज में दाखिला ले लिया. लॉ कॉलेज में दाखिला लेना उनके लिए आसान नहीं रहा, कॉलेज में उनका मज़ाक उड़ाया जाता था.

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क़ानून की डिग्री लेने वालीं अपने राज्य की पहली महिला

अन्ना चांडी एक मज़बूत इरादों वाली शख़्सियत थीं. सन 1926 में उन्होंने क़ानून (लॉ) में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की थी. उस दौर में वो कानून की डिग्री लेने वालीं अपने राज्य की पहली महिला थीं. 1929 में उन्होंने बैरिस्टर के तौर पर अदालत में प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने एक मामूली मुंसिफ़ से लेकर देश की पहली महिला जज, फिर केरल हाई कोर्ट की न्यायाधीश तक का सफ़र तय किया.

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महिला अधिकारों के लिए खोला मोर्चा   

सन 1928 में त्रावणकोर में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं इस पर एक सभा चल रही थी. इस मुद्दे पर सबकी अपनी अपनी दलीलें थीं. इस दौरान त्रिवेंद्रम में राज्य के जाने-माने विद्वान टी.के.वेल्लु पिल्लई शादीशुदा महिलाओं को सरकारी नौकरी देने के विरोध में भाषण दे रहे थे. तभी 24 साल की अन्ना चांडी मंच पर चढ़ीं और सरकारी नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण देने के पक्ष में एक-एक कर दलील देने लगीं. उस समय ऐसा लग रहा था मानो ये बहस किसी मंच पर न होकर अदालत में चल रही हो. 

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अन्ना चांडी इस सभा में भाग लेने के लिए ख़ास तौर पर कोट्टम से त्रिवेंद्रम पहुंची थीं. अन्ना चांडी के इस भाषण से राज्य में महिला आरक्षण की मांग को म़जबूती मिली. इसके बाद ये बहस अख़बार के ज़रिए आगे भी चलती रही. आज भी महिला आरक्षण की मांग की शुरुआत करने वाली मलयाली महिलाओं में अन्ना चांडी का नाम सबसे ऊपर आता है. केरल हाईकोर्ट की जज बनने के बाद भी वो लगातार महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं.

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1948 में बनीं देश की पहली महिला जज 

सन 1937 में केरल के दीवान सर सी.पी रामास्वामी अय्यर ने अन्ना चांडी को मुंसिफ़ के तौर पर नियुक्त किया. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. सन 1948 में अन्ना चांडी देश की पहली महिला जज बनीं. 9 फ़रवरी 1959 को केरल हाई कोर्ट में नियुक्त होने के बाद वो किसी भारतीय उच्च न्यायालय में नियुक्त होने वाली पहली महिला न्यायाधीश भी थीं. 

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महिला अधिकारों के लिए उठाई आवाज

अन्ना चांडी ने 5 अप्रैल 1967 तक केरल हाईकोर्ट के न्यायधीश के पद पर सेवाएं दीं. हाईकोर्ट से सेवानिवृत्ति के बाद चांडी को ‘लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया’ में नियुक्त किया गया. इस दौरान उन्होंने बड़े पैमाने पर महिला अधिकारों के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी. चांडी ने ‘श्रीमती’ नाम से एक पत्रिका भी निकाली जिसमें उन्होंने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को जोर-शोर से उठाया था. उन्होंने ‘आत्मकथा’ नाम से अपनी ऑटोबायोग्राफी भी लिखी थी.

आख़िकार 20 जुलाई 1996 को 91 साल की उम्र में महिला अधिकारों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने वाली ये इस अन्ना चांडी इस दुनिया से चली गईं.