महिलाओं के लिए ये समाज हमेशा से थोड़ा कठोर और पक्षपातपूर्ण भरा रहा है. जहां महिलाएं कभी-भी सुरक्षित नहीं हैं, जो समाज इन्हें सुरक्षा नहीं दे सकता है उसीसमाज में रहने वाले लोगों से पूछकर निर्णय लेने होते हैं. उन्हें लोगों से डरकर वो करना पड़ता है जो नहीं करना चाहतीं. कई बार ऐसा होता है कि मांएं अपनी लड़कियों को सुंदर नहीं लगने देती या उन्हें लड़का बनाकर रखती हैं. ऐसा ही कुछ अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली जनजाति में भी महिलाओं के साथ होता है. हालांकि, यहां लड़कियों को लड़का तो नहीं बनाते, लेकिन सुंदर नहीं दिखने देते.

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अपतानी जनजाति

वैसे कहते हैं कि इस जनजाति में ऐसा पहले होता था, जो अब बदल चुका है. मगर इस जनजाति की महिलाओं ने बहुत सहा है. इसलिए आज इस जनजाति के बारे में जानेंगे. इस जनजाति का नाम अपतानी जनजाति (Apatani Tribe) है, जो अरुणाचल प्रदेश की ज़ीरो घाटी (Ziro Valley) के ज़ीरो गांव में रहती है. यहां की महिलाएं ख़ुद को बदसूरत दिखाने के लिए नाक में काले रंग की लकड़ी की ठेपियां लगा लेती थीं, इसलिए आज भी जो पुरानी महिलाएं हैं उन्हें आप इन्हीं काले रंग की लकड़ी की ठेपियों में देखेंगे.

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महिलाओं के ऐसा करने के पीछे दो वजहें थीं. इसमें से पहली वजह, घुसपैठियों को महिलाओं से बचाना था ताकि घुसपैठिए गांव में आए तो यहां की महिलाओं की ख़ूबसूरती देखकर उन्हें उठा न ले जाएं. और दूसरी वजह, जब लड़कियों को पहली बार मासिकधर्म होते थे तो उनकी नाक में ये लकड़ी की ठेपी फ़िट कर दी जाती थी, जिससे पता चल जाता था कि लड़की बड़ी हो गई है. नाक में ठेपी लगाने के अलावा, माथे से ठोढ़ी तक लंबी काली लाइन भी बना दी जाती थी. कहते हैं कि, पहले अपतानी जनजाति पर बहुत हमले होते थे और हमलावर यहां की महिलाओं को उठा ले जाते थे. इसलिए यहां की महिलाओं ने बदसूरत रहना शुरू कर दिया.

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हमलावरों से बचने के लिए यहां की महिलाओं ने बदसूरत तो रहना शुरू कर दिया, लेकिन बदसूरत रहने का ये तरीक़ा उनके स्वास्थ के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए इसका विरोध होने लगा और विरोध की पहल इसी जनजाति के पुरूषों ने की. आपको बता दें, विरोध करने के बाद सरकार ने इस परंपरा को बंद करने का आदेश दिया और साल 1970 में ये परंपरा पूरी तरह से बंद हो गई.

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नाक में ठेपी लगाने की परंपरा को यापिंग हुर्लो कहा जाता है. हालांकि, अब जो नई पीढ़ियां हैं उन्हें इस दर्द से नहीं गुज़रना पड़ता क्योंकि वो ख़ुद को शिक्षित कर रही हैं ताकि यहां के लोगों को अच्छा सोच दे सकें. मगर आज से कई सालों पहले यहां महिलाओं को ख़ुद को बचाने के लिए इस दर्द से गुज़रना पड़ता था और सुंदर होते हुए भी बदसूरत बनकर रहना पड़ता था.

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इस परंपरा की बदसूरती से हटकर देखें तो अरुणाचाल प्रदेश एक ख़ूबसूरत जगह है. यहां की सुंदर झीलें, साफ़ नीला आसमान और चारों तरफ़ पहाड़ों को ख़ूबसूरती से ढकती हरियाली किसी को भी दीवाना बना दें.

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यहां के लोग पहले लकड़ी के घर बनाकर रहते थे, जो चारों तरफ़ हरियाली और लकड़ी की बाड़ होती थी, हालांकि अभी भी ऐसे घर हैं, लेकिन बदलते वक़्त के साथ यहां घरों की भी रूप-रेखा बदल रही है.