Arati Hiremath Founder of Artikrafts: बुनकरों का काम मशीनों के आ जाने से कठिन हो गया है. मशीन से जल्दी काम हो जाता है जबकि हाथ से कढ़ाई कर कपड़े की ख़ूबसूरती को बढ़ाना एक लंबा और समय लेने वाली प्रक्रिया है. 

कुछ सालों पहले कर्नाटक के कसूती साड़ी के बुनकरों का भी हाल बेहाल था, तब उनकी मदद के लिए आगे आई एक महिला. जिसने न सिर्फ़ बुनकरों को काम दिलाया बल्कि एक NGO की शुरुआत कर उनके अधिकारों के लिए लड़ाई भी लड़ी. अब उनकी साड़ी देश के संसद भवन तक पहुंच चुकी है. ऐसी ही महिला की कहानी आज हम अपने कैंपेन #DearMentor के ज़रिए आपको बताने जा रहे हैं. 

महिला बुनकरों की मदद करने से हुई शुरुआत

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हम बात कर रहे हैं Artikrafts की फ़ाउंडर आरती हिरेमठ की. जो इस कंपनी के ज़रिये कर्नाटक की प्राचीन कसूती कढ़ाई की कला और उनके बुनकरों बचाए रखने के लिए काम कर रही हैं. मगर आरती के लिए भी ये काम करना आसान नहीं था. बात 1989 की है, जब वो शादी के बाद बेंगलुरू से धारवाड़ पहुंचीं. यहां एक दिन उनके दरवाज़े पर कुछ महिला बुनकरों ने दस्तक दी. वो बड़ी-परेशान थीं और अपने लिए रोज़ी-रोटी का इंतजाम करने के सिलसिले में उनसे मिलने आई थीं.

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महिला बुनकरों की मदद की

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दरअसल, आरती जब बेंगलुरु में रहती थीं तो उन्हीं की बनाई कसूती कढ़ाई वाली साड़ियां ख़रीद पहनती थीं. धारवाड़ के कसूती केंद्र से ये साड़ियां बेंगलुरु पहुंचती थीं, आरती की मां से उनकी बहुत अच्छी जान-पहचान थीं. ऐसे में आरती ने आर्थिक तंगी से जूझ रही इन महिलाओं की मदद करने के बारे में सोचा. आरती ने उनका बेंगलुरु की कुछ बड़ी दुकानों से संपर्क करवाया जो उन्हें नियमित रूप से ऑर्डर दे सकें.

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खोला ख़ुद का बिज़नेस

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उस घटना के एक दशक बाद जब उनके बच्चे बड़े हो गए तो आरती ने ख़ुद का बिज़नेस शुरू करने के बारे में सोचा. वो कसूती बुनकरों की कला को अपने आस-पास के लोगों और प्रदर्शनी केंद्र में दिखाने लगीं. इससे लोगों में इस कला के प्रति दिलचस्पी जगी और उन्होंने कसूती साड़ियां, इस कढ़ाई से बने बच्चों के कपड़े, बैग और पुरुषों के कुछ परिधान बनाकर बेचना शुरू किया. 2002-03 तक वो पूरे इलाके में मशहूर हो गईं. उनके कारीगरों द्वारा बनाए गए कपड़े लोगों पसंद आने लगे.

बुनकरों के अधिकारों के लिए किया काम

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स्थानीय प्रशासन ने भी उनकी कार्य की सराहना की. 2003 में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर SEMA (Society For Empowerment and Mobilisation Of Artisans) नाम के एनजीओ की स्थापना की. ये संगठन स्थानीय कारीगरों के कौशल को बढ़ाने में उनकी मदद करता. इसके ज़रिये उन्हें स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा और उनके बच्चों के लिए छात्रवृत्ति जैसे सरकारी लाभ प्राप्त करने में भी मदद की.

2011 में आए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर

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मगर 2010 में दोस्तों ने इस संगठन से हाथ खींच लिए और इसे मजबूरन आरती को बंद करना पड़ा. आरती के मन में अभी भी बुनकरों की मदद करने की लगन थी. उन्होंने उम्मीद का दामन छोड़ा नहीं. 2011 में NIFT के कुछ स्टूडेंट्स उनसे मिले. उन्हें कसूती कारीगरों का काम बहुत पसंद आया. उनकी मुश्किलों को देख छात्रों में आरती जी के लिए फ़ेसबुक पेज बना दिया. उसे कैसे चलाना है ये भी उनको बता दिया गया.

850 महिला बुनकरों को किया ट्रेन

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यहां से उनके बिज़नेस को काफ़ी विस्तार मिला, दूर-दूर से ऑर्डर आने लगे. डिजिटल वर्ल्ड में आने से उनका बिज़नेस और तेज़ी से बढ़ने लगा. आज Artikrafts के पास 5,000 वर्ग फु़ट का घर है जिसमें एक दुकान और निर्माण इकाई भी बनी है. इसी के ज़रिये आरती बुनकरों ख़ासकर महिला बुनकरों की ज़िंदगी भी संवार रही हैं. वो इलाके की महिलाओं को कसूती कढ़ाई की ट्रेनिंग देती हैं. वो अब तक 850 औरतों को इसकी ट्रेनिंग दे चुकी हैं और इनमें से 200 उनके साथ काम कर रही हैं.

ग़रीब महिलाओं को मुफ़्त में देती हैं ट्रेनिंग

वो ग़रीब औरतों के लिए फ़्री में 5 दिन का कसूती ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाती हैं. इसमें ट्रेनिंग मिलने के बाद महिलाओं को वो काम भी देती हैं. आरती शुरुआत में उन्हें कुशन और बैग पर बुनाई करने का काम देती हैं. जब वो माहिर हो जाती हैं तो उनको साड़ी और अन्य कपड़े बनाने का काम दिया जाता है. आरती का कहना है कि इसके ज़रिये वो महीने में 5-15 हज़ार रुपये तक कमा लेती हैं. कमाई काम पर निर्भर करती है कि वो कितना काम कर रही हैं.

पीएम मोदी और सीतारमण भी पहन चुके हैं इनके कपड़े

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कसूती बुनाई की कला लगभग 1300 साल पुरानी है. ये कर्नाटक के धारवाड़, हुबली और बीजापुर इलाकों में काफ़ी फ़ेमस है. सूती धागे की मदद से इसके कारिगर कपड़े पर हाथ से मंदिर, रथ, मोर आदि की छवि बनाते हैं. Artikrafts की साड़ी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार के बजट भाषण के दौरान पहनी थी. इससे पहले पीएम मोदी जब कर्नाटक के दौरे पर पहुंचे थे तो उन्हें इसी बुनाई से बान शाल पहनाया गया था. इनके कस्टमर्स में Fabindia और iTokri जैसे ब्रैंड्स शामिल हैं. आरतीक्राफ़्ट्स हर साल 40 लाख रुपये का रेवेन्यू प्राप्त करता है. 

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आरती जी कहना है कि कसूती कढ़ाई को बचाए रखने की इस जंग उन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. दर-दर की ठोकरें भी खाई, लोगों के ताने सुने कि अब साड़ी कौन पहनता है, ये काम ठप हो जाएगा आदि. मगर उन्होंने कभी लोगों की नहीं सुनी और अपने दिल की सुनते हुए बुनकरों और अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाती रहीं. 

आरती जी का कहना है कि वो आगे भी इस बुनाई को जीवित रखने के लिए प्रयास करती रहेंगी और साथ ही बुनकरों की ट्रेनिंग भी जारी रखेंगी.