Avabai Wadia laid the foundation of family planning in India: बढ़ती जनसंख्या हमेशा से ही विश्व की सबसे बड़ी ससस्याओं में से एक रही है. किसी देश की बढ़ती आबादी वहां आर्थिक और समाजिक संकट पैदा कर सकती है. इसलिए, अधिक जनसंख्या वाले देश परिवार नियोजन पर ज़ोर देते आए हैं. वहीं, सोचने वाला विषय ये है कि भारत जनसंख्या के मामले में पूरे विश्व में दूसरे नंबर पर आता है. भारत की जनसंख्या 130 करोड़ पार कर चुकी है. 


ऐसा नहीं है कि फ़ैमिली प्लॉनिंग पर काम नहीं किए गए. 1952 में भारत विश्व का पहला ऐसा देश बना, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर परिवार नियोजन पर कार्यक्रम चलाया. वहीं, वर्ष 2016 में “मिशन परिवार विकास” की शुरुआत की गई. वहीं, राज्य स्तर पर और भी कई तरह के कार्यक्रम चलाए गए.  

वहीं, भारत के इतिहास में कई ऐसे भी समाजसेवी हुए, जिन्होंने परिवार नियोजन पर ज़ोर दिया. इसमें एक नाम अवाबाई वाडिया का भी आता है, जिन्होंने भारत में फ़ैमिली प्लाॉनिंग की नींव रखी. 

आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं Avabai Wadia के बारे में. 

अवाबाई वाडिया (Avabai Wadia) 

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अवाबाई वाडिया का जन्म भारत में नहीं बल्कि कोलंबो (श्रीलंका) में 18 सितंबर 1913 हुआ था. उनके पिता दोशबजी मुंचेरजी एक शिपिंग अधिकारी और माता पिरोजबाई अर्सेवाला हाउस वाइफ़ थीं. 19 साल की उम्र में अवाबाई वाडिया ने यूके में ‘बार परिक्षा’ पास की थी. वहीं, कहा जाता है कि उनकी इस सफलता की वजह से श्रीलंका सरकार को अपने यहां महिलाओं को क़ानून की पढ़ाई की अनुमति देने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

सामाजिक कार्यों में दिया योगदान  

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Avabai Wadia laid the foundation of family planning in India: वक़ालत की डिग्री मिलने के बाद उन्होंने सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देना शुरू कर दिया था. उन्होंने न सिर्फ़ कोलंबो बल्कि लंदन में भी लिंग भेदभाव के लिए बढ़ चढ़कर काम किया. वहीं, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनका आगमन भारत के मुंबई शहर में हुआ. वहां उन्होंने ख़ुद को समाज सेवा के क्षेत्र में पूरी तरह लगा दिया था, लेकिन उनको पहचान तब मिली जब उन्होंने परिवार नियोजन पर काम किया.   

अवाबाई वाडिया का पसंदीदा काम   

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Avabai Wadia laid the foundation of family planning in India: “द लाइट इज़ आवर्स” जो कि उनकी आत्मकथा है, में अवाबाई लिखती हैं कि, “मेरी ज़िंदगी का काम (परिवार नियोजन) स्वयं मेरे पास आ गया था, मैंने इसे ढूंढने की कोशिश नहीं की थी. मुझे ये भी कभी नहीं लगा कि वकालत को आगे बरक़रार न रखने का मेरा फ़ैसला ग़लत रहा, बल्कि मैंने जो भी कुछ किया, उसमें क़ानून एक तत्व की तरह जुड़ गया था.” 


1940 के दशक में अवाबाई वाडिया ने फ़ैमिली प्लानिंग पर काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन, उस दौरान ये एक विषय था, जिसका धार्मिक रुढ़िवादियों ने जमकर विरोध किया. वहीं, जब पहली बार अवाबाई ने ये शब्द सुना, तो वो ख़ुद भड़क गईं थीं, लेकिन एक महिला डॉक्टर की कही बात से वो काफ़ी ज़्यादा प्रभावित हुईं. उन्होंंने कहा था कि, “भारतीय महिलाओं का जीवन गर्भवती होने और बच्चों को दूध पिलाने में ही ख़त्म हो जाता है.” 

भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम   

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Avabai Wadia laid the foundation of family planning in India: अवाबाई वाडिया ने जो परिवार नियोजन के लिए कदम बढ़ाया था, उसे लेकर समाज के लोगों ने उनका विरोध किया और बहिष्कार तक कर दिया, लेकिन वो अपने काम पर निरंतर ध्यान देती रहीं. ये उनका ही प्रयास था कि 1949 में फ़ैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया ( FPAI) का गठन किया गया. अवाबाई वाडिया क़रीब 34 सालों तक इस संगठन की अध्यक्ष पद पर रहीं थीं. उनका ये संगठन गर्भनिरोधक तरीक़ों के साथ-साथ फ़र्टिलिटी सवा भी प्रदान करता था. ये सब देख उन्हें बड़ी ख़ुशी होती थी क्योंकि उन्हें कई बार गर्भपात का सामना करना पड़ा था और उनकी कोई संतान नहीं थी. 


वहीं, कार्यक्रम के तहत भारत के शहरी ग़रीबों से लेकर गांव के लोगों को जोड़ा गया. साथ ही परिवार नियोजन कार्यक्रम में नए-नए तरीक़े जोड़े गए. भजनों के साथ फ़ैमिली प्लाॉनिग के संदेश दिए जाते थे. वहीं, इस संगठन ने पेड़ लगाने से लेकर सड़क निर्माण के काम भी ज़िम्मेदारी अपने पर ले ली थी.  

साथ ही रेलों में परिवार नियोजन से जुड़ी प्रदर्शनियां भी आयोजित कई गईं, ताकि ज़्यादा लोगों तक संदेश पहुंचे. इस संगठन ने विकास सूचकांक के स्तर को बढ़ाने का काम किया. जानकारी के अनुसार, 1970s में दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के मलूर में शिशु मृत्युदर कम हो गया था, औसम उम्र बढ़ी और साक्षारता दर में भी इजाफ़ा देखा गया.    

जब आपातकाल ने परिवार नियोजन के कार्यक्रम को बदनाम किया  

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अब तक परिवार नियोजन कार्यक्रम ठीक तरीक़े से आगे बढ़ाया जा रहा था, लेकिन जैसी ही देश में आपातकाल (1975-1977) का दौर आया, इसे एक बड़ी चुनौती से गुज़रना पड़ा. इस दौरान परिवार नियोजन के नाम पर सरकार ने जबरन नसंबदी कराना शुरू कर दिया था. 


सरकार के इस कदम से ये पूरा कार्यक्रम बदनाम हो गया था. अवाबाई वाडिया इसके पक्ष में नहीं थीं. उनका मानना था कि परिवार नियोजन कार्यक्रम में लोगों की भागीदारी उनकी इच्छा से होनी चाहिए, न कि ज़ोर-जबरदस्ती. वहीं, उनका ये भी कहना था कि जो लोग परिवार नियोजन और गर्भपात को एक बता रहे हैं, वो लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों को खत्म कर रहे हैं. 

भले ही आगे चलकर राज्य व केंद्रिय सरकार ने फ़ैमिली प्लानिंग से जुड़े अन्य कार्यक्रम चलाये, पर अवाबाई वाडिया के नेक इरादों और उनकी मेहनत को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. बता दें कि वर्ष 2005 में अवाबाई वाडिया ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.