कुछ बनना है कुछ करना है, तो घर से बाहर निकलो…

बस पापा की इन्हीं बातों से मुझे मेरे सपनों को पूरा करने का हौसला मिला. करियर को लेकर आंखों में हज़ारों ख़्वाहिशें लिए, मैं कानपुर से दिल्ली आ गई. छोटे शहर से निकल कर, देश की राजधानी दिल्ली में कदम रखना मेरे लिये किसी चैलेंज से कम नहीं था. अजनबी शहर, अजनबी लोग यहां की चमक-दमक सब कुछ मेरे लिए नया था. इसके साथ ही कैसे करना है, क्या करना है, जैसे तमाम सवालों को लेकर मन में एक बैचेनी सी थी.

ये तो सिर्फ़ सफ़र का आगाज़ था, आगे बहुत कुछ होना बाकी था. शुरुआत में मास कम्यूनिकेशन में एडमिशन लिया, रहने के लिये हॉस्टल भी मिल गया. आखिरकार वो दिन आ ही गया जिसका मुझे और मेरे पापा को बेसब्री से इंतज़ार था. मुझे बड़ी मीडिया कंपनी में जॉब मिल गई थी. जॉब मिलने के बाद मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. मैं आसमान में एक आज़ाद पंछी की तरह उड़ी रही थी. पर थोड़ी देर बाद दिल में घबराहट होने लगी और वो घबराहट थी हॉस्टल छोड़ कर किराये के घर में जाने की.

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अब नई जॉब के साथ-साथ मुझे रहने के लिए एक घर की तलाश थी. दोस्त, फेसबुक, प्रॉपर्टी ब्रोकर, सबको काम पर लगा दिया. जॉब ज्वाइन करने की तारीख़ नज़दीक आ रही थी, इसलिए घर भी जल्दी चाहिए था. आख़िरकार रहने के लिए एक अच्छा घर मिल गया, लेकिन जितनी ख़ुशी मैंने अपनी सांसों में भर रखी थी, वो मकान मालिक की बोरी भर की शर्तों के नीचे आकर निकल गयी. वो भी ऐसी शर्तें जिन्हें सुनने के बाद किसी का भी दिमाग़ ख़राब हो जाये. मजबूरी की वजह से मुझे वो घर लेना पड़ गया. पर उस वक़्त मुझे एक चीज़ समझ आ गई कि कुछ Landlords की नज़रों में एक बैचलर लड़की इंसान नहीं, पैसे कमाने का बस एक ज़रिया है.

जरा उन शर्तों का नमूना देखिये:

1. नॉनवेज नहीं बना सकते

वैसे तो नॉनवेज से मेरा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है, लेकिन अगर होता तो सोचो क्या होता?

2. टाइम से घर आना होगा

हमारे प्यारे लैंडलॉर्ड का कहना था कि अगर मैं रात 10.30 बजे के बाद घर आई, तो मेरे लिये गेट नहीं खोला जाएगा. इसका मतलब अगर ऑफ़िस से घर आने में देरी हुई, तो मुझे मेरे ही रूम में जाने की इजाज़त नहीं है.

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3. लड़के और लड़कियां कोई भी रूम पर नहीं आ सकता

चलिए एक बार के लिए लड़कों का घर पर न आना समझा जा सकता है, लेकिन भला किसी को लड़कियों के आने से क्या दिक्कत हो सकती है. ये बात हज़म करना थोड़ा मुश्किल है.

4. ज़्यादा शोर-शराबा नहीं होना चाहिये

अब इन्हें कोई कैसे समझाये कि जब रूम पर कोई आयेगा ही नहीं, तो भला अकेला इंसान कैसे शोर-शराबा या हंगामा करेगा?

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5. पार्टी नहीं कर सकते

रोज़-रोज़ पार्टी करने की न ही मंशा है मेरी, न ही ज़रूरत. लेकिन अगर रूम का रेंट भर रही हूं और कभी किसी दिन कुछ दोस्तों को बुला लिया, तो क्या कोई जुर्म कर दिया?

6. समय पर चाहिये रेंट

वैसे तो लेट रेंट देकर किसी को मिलेगा भी क्या, लेकिन मेरे मकान मालिक का कहना था कि जो तारीख़ बताई है, उसी डेट पर किराया चाहिए. इसका मतलब अगर कभी पैसों की दिक्कत है, तो उनसे मदद की उम्मीद करना बेकार है.

यही नहीं, एक बार मैंने रूम पर ऑफ़िस के दोस्तों के साथ पार्टी करने की परमिशन मांगी, तो उधर से जवाब में मिला, ‘नहीं’. ख़ैर, मेरे दोस्तों ने परेशानी को समझते हुए पार्टी किसी और दोस्त के घर रख ली. इत्तेफ़ाक से उस दोस्त का घर भी उसी कॉलोनी में था. म्यूज़िक, डांस और गप-शप के साथ, हम सब काफ़ी मज़े कर रहे थे. उस दिन मैंने लैंडलॉर्ड को थोड़ा लेट आने के बारे में बता रखा था.

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मगर अगली सुबह जैसे ही मैं घर से ऑफ़िस के लिए निकल रही थी, पीछे से आवाज़ आती है कि ‘तुम लोग कितना शोर मचाते हो’. अब मेरा गुस्सा एकदम चरम पर पहुंच चुका था और मैंने भी पलट कर जवाब दिया, ‘पार्टी आपके घर पर तो नहीं थी, दूसरे के यहां थी. उसमें भी आपको कोई दिक्कत है क्या? उस दिन तय कर लिया कि अब मैं यहां नहीं रहूंगी.

दिल्ली के इस मकान मालिक से दो-चार होने के बाद मुझे एक बात तो समझ आ गई कि ये शहर जितना बड़ा है, यहां के कुछ लोगों की सोच उतनी ही छोटी है. एक लड़की, जो जॉब करती है, इंडिपेंडेंट है, वो अपने साथ-साथ दूसरों का ख़्याल भी रख सकती है. इतना ही नहीं, उसे ये भी अच्छे से पता है कि उसके लिये क्या अच्छा है और क्या बुरा, लेकिन शायद ये बात घर किराये पर देने वाले मकान मालिकों को नहीं समझ आती.

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अगर आप एक लैंडलॉर्ड हैं और मेरा ये आर्टिकल पढ़ रहे हैं, तो बस यही कहना चाहूंगी कि चाहे सारे मकान मालिक ऐसे नहीं होते होंगे, लेकिन कई हैं, जो लड़कियों को घर देते समय ऐसा व्यवहार करते हैं कि वो एहसान कर रहे हैं. भरोसा तो करके देखिये, हर लड़का या लड़की ग़लत नहीं होती. सच में दिल्ली में जॉब मिलना जितना आसान है, एक बैचलर के लिए घर मिलना उतना ही मुश्किल है.