‘जिस तरह इस घटना को अंजाम दिया गया, ऐसा लगता है कि यह दूसरी दुनिया की कहानी है. सेक्‍स और हिंसा की भूख के चलते इस तरह के जघन्‍यतम अपराध को अंजाम दिया गया. लिहाज़ा निर्भया गैंगरेप केस के इस फ़ैसले में अपराध की जघन्‍यता को तरजीह देते हुए इन दोषियों की फ़ांसी की सज़ा बरकरार रखी जाती है. इस मामले में इन दोषियों की पृष्‍ठभूमि कोई मायने नहीं रखती’. ये पंक्तियां सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को निर्भया केस का फ़ैसला सुनाते हुए कही थी. वहीं निर्भया जिसके कारण केंद्र सरकार, महिलाओं से जुड़े अपराधों पर क़ानून में बदलाव लाने पर मजबूर हो गई थी.

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एक और निर्भया..

लेकिन 2012 में हिम्मत और बहादुरी का परिचय देने वाली ये लड़की पहली ऐसी महिला नहीं है, जिसके साथ ऐसी जघन्य वारदात को अंजाम दिया गया था. आज से ढाई दशक पहले 1992 में भी एक ऐसी ‘निर्भया’ थी, जिसे शायद आज लोगों ने भुला दिया है. एक और निर्भया से मतलब भंवरी देवी से हैं, जिसने अपने साथ रेप जैसे जघन्य अपराध होने के बाद भी हार नहीं मानी. कोर्ट ने दोषियों को सजा तो दी, लेकिन नाम मात्र की. भंवरी देवी, वो महिला है जिसने पहली बार कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए क़ानून बनाने को राज्य सरकार से लेकर केंद्र तक को मजबूर कर दिया था.

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बाल-विवाह रोकने की मिली इतनी बड़ी सज़ा

भंवरी देवी एक दलित महिला थी, जिसके साथ ऊंची जाति के लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया. भंवरी का कसूर सिर्फ़ इतना था कि उसने दो बच्चों के बाल विवाह का विरोध किया था. इसी से गुर्जरों का तबका भंवरी देवी से नाराज़ हो गया था. इसका बदला लेने के लिए गुर्जरों ने भंवरी देवी के पति पर हमला कर दिया. भंवरी ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन्होंने उसका रेप कर दिया.

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22 साल में एक तारीख़ पर हुई सुनवाई

1992 में हुई यह घटना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस घटना की बदौलत सरकार को क़ानून में बदलाव करने पड़े  थे, लेकिन आज भी भंवरी देवी को न्याय नहीं मिल पाया है. कोर्ट ने भंवरी के साथ हुए रेप को मामूली अपराध समझा और सभी दोषी महज नौ महीने की सजा पाकर जेल से छूट गए. 1995 में दोषियों को बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया गया था. पिछले 22 साल में इस मामले की केवल एक बार ही सुनवाई हुई थी.

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कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा को लेकर बना क़ानून

जयपुर के गैर-सरकारी संगठन विशाखा ने भंवरी को न्याय के लिए प्रेरणा दी. इसी विशाखा संगठन के नाम पर साल 1997 में सुप्रीम ने कोर्ट ने विशाखा गाइडलाइंस जारी की थी. इसके तहत वर्क प्लेस पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा के लिए क़ानून बनाए गए, पर इसे पारित होने में कई साल लग गए. आख़िरकार, साल 2013 में यह क़ानून पारित किया गया.

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कोक स्टूडियो में जमकर बिखेरा जलवा

भंवरी ने अपने संगीत के टैलेंट को शादी के बाद निखारा. क्षेत्रीय संगीत की दुनिया में वे एक जाना पहचाना नाम हैं. एमटीवी के लोकप्रिय शो कोक स्टूडियो में अपनी आवाज़ का लोहा मनवा चुकी हैं. भंवरी क्षेत्रीय गीत के अलावा भक्ति गीत भी गाती रही हैं.

25 सालों में भी नहीं मिला इंसाफ़

इस निर्मम घटना के बाद भी भंवरी देवी ने खुद को टूटने नहीं दिया. आज भंवरी एक लोकप्रिय लोक गायिका और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वो नीरजा भनोट पुरस्कार भी जीत चुकी हैं. अपने साहस के बल पर वो आज भी कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं. भंवरी ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए क़ानून बनाने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन आजतक भंवरी को न्याय नहीं मिला है.