इंटरनेट सर्च करने पर मालूम हुआ कि आज़ाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) की स्थापना 1950 में हुई थी. देश के सबसे पहले मुख्य न्यायाधीश, हरिलाल. जे. कानिया थे.


अगर हम आपसे पूछें कि देश के सर्वोच्च न्यायालय में किसी महिला जज की एंट्री कब हुई? तो क्या आप इसका अनुमान लगा पायेंगे. जिस देश की आज़ादी के लिए पुरुषों और महिलाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था, उस देश के सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं को एंट्री मिलने में लगभग 39 साल लग गये. 

ये मुक़ाम हासिल करने वाली पहली महिला थीं, फ़ातिमा बीवी…ये नाम भारत के इतिहास में अमिट है.  

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कौन हैं फ़ातिमा बीवी? 


फ़ातिमा का जन्म, 30 अप्रैल, 1927 को केरल (तब के त्रावणकोर स्टेट) में हुआ था. फ़ातिमा ने तिरुवनंतपुरम लॉ कॉलेज से पढ़ाई की. फ़ातिमा की क्लास में सिर्फ़ 5 लड़कियां थीं, दूसरे साल तक आते-आते सिर्फ़ 3 रह गईं. 

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वकालत की दुनिया का सफ़र 


1950 में बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया की परीक्षा में टॉप करने वाली वो पहली महिला बनीं. उसी साल नवंबर में फ़ातिमा ने केरल के कोल्लम की नीचली अदालत में काम शुरू किया. हिजाबी महिला को कोर्ट में देखना लोगों को बहुत अखरता था. 

लगभग 8 साल बाद उन्होंने, केरल सबोर्डिनेट ज्यूडिशियल सर्विसेज़ में बतौर मुंसिफ़ नौकरी संभाली. बीतते सालों के साथ, फ़ातिमा सफ़लता की सीढ़ियां चढ़ने लगीं. 1968-1972 के बीच उन्होंने केरल के सबोर्डिनेट जज, 1972-1974 के बीच वे चीफ़ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट, 1974-1980 के बीच ज़िला और सत्र न्यायालय की जज, 1980-1983 के बीच इन्कम टैक्स ट्रिब्यूनल की ज्यूडिशियल मेम्बर और 1983 में केरल हाई कोर्ट के जज का पद संभाला. 

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केरल हाई कोर्ट से रिटायर होने के 6 महीने बाद फ़ातिमा को अक्टूबर 1989 में सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया. ये एक ऐतिहासिक पल था क्योंकि इससे पहले किसी भी एशियाई महिला को देश के सर्वोच्च न्यायालय में बतौर जज नियुक्त नहीं किया गया था.


कहा जाता है कि वो बेंच पर किसी भी मामले की केस हिस्ट्री लेकर बैठती थीं. सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद फ़ातिमा 1997-2001 तक तमिल नाडु में वक़ील रहीं. 

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फ़ातिमा की नियुक्ति के बाद सिर्फ़ 6 महिलायें हीं इस मुक़ाम तक पहुंच पाई हैं.