पर्व कौर ब्रिटेन की पहली महिला ढोल वादक हैं. उन्होंने एक दिलचस्प व लंबा सफर तय किया है. प्रवासी पंजाबी परिवार से मिले संगीत के गुर और भारतीय परवरिश में लड़कियों के लिए खास नजरिए के बीच उन्होंने जिस तरह रुकावटों को ठोकर मारी वो समाज, परिवार और लिंग आधारित बहस के लिए खास मायने रखता है.
पिछले 22 सालों में इटर्नल ताल ने ब्रिटेन समेत दुनिया के कई दूसरे देशों में अपने ढोल की थापों पर लोगों को झुमाया है. पर्व कौर ने न सिर्फ भंगड़े की धुनों पर ढोल बजाया बल्कि उसमें कई तरह के नए प्रयोग और संस्कृतियों का समावेश किया है. इटर्नल ताल में पर्व के अलावा कई और लड़कियां हैं जिन्होंने कई मंचों पर अपना हुनर पेश किया है.
पिता की विरासत
पर्व कहती हैं, ‘मेरी मां की प्राथमिकताएं काफी साफ थीं कि मुझे पढ़ाई करनी चाहिए और खाना पकाना सीख लेना चाहिए ताकि शादी हो सके. मैं पापा के साथ जब बैंड के कार्यक्रमों में जाना चाहती तो मां कहती कि इसकी पढ़ाई कैसे होगी लेकिन पापा फिर भी मुझे अपने साथ ले ही जाते. उनको लगता था कि मैं लड़की हूं धीरे-धीरे अपने आप पीछे हट जाउंगी लेकिन वही नहीं हुआ.’
पिता के साथ कार्यक्रमों में शिरकत करने से पर्व कौर का रूझान गायकी के बजाय ढोल में पैदा होने की वजह का जिक्र करते हुए वह बताती हैं कि ढोल बजाने वाले उन कार्यक्रमों का सबसे बड़ा आकर्षण हुआ करते थे.
वह कहती हैं, ‘भीड़ उनकी थापों पर थिरकती, सीटियां बजाती तो मुझे लगा कि असली मजा तो ढोल बजाने वाले का ही है, गायक को तो सिर्फ अपने माइक और सुरों का साथ है, ढोल वाले तो मस्त हीरो होते हैं.’ भुजंगी बैंड का पारिवारिक माहौल होने की वजह से पर्व को मर्दों के भुजंगी बैंड में पीछे कहीं खड़े होकर ढोल बजाने के मौके मिलने लगे और यहां से एक युवा लड़की के सपनों को नई दिशा मिली.
इटर्नल ताल की शुरुआत
उन्होंने बर्मिंगम में अपने रिहायशी इलाके में दुकानों, कैफे, कॉलेजों वगैरह में बैंड के पोस्टर चस्पा किए और धीरे-धीरे लोगों को जोड़ा. जब इटर्नल ताल की शुरुआत हुई तो पर्व के साथी बने उनके कॉलेज के दो लड़के-लड़कियां भी बैंड के शुरुआती दिनों से जुड़ती रहीं लेकिन कोई भी टिक कर लंबे समय तक बैंड का सदस्य नहीं बन पाया क्योंकि जिंदगी की तमाम प्राथमिकताओं के बीच ढोल के लिए समय निकालने में उन्हें मुश्किलें आती थीं.
हालांकि बैंड शुरू होने के करीब एक दशक बाद स्थितियों में बदलाव साफ दिखने लगा जब लड़कियां की बैंड में मौजूदगी इटर्नल ताल के लिए आकर्षण का कारण बनने लगी. लोग सिर्फ लड़कियों की टीम को कार्यक्रमों में बुलाने लगे. साल 2019 में बैंड से जुड़ने वाली सैंडी कहती हैं, ‘एक चैरिटी कार्यक्रम के दौरान जब मेरी मुलाकात पर्व से हुई और बैंड के बारे में मुझे पता चला तो मुझे लगा कि ये कितना खूबसूरत तरीका है लोगों को खुशियां देने का. आप मंच पर खड़े होते हैं और अपने ढोल के थापों से कुछ पल के लिए लोगों को सुकून दे सकते हैं. एक बार स्कॉटलैंड में पुलिस से जुड़े कार्यक्रम में हमें बुलाया गया था. सोचिए कितनी अलग ऑडियंस थी लेकिन जब हमने बजाना शुरू किया तो लोग बस हमारी ओर खिंचते चले आ रहे थे.’
Clap for the #NHS @NHSuk #clapforNHS #clapforkeyworkers @ITVCentral @SkyNews @bbcasiannetwork @BBCNews #IndianDrums #DholDrums #EternalTaal #StayHomeSaveLives #NHSThankYou #nhsvolunteers #NHSCovidHeroes #ClapForCarers #ClapForTheNHS pic.twitter.com/k9G1wO25Hw
— Eternal Taal (UK) (@EternalTaal) April 2, 2020
बैंड की खास बात ये भी है कि भांगड़ा संगीत का आधार लेते हुए भी पर्व कौर ने इसे ब्रिटेन के विविधता भरे समाज के मुताबिक बनाया. इटर्नल बैंड ने ढोल पर अंग्रेजी और दूसरी भाषाओं की धुनों के साथ जुगलबंदी के जरिए इस वाद्य यंत्र को एक नया संदर्भ दिया है. पर्व कौर ढोल को फिटनेस से जोड़ने का दिलचस्प काम भी कर रही हैं.
जेंडर, चुनौतियां और जिद
Early morning #groom #wedding #performance today in #solihull! #indiandrummer #asianweddings #covidwedding #giglife #dholplayers #indiandrummers #dholdrummers #bhangra #eternaltaal #females pic.twitter.com/mZIUFqnMXb
— Eternal Taal (UK) (@EternalTaal) May 2, 2021
वे कहती हैं, ‘शुरू में जब हम जाते कार्यक्रम करने तो दूसरे बैंड में काम करने वाले साथी मर्दों की टेढ़ी निगाहों से सामना आम बात थी लेकिन वो मुझे रोक नहीं सकती थीं. कई बार हमारे माइक की तार निकाल दी जाती. कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसी कार्यक्रम में हमारी महिला बैंड टीम को बुक किया गया और वहां सुनने को मिला कि लड़कियां ठीक हैं लेकिन मर्दों वाली बात नहीं है. ये सब बहुत हुआ लेकिन मुझे पता था कि मैं क्या कर रही हूं.’
इटर्नल बैंड से 2009 में जुड़ने वाली संगीता कोहली के अनुभव भी कुछ इसी तरह के रहे हैं. उन्होने बातचीत में बताया, ‘मेरा संगीत से लंबा रिश्ता रहा है. ढोल बजाने की शुरूआत मैंने करीब 2006 में की लेकिन जब लोग कार्यक्रमों के लिए हमेशा लड़कों को बुक करते तो मुझे लगा कि इसमें कुछ नहीं होगा. बाद में जब पर्व से मेरी बातचीत हुई और उन्होने मुझे आगे सीखने के लिए कहा तो मुझे लगा कि जब पर्व कर सकती हैं तो शायद मैं भी कर सकती हूं. अब दस साल का साथ हो गया है और तस्वीर बदल गई है. हमें मर्दों के मुकाबले ज्यादा मौके मिलने लगे हैं.’
ढोल बजाने में जहां सामाजिक नजरिए ने औरतों को रोका वहीं शायद इसका एक कारण शारीरिक भी रहा है. तकरीबन 12 किलो का एक ढोल कंधे पर उठाकर दो-तीन घंटे तक बजाने के लिए मानसिक और शारीरिक तैयारी चाहिए. इसके मौके महिलाओं के नहीं दिए गए क्योंकि उनकी परंपरागत पारिवारिक भूमिका में इस शारीरिक तैयारी की जगह नहीं रही है.
पर्व कौर और उनका इटर्नल बैंड ब्रिटिश-पंजाबी संगीत के आधुनिक इतिहास का वो हिस्सा हैं जिसकी जड़े भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में भी हैं और परंपराओं को तोड़ने वाली ऊर्जा से भरी एक युवा लड़की के जुनून और जिद में भी.