First Indian Woman Lawyer: इंदिरा जयसिंह, आभा सिंह, कामिनी जयसवाल, सीमा समृद्धि, रेबेका जॉन ये सभी महिलाएं हैं और सबकी सब तेज़-तर्रार वक़ील भी. इनकी दलीलों के सामने अच्छे-अच्छे वक़ील पानी भरते नज़र आते हैं. मगर ये वक़ालत को अपना पेशा कभी न बना पाती अगर एक महिला ने सालों पहले अपने हक़ के लिए लड़ाई न लड़ी होती.

बात हो रही है देश की पहली महिला वक़ील (Woman Lawyer) की जिसने वक़ालत की पढ़ाई करने के लिए देश ही नहीं विदेश में भी संघर्ष किया. अगर वो हार मान लेतीं तो शायद कोई भी महिला जल्दी वक़ालत करने के बारे में न सोचती. आइए जानते हैं इस महिला की प्रेरणादायक कहानी.

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कौन थी भारत की पहली महिला वक़ील(First Indian Woman Lawyer)?

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कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji) भारत की पहली महिला वक़ील (First Indian Woman Lawyer) थीं हैं. उनका जन्म 1866 नासिक में रहने वाले एक पारसी रेवेरेंड सोराबजी कारसेदजी(Reverend Sorabji Karsedji) के घर हुआ था. उनकी माता फ़्रांसिना फ़ोर्ड (Francina Ford) महिलाओं के हक़ के लिए आवाज़ उठाने में आगे थीं. उन्होंने पुणे में महिलाओं के लिए स्कूल भी खोला था. यहीं से कॉर्नेलिया सोराबजी को भविष्य में कुछ करने की प्रेरणा मिली. 

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बॉम्बे यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए करना पड़ा संघर्ष  

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उन्होंने प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हासिल की. इसके बाद पुणे के Deccan College में उनका दाखिला हुआ. यहां से वो फ़र्स्ट क्लास नंबरों से पास हुई. उनके पिता ने हमेशा अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए बॉम्बे यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया. कॉर्नेलिया सोराबजी(Cornelia Sorabji) और उनकी बहन ने कई बार दाखिले के लिए अर्जी भी भेजी, लेकिन हर बार उसे नकार दिया जाता क्योंकि तब तक महिलाओं को यूनिवर्सिटी में पढ़ने की इजाज़त नहीं थी. 

कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji)

कॉलेज में टॉप करने पर भी नहीं मिली स्कॉलरशिप  

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काफ़ी संघर्ष के बाद उन्हें दाखिला मिला. 16 साल की उम्र में कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji) ने यहां से मेट्रीकुलेशन किया. यहां भी साथी छात्र उन्हें पढ़ने नहीं देते थे. उन्होंने तमाम मुश्किलों का डटकर सामना किया और मन लगाकर पढ़ना जारी रखा. 6 साल बाद उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में टॉप कर सबको चकित कर दिया. कॉर्नेलिया सोराबजी को उम्मीद थी कि अब उन्हें स्कॉलरशिप मिल जाएगी और वो ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में वक़ालत की पढ़ाई कर पाएंगी, लेकिन उनके सारे सपनों पर पानी फिर गया. टॉप रैंक हासिल करने के बाद भी उन्हें स्कॉलरशिप नहीं मिली. 

Oxford में लॉ की पढ़ाई के लिए करना पड़ा संघर्ष

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तब पुणे की कुछ रसूखदार और शिक्षित अंग्रेज़ी महिलाओं ने उनकी मदद की. उन्होंने पैसों का इंतज़ाम कर 1889 में उनका दाखिला Oxford के Somerville College में करवा दिया. यहां भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई. यूनिवर्सिटी ने उन्हें लॉ नहीं बल्कि साहित्य की पढ़ाई करने की अनुमति दी. इसके बाद यहां भी कॉर्नेलिया सोराबजी को अपनी काब़िलियत साबित करनी पड़ी. उनके जुनून और मेहनत को देखते हुए अंग्रेज़ी सरकार को भी झुकना पड़ा और लॉ स्कूल में उनका दाखिला हो गया. 

लॉ की डिग्री लेने वाली पहली छात्रा बनीं

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1892 में वो Bachelor Of Civil Laws (BCL) की परीक्षा पास कर वक़ील बनने वाली पहली महिला बनीं. वो ब्रिटेन की पहली महिला वक़ील थीं, लेकिन यूनिवर्सिटी ने उनको डिग्री देने से मना कर दिया क्योंकि तब किसी महिला को वक़ील के रूप में ख़ुद को रजिस्टर करने का नियम नहीं था. इसके बाद कॉर्नेलिया सोराबजी(Cornelia Sorabji) भारत में प्रैक्टिस करने के इरादे से स्वदेश लौट आईं. यहां भी नई मुसीबतें उनका इंतज़ार कर रही थीं. देश में भी उनको वक़ालत करने का मौक़ा नहीं दिया गया. 

1924 बनीं भारत की पहली महिला वक़ील (First Indian Woman Lawyer)

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तब भारत में पर्दा प्रथा लागू थी और राजा महाराजा अपने घर की महिलाओं के अधिकारों का हनन करते थे. कॉर्नेलिया सोराबजी(Cornelia Sorabji) ने महिलाओं के हक़ के लिए खड़े होने ठानी. वो पुरुषों के षडयंत्र की शिकार महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए लड़ने लगीं. वो उन्हें कई प्रकार के वाद-विवादों में क़ानूनी सलाह देने लगीं. इसी बीच उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से LL.B की डिग्री भी ले ली. 1924 में जब महिलाओं को वक़ालत करने की इजाज़त मिली तो वो भारत की पहली महिला बैरिस्टर(Woman Lawyer) बनीं. 

600 से अधिक महिलाओं को दिलाया उनका हक़

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इससे पहले वो अपने एक भाई के साथ मिलकर लॉ फ़र्म में वक़ालत करती रहीं और 600 से अधिक महिलाओं को न्याय दिलवाने में मदद की. 1929 में रिटायर होने तक कॉर्नेलिया सोराबजी ने कोलकाता के कोर्ट में वक़ालत की. फिर वो इंग्लैंड चली गईं. 1954 में उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था.

कॉर्नेलिया सोराबजी के पुरजोर संघर्ष की वजह से ही ब्रिटेन और भारत में महिलाओं के लिए वक़ालत करने का रास्ता खुला था.