हमारे देश का इतिहास काफ़ी रोचक रहा है. इतिहास के पन्नों में सिर्फ़ वीर राजाओं का ही नहीं, बल्कि रानियों का नाम भी दर्ज है. वो रानियां जिन्होंने मातृभूमि के मान-सम्मान के लिये अपनी जान की बलि तक चढ़ा दी. इन्हीं वीर रानियों में एक नाम हाड़ीरानी का भी है.

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मेवाड़ की हाड़ीरानी ने अपनी मातृभूमि के लिये जो किया, उसे तक भुलाया नहीं जा सका है. यही नहीं, आज भी उनकी वीरता की कहानी कई लोगों का मन विचलित कर जाती है. 16वीं शताब्दी के दौरान हाड़ीरानी का विवाह सलूंबर के राव रतन सिंह के साथ हुआ था. दोनों के विवाह को एक ही दिन हुआ था कि युद्ध ने उनके द्वार पर दस्तक दे दी. 

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ये युद्ध किशनगढ़ के राजा मान सिंह और औरंगजेब के बीच होना था. औरंगजेब ने किशनगढ़ पर आक्रमण की पूरी तैयारी कर रखी थी. इधर राजा राजसिंह, औरंगजेब को किशनगढ़ से पहले रोकना चाहते थे. इसलिये उन्होंने ये बड़ी ज़िम्मेदारी राव रतन सिंह को सौंप दी. राव रतन सिंह की शादी को एक दिन हुआ था और उन्हें इस तरह से रानी से जुदा होना खल रहा था. वो रानीहाड़ी से बेइंतिहा मोहब्बत करते थे और उनसे दूर जाने पर बेहद दुखी थे.  

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युद्ध के मैदान में जाने से पहले राव रतन सिंह, रानी की कोई निशानी साथ लेकर जाना चाहते थे, ताकि उन्हें रानी से जुदाई का एहसास न हो. इसलिये उन्होंने युद्ध पर निकलने से पहले सैनिक से रानी की निशानी लाने के लिये कहा. राव रतन सिंह की बात मानते हुए सैनिक निशानी लाने के लिये रानी के पास पहुंचा. हाड़ीरानी समझ चुकी थीं कि उनके पति प्रेम मोह से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. शायद इसलिये उन्हें युद्ध के मैदान में जाने में परेशानी हो रही है. 

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मातृभूमि की रक्षा और मान-सम्मान के लिये हाड़ी रानी ने अपना सिर काट कर सैनिक को दे दिया, ताकि उनके पति का ध्यान प्रेम पर नहीं, बल्कि मातृभूमि की रक्षा पर हो. हाड़ी रानी ने ख़ुद के प्राणों को बलिदान देकर उनके पति को उनका कर्तव्य याद दिलाया और सदा के लिये अमर हो गईं. मेवाड़ से जुड़ी ये ऐतिहासिक घटना आज भी लोगों में सिरहन पैदा कर देती है.