कहते हैं कि क़ानून की नज़र में सब समान हैं. इस मामले में महिला, पुरुष या अमीर-गरीब, लिंग, जाति, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा. यही वजह है कि क़ानूनी तौर पर सबको समान तरीक़े से जीने का अधिकार है. हालांकि, पितृसत्तात्मक समाज के चलते जेंडर के आधार पर कई घिसी-पिटी रवायतें हैं. लेकिन इन्हीं रवायतों को तोड़ा है हरियाणा की पहली महिला राजमिस्त्री कृष्णा (Krishna) ने. कृष्णा ने उस क्षेत्र में हाथ डाला है, जिसे पुरुष अपनी बपौती समझते हैं. आइए आपको उनके बारे में विस्तार से बताते हैं.
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बचपन से ही सीखने लग गयी थीं काम
कृष्णा हरियाणा के यमुनानहर जिले के एक छोटे से गांव बड़ी पाबनी की रहने वाली हैं. वो मात्र 14 साल की उम्र से राजमिस्त्री के काम को सीखने लग गई थीं. उन्हें इस काम को करने में बेहद रूचि थी. उनको ये काम करते देख आसपास के लोग उन पर फ़ब्तियां भी कसते थे. लेकिन इन सब पर ध्यान ना देकर कृष्णा आगे बढ़ती रहीं.
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हनुमान जी की हैं बड़ी भक्त
आज कृष्णा 45 साल की हैं और वो अपने काम में इतनी निपुण हैं कि कई जिलों में वो अब तक अनेक इमारतें, दुकान, गलियां, आदि बना चुकी हैं. वो ऐसी पहली महिला हैं, जिसने राजमिस्त्री बनकर अपनी मेहनत के बलबूते पर अपनी अलग पहचान बना ली है. हालांकि, इस सफ़र में आसपास के गांववाले और उनके क़रीबियों ने उनको ख़ूब ताने मारे. लेकिन उनके हौसलों की उड़ान के आगे उन्हें हर कोई छोटा दिखाई देने लगा. उनका कहना है कि किसी भी काम में महिला या पुरुष का कोई बंधन नहीं होना चाहिए. जो काम पुरुष कर सकते हैं, वो महिलाएं भी उतनी ही संजीदा तरीक़े से कर सकती हैं.
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गांववाले मारते थे ताने
कृष्णा के मुताबिक वो हनुमान जी की बड़ी भक्त हैं. साथ ही वो अपनी कमाई का एक हिस्सा धार्मिक कार्यों पर लगाती हैं. वो उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं, जो समाज की परवाह करके अपने क़दमों को सीमित दायरे में समेट लेती हैं. कृष्णा के मुताबिक अगर आपके मन में कुछ करने का जज़्बा है, तो मेहनत करने से कभी मन नहीं चुराना चाहिए.
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