जहां यूरोप समेत दुनिया के कई देशों में राइटविंग यानि दक्षिणपंथी राजनीति अपने पैर जमा रही है, वहीं आइसलैंड के लोगों ने एक युवा और प्रोग्रेसिव महिला को अपना प्रधानमंत्री चुना है.

आइसलैंड की नई प्रधानमंत्री का नाम Katrín Jakobsdóttir है. वे 41 साल की हैं. सैन्यवाद के खिलाफ़ हैं. महिलाओं के हक की बात करती हैं, यानि फ़ेमिनिस्ट हैं और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर बेहद गंभीर हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल विश्व के 195 देशों के बीच किए गए पेरिस समझौते से हटने का ऐलान किया था. डोनाल्ड ट्रंप के इस ऐलान के बाद वैश्विक समुदाय में अमेरिका के इस फ़ैसले की काफी आलोचना हुई थी.

लेकिन कैटरीन पेरिस एक्ट से भी आगे बढ़कर काम करना चाहती हैं. वो चाहती हैं कि आइसलैंड ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों को लेकर दूसरे देशों के सामने एक उदाहरण पेश करें.

कैटरीन अपने देश में पर्यटन को बढ़ावा भी देना चाहती हैं और उनका मानना है कि इससे होने वाले मुनाफ़े को हेल्थ और एजुकेशन के सेक्टर में इंवेस्ट किया जा सके. उनके परिवार में कई नामी गिरामी कवि, राजनेता और एकेडेमिक्स से जुड़े लोग शामिल हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ़ आइसलैंड से अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर उन्होंने आइसलैंड के साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की है. राजनीति में आने से पहले उन्होंने साहित्य पढ़ा है और उनकी खासतौर पर आइसलैंड के क्राइम नॉवेल्स में रूचि रही है. वो तीन बच्चों की मां भी हैं.

कैटरीन पूर्व एजुकेशन मिनिस्टर रह चुकी हैं और उन्हें एक भरोसेमंद लोकप्रिय राजनेता माना जाता रहा है. आइसलैंड के इलेक्शन पूर्व पोल्स में आधे से ज़्यादा वोटर्स उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे.

उनकी कैबिनेट में तीन सदस्य उनकी खुद की पार्टी लेफ़्ट ग्रीन पार्टी के होंगे. 5 सदस्य राइट विंग इंडीपेंडेंस पार्टी के और तीन प्रोग्रेसिव पार्टी के होंगे. उनके एजेंडे में हेल्थकेयर, एजुकेशन और ट्रांसपोर्ट इंफ़्रास्ट्रक्चर पर फ़ोकस, 2008 के आर्थिक झटकों से देश की अर्थव्यवस्था को उबारना और एलजीबीटी राइट्स जैसे कई मुद्दे शामिल हैं.

गौरतलब है कि आज से लगभग एक साल पहले पनामा पेपर्स ने कुछ देशों में भूचाल ला दिया था. पाकिस्तान और आइसलैंड के कुछ रसूखदारों को इसका सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा. जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ़ को सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार का दोषी मानते हुए उन्हें पीएम पद से हटाया गया था. वहीं लोगों के गुस्से के बीच आइसलैंड के प्रधानमंत्री ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया था.

कैटरीन के पास चुनौतियां कम नहीं है, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने फ़ैसलों पर खरी साबित होंगी.