International Women’s Day Special: कहते हैं महिलाएं पढ़ी-लिखी हो न हो, लेकिन वक़्त पड़ने पर वो अच्छे-अच्छों को पढ़ा देती हैं. घर या व्यापार चलाने के लिये उन्हें किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं होती है. वो अपनी सूझ-बूझ और मेहनत मिट्टी को भी सोना बना देती हैं. फिर चाहे महिला किसी पढ़े-लिखे शहर से हो या चमक-धमक से अंजान गांव की.

बदलते ज़माने के साथ कई ग्रामीण महिलाओं ने समाज के सामने बेहतरीन मिसाल पेश करके सबको चौंकाया है. इन महिलाओं ने अपनी मेहनत और बुद्धिमता से दुनिया के सामने एक बड़ी मिसाल पेश की है.


चलिये आज Women’s Day मौके पर थोड़ा समय ग्रामीण महिलाओं की इन प्रेरणादायक कहानी पर देते हैं.

ये ग्रामीण महिलाएं हर किसी के लिये प्रेरणा हैं 

1. डालिमी पाटगिरी (असम) 

असम के आंतरिक इलाके की रहने वाली डालिमी पाटगिरी ने अपनी योग्यता साबित करने के लिये कई बाधाओं को पार किया. कभी ग़रीबी का जीवन जीने वाली डालिमी पाटगिरी आज एक जानी-मानी Manufacture हैं. उनकी सफ़लता की कहानी हमें स्वतंत्र जीवन जीने के लिये प्रेरित करती है.  

upayasv

2. कल्पना सरोज (महाराष्ट्र) 

यकीन करना मुश्किल है कि कभी प्रति 2 रुपये कमाने वाली कल्पना सरोज आज $100 मिलियन डॉलर का साम्राज्य चलाती हैं. कहा जाता है कि 12 साल की उम्र में सरोज की शादी हो गई, लेकिन ससुराल में उसे प्यार की जगह पति की यातना मिली. पिता द्वारा बचाये जाने पर उन्होंने ज़िंदगी की नई शुरूआत की और एक कपड़ा कारखाने में काम करना शुरू कर दिया.  

इसके बाद उन्होंने टेलरिंग शॉप और फ़र्नीचर शॉप का व्यापार किया और आज मुंबई की बड़ी व्यापारियों में से एक हैं. यही नहीं, उन्हें 2013 में पद्म श्री से भी सम्मानित किया जा चुका है.  

wikipedia

3. जसवंती बेन (मुंबई) 

लिज्जत पापड़ बनाने की शुरूआत 1959 में 7 सहेलियों ने मिलकर की थी. मुंबई निवासी जसवंती बेन और उनकी 6 सहेलियों पार्वतीबेन रामदास ठोदानी, उजमबेन नरानदास कुण्डलिया, बानुबेन तन्ना, लागुबेन अमृतलाल गोकानी, जयाबेन विठलानी मिलकर घर पर पापड़ बनाने की शुरूआत की. इन 6 महिलाओं के अलावा एक महिला को पापड़ बेचने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. 

सभी ने मिलकर सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसायटी के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता छगनलाल पारेख से 80 रुपये उधार लेकर पापड़ बनाने की शुरूआत की थी. 2002 में लिल्जत पापड़ का टर्न ओवर करीब 10 करोड़ था. सोचिये आज इसका टर्न ओवर कितना बड़ चुका होगा.  

punjabkesari

4. नौरती देवी (राजस्थान) 

अजमेर के हरमाड़ा गांव की रहने वाली नौरती देवी कभी स्कूल-कॉलेज नहीं गई, लेकिन उनमें ज़िंदगी में आगे बढ़ने का हौसला था. जीवन में एक मोड़ आया, वो 6 महीने के साक्षरता प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुई. इस कार्यक्रम में उन्हें ज़िंदगी जीने का नया मक़सद मिला. उनमें वो सारे गुण थे, जो किसी नेता में होने चाहिये. यही वजह थी कि उन्हें 2010 में हरमाड़ा के सरपंच के तौर पर चुना गया.  

civilsocietyonline

5. डी ज्योति रेड्डी (वारंगल, तेलंगाना) 

डी ज्योति रेड्डी की कहानी काफ़ी प्रेरणादायक है. ज्योति का जन्म वारंगल के खेत मजदूर के घर हुआ था. ग़रीबी की वजह से उनके माता-पिता उन्हें अनाथ आश्राम छोड़ कर आ गये थे. 16 साल की उम्र में उनकी शादी 10 साल बड़े शख़्स से कर दी गई थी. हांलाकि, ज्योति शादी के बाद भी रुकने वालों में से कहां थी.

उन्हें अमेरिका जाकर पढ़ाई करनी थी, जिसके लिये उन्होंने 5 रुपये प्रति दिन के हिसाब से खेत में काम करना शुरू किया. आज ज्योति एक कंपनी की सीईओ हैं और ग्रामीण बच्चों की मदद करती हैं.   

kalamfanclub

6. राजकुमारी बिनिता (इंफ़ाल) 

राजकुमारी बिनिता देवी मणिपुर के इंफ़ाल के मोइरंग कम्पू गांव की रहने वाली हैं. 50 साल की उम्र में वो मशरूम की खेती करके लगभग 1.5 रुपये महीना कमा रही हैं. इसके साथ ही दूसरों को रोज़गार भी दे रही हैं. 

ifp

7. गुलाबो सपेरा (राजस्थान) 

कालबेलिया डांस को पहचान दिलाने वाली गुलाबो सपेरा अपने पिता की सातवीं संतान थीं, जिन्हें जन्म के एक घंटे बाद दफ़ना दिया गया था. 1960 में गुलाबो सपेरा का जन्म घुमंतू कालबेलिया समुदाय में हुआ था. बचपन में कबीले के लोगों ने उन्हें दफ़नाने की कोशिश की थी, लेकिन उनकी मासी ने उन्हें बचा लिया.

वहीं 10 वर्ष की उम्र में वो पुष्कर मेले में कालबेलिया डांस कर रही थीं. इस दौरान राजस्थान के एक अधिकारी की नज़र उन पर पड़ी और वो उनके डांस से काफ़ी प्रभावित हुए. इसके धीरे-धीरे नर्तकी देश-दुनिया तक उनके पारंगत नृत्य को दुनिया तक पहुंचाया. 2016 में उन्हें कला और संस्कृति के क्षेत्र अतुलनीय कार्य करने के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित भी किया जा चुका है.   

8. सालुमारदा थिमम्क्का (कर्नाटक) 

106 वर्ष की सालुमारदा थिमम्क्का ‘वृक्ष माता’ के नाम से भी मशहूर हैं. उन्हें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा पद्मा श्री सम्मान से भी नवाज़ा जा चुका है. सालुमारदा कर्नाटक की रहने वाली पर्यावरणविद हैं, उन्होंने Hulikal और Kudoor गांव के बीच में हाइवे के पास चार किलोमीटर के क्षेत्र में 385 बरगद के पेड़ लगा कर एक मिसाल कायम की है.

सालुमारदा और उनके पति की कोई संतान नहीं है, इस बात से निराश हो कर सालुमारदा ने आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी. उन्होंने वक्त बिताने के लिए शाम का समय पेड़ों के देखभाल करने का निश्चय किया.

herzindagi

9. कमलाथल (तमिलनाडु) 

तमिलनाडु की निवासी 85 साल की कमलाथल महज़ 1 रुपये में इन बेसहारा मज़दूरों का पेट भरने का काम कर रही हैं. पिछले 30 सालों से सिर्फ़ एक रुपये में लोगों को इडली खिलाती आ रही हैं, जो कि उन्होंने लॉकडाउन में जारी रखा था. कमलाथल की ये दरियादिली सिर्फ़ हिंदुस्तान ही नहीं, दुनियाभर में मशहूर है.  

dailyhunt

10. नवलबेन दलसंगभाई चौधरी (गुजरात) 

गुजरात की 62 वर्षीय महिला ‘नवलबेन दलसंगभाई चौधरी’ ने सालभर दूध बेच कर एक करोड़ रुपये की कमाई करके नया कीर्तिमान रच दिया था. उनके पास 45 गाय और लगभग 80 भैंस हैं, जिनके माध्यम से वो डेयरी चला रही है.

डेयरी के ज़रिये वो सिर्फ़ ग्रामीणों की ज़रूरतें ही पूरी नहीं कर रही हैं, बल्कि उन्होंने 15 लोगों को रोज़गार भी दिया है. आपको बता दें कि अनोखा कीर्तिमान रचने वाली नवलबेन ने 2019 में दूध बेचकर 87.95 लाख रुपये की इनकम की थी. इस सहारनीय प्रयास के लिये उनको 3 पशुपालक पुरस्कार और 2 लक्ष्मी पुरस्कार से भी नवाज़ा जा चुका है.

bharatlive

ग्रामीण इलाकों की इन महिलाओं ने वो कर दिया, जो शायद पढ़े-लिखे लोग भी न कर पायें. कई बाधायें पार करके नया इतिहास रचने वाली इन महिलाओं को दिल से सलाम.