हमारे समाज में ऐसी असंख्य महिलाएं हैं, जो गिरकर, उठकर और फिर दौड़कर अपनी मंज़िल तक पहुंची हैं और अपने साथ हज़ारों को अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत देती हैं.
ये वो महिलाएं हैं, जो अपने बच्चों का पेट पालने के लिए दिन के 18-20 घंटे काम करती हैं. ये वे महिलएं हैं जिन्हें आगे बढ़ने से हर कोई रोकता है पर वो सब सहकर आगे बढ़ती है.
वैसे तो हर घर में ऐसी महिलाओं की कहानियां हैं पर कुछ कहानियां अलग ही छाप छोड़ जाती हैं.
अच्छी कहानियों का पिटारा, Humans of Bombay पेज ने मुंबई की एक महिला की कहानी शेयर की है.
कहानी को जस का तस रखने की कोशिश की है.
‘मेरा जन्म एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में हुआ. जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई मेरे. माता-पिता के झगड़े भी बढ़ते गए. इसका मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ता. कुछ दिनों बाद उनका तलाक़ हो गया.
मेरी मां ने दूसरी शादी करने की सोची तो भूचाल सा आ गया. पर वो एक ऐसी औरत थी, जो निडर होकर वही करती जो उसका मन करता. शादी के कुछ महीनों बाद मेरी मां मेरे भाई के साथ बाहर गईं हुई थीं. हमारे समाज के कुछ लोगों ने उन्हें घेर लिया और उनके चरित्र, दूसरी शादी पर फब्तियां कसीं.
उन्होंने मेरे भाई को भी बुरा-भला कहा, इस घटना का उन पर बुरा प्रभाव पड़ा. उनके मन में ये बात इतनी घर कर गई थी कि उसी दिन, देर रात उन्होंने ख़ुद को आग लगा दी. उनको खोना मेरी लिए ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सदमा था. पर ज़िन्दगी में आगे बढ़ना ही पड़ता है. सालभर में ही मेरे पिता ने मेरी और मेरी बहन की शादी कर दी.
मेरी बहन को उसके ससुरालवाले दहेज के लिए सताते और जब वो गर्भवती थी तब उसे ज़हर देकर मार दिया गया. मैं टूट चुकी थी… मैंने अपनी ज़िन्दगी में दो अहम लोगों को खो दिया था. पर जब मैं गर्भवती हुई और मेरा बेटा इस दुनिया में आया तो मेरे पास आगे बढ़ने के सिवाए कोई और रास्ता नहीं था.
बीतते वक़्त के साथ मेरे पति के साथ भी अनबन होने लगी. मेरे तीसरी संतान के जन्म के बाद उसने हमारा ख़याल रखने से इंकार कर दिया… उसे सिर्फ़ मेरे साथ सोना था. जब उससे उसका मन भर गया तो उसने तीन बार तलाक़ बोलकर रिश्ता ख़त्म कर दिया. मेरे पास बच्चों के साथ घर छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था.
मैं सड़क पर आ गई थी और मेरे पास 3 बच्चे भी थे. मैंने हिम्मत जुटाई और एक छोटी सी बिरयानी की दुकान खोली, पर एक दिन बीएमसी वालों ने आकर उसे तोड़ दिया. मेरे पति रिक्शाचालक थे तो जब मेरे पास कोई और चारा नहीं था तो मैंने बचत के पैसों से रिक्शा ख़रीदा.
मेरी अच्छी कमाई होती थी, पर लोग परेशान करते थे. वो मेरी हिम्मत तोड़ने के लिए बुरा-भला कहते और मुझ पर शक़ करते, क्योंकि मैं एक औरत हूं. दूसरे ऑटोचालक जानबुझकर अपनी गाड़ी मेरी गाड़ी से टकरा देते और मुझे किराया लेने से रोकते. पर मैंने इन सबको ख़ुद पर हावी होने नहीं दिया.
1 साल हो गए और मेरी पगार से आज मेरा घर चल रहा है. मैं अपने तीनों बच्चों को अपने दम पर पाल रही हूं. मैं उनके लिए गाड़ी ख़रीदना चाहती हूं. मेरे पैसेंजर्स भी मेरा उत्साहवर्धन करते हैं, कोई मेरे लिए ताली बजाता है कोई अच्छी खासी टिप देता है तो कोई गले लगाता है.
एक बार एक आदमी रिक्शे में बैठा और शायद उसने मुझे देखा नहीं था. उसने मुझे ‘भैया’ कहकर बुलाया और जब उसने मुझे देखा तो उसने कहा कि मैं ‘दबंग महिला’ हूं. मैं दबंग महिला ही हूं और मैं चाहती हूं कि दूसरी औरतें भी ख़ुद को यही समझें.
महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं, उन्हें दूसरों के बनाए नियमों के अनुसार चलने की ज़रूरत नहीं. मैं नहीं चाहती कि जो मेरी मां और बहन के साथ हुआ वैसा किसी और के साथ हो. मुझे पता है कि मैं जो कुछ भी कर रही हूं वो सिर्फ़ मेरे लिए नहीं है पर हर उस औरत के लिए है जो चुपचाप सबकुछ सहती है.’
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