Dr. Muthulakshmi Reddy: दौर कोई भी रहा हो भारतीय महिलाओं ने अपने हक़ के लिए लड़ाई हमेशा की है. यही वजह है कि आज की महिलाओं के लिए ये समाज उतनी सख़्ती नहीं कर पाता, जो वो करना चाहता है क्योंकि हमारी इस लड़ाई को कुछ होनहार और बुद्धिमान महिलाएं कम कर गई हैं. आज भारतीय महिलाएं ही हैं, जो देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं. इनके हुनर के आगे हर कोई अपना सिर झुकाने को तैयार है. सिर्फ़ आज की महिलाएं नहीं हैं जो अपना लोहा मनवा रही हैं, बल्कि इतिहास में कई ऐसी महिलाएं हुई हैं जिन्होंने जीने से लेकर पढ़ने तक के लिए संघर्ष किया है. इन्हीं में से एक महिला हैं, डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Dr. Muthulakshmi Reddy), जिन्होंने देश में देवदासी प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और उसका अंत किया.

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मुथुलक्ष्मी रेड्डी का जन्म 30 जुलाई 1886 में तमिलनाडु के पुडुकोट्टई में हुआ था. इनके पिता का नाम नारायण स्वामी अय्यर था, जो महाराजा कॉलेज में प्राध्यापक थे और उनकी मां का नाम चंद्रामाई था, जो देवदासी समुदाय से थीं. मुथुलक्ष्मी की बचपन से ही पढ़ने में रुचि थी और वो चाहती थीं कि उनके पिता के कॉलेज में उन्हें दाख़िला मिले, लेकिन लड़की होने के चलते उन्हें दाख़िला नहीं मिला. इस वजह से उनके पिता और कुछ शिक्षकों के सहयोग से उनकी पढ़ाई घर पर ही हुई.

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मेट्रिक में टॉप करने के बाद पढ़ाई में उनकी रुचि और सफलता देखते हुए पुडुकोट्टई के राजा मार्तंड भैरव थोंडमान (Martanda Bhairava Tondaiman) ने मुथुलक्ष्मी को वजीफ़ा दिलाकर हाई स्कूल में एडमिशन दिला दिया. हालांकि, उस दौर में समाज इस बात से सहमत नहीं था कि एक लड़की स्कूल जाकर पढ़े इसलिए मुथुलक्ष्मी के स्कूल जाने पर जमकर हंगामा हुआ. मगर मुथुलक्ष्मी समाज से डरी नहीं और सबका बेख़ौफ़ी से सामना करते हुए पढ़ाई जारी रखी.

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मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने आगे मेडिकल की पढ़ाई को चुना और वो मद्रास मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग की पहली भारतीय लड़की थीं. मुथुलक्ष्मी सर्जरी में टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट थीं. इसके अलावा, वो भारत की पहली हाउस सर्जन थीं. साथ ही, देश की पहली महिला विधायक और मद्रास विधान परिषद की पहली महिला उपाध्यक्ष भी थीं.

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अपने लक्ष्य को हासिल करने के बाद मुथुलक्ष्मी ने साल 1914 में डॉ. टी सुन्दर रेड्डी से इस शर्त पर शादी की, कि वो कभी भी उनकी किसी सोशल एक्टिविटी या ज़रूरतमंद की मदद करने से रोकेंगे नहीं. शादी के बाद उन्हें इंग्लैंड जाने का मौक़ा मिला, लेकिन परिवार ने जाने नहीं दिया. तमिलनाडू के स्वास्थ्य मंत्री पानागल राजा ने सरकार के साथ मिलकर ये निर्देश दिया था कि इंग्लैंड जाने के दौरन, उन्हें एक साल की पूरी आर्थिक मदद मिलेगी.

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साल 1926 में का महिला भारतीय संघ द्वारा इनका नामांकन मद्रास विधान परिषद के लिए हुआ और इन्होंने साल 1926 से 1930 तक उपाध्यक्ष के तौर पर काम किया. इस दौरान, महिलाओं के विकास की ओर काम करते हुए बाल विवाह रोकथाम क़ानून, देवदासी प्रथा का अंत, वेश्यालय को बंद कराने और महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने के लिए क़ानून बनाने में अहम भूमिका निभाई.

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उस दौर की सबसे बड़ी कुप्रथा थी देवदासी प्रथा, जिसमें किशोरियों और महिलाओं को भगवान की शरण में दे दिया जाता था. इस कुप्रथा को रोकने के लिए इन्होंने क़ानून पास कराया. हालांकि, कट्टरपंथियों ने मुथुलक्ष्मी के क़ानून का विरोध किया. इसके बावजूद, मद्रास विधान परिषद ने सहमति से 1947 में देवदासी प्रथा के ख़िलाफ़ विधेयक को क़ानून बना दिया.