इतिहास ने महिलाओं को वो स्थान नहीं दिया है जिसकी वो हक़दार हैं. जब भी इतिहास के पन्न पलटो यही एहसास होता है कि इतिहास पुरुषों ने लिखा है. दुनियाभर में न जाने कितनी महिलाओं ने अपने देश के लिये क़ुर्बानियां दीं लेकिन कम के बारे में ही आज हम जानते हैं. भारत के इतिहास में भी कुछ ऐसा ही हुआ है, कई वीरांगनायें क़ुर्बानी देकर बीते वक़्त में कहीं ग़ुम हो गईं. समय आ गया है कि हम उनकी क़ुर्बानियां याद करें, उनकी कहानियां पढ़े, लिखे और सुने.  

आज़ाद हिन्द फ़ौज (Azad Hind Fauj) में नेताजी ने महिलाओं को भी शामिल किया था. इस फ़ौज में ही एक बहुत कम उम्र की जासूस थीं, नाम था सरस्वती राजमणि (Saraswathi Rajamani). चलिये आज उनकी कहानी पढ़ते हैं. 

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प्रारंभिक जीवन 

सरस्वती राजमणि का जन्म 1927 में म्यांमार(Myanmar) के एक समृद्ध परिवार में हुआ. उस ज़माने के हिसाब से राजमणि का घर-परिवार काफ़ी देशप्रेमी (Patriotic), प्रगतिशील (Progressive) और Liberal था. राजमणि को पढ़ने और दुनिया को जानने के मौक़े मिले जिससे कई महिलाएं वंचित थीं.  

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गांधी से भेंट 

Feminism In India के एक लेख के अनुसार, एक बार महात्मा गांधी उनके घर गये थे और तब राजमणि बंदूक से निशानेबाज़ी का अभ्यास कर रही थीं. गांधी जी ने उनसे पूछा कि वो एक बच्चे को बंदूक चलाना सीखने की क्या ज़रूरत है, इस पर राजमणि ने कहा था, ‘अंग्रेज़ों को मारने के लिये और किसलिये?’

गांधी जी अहिंसावादी थे और राजमणि को अहिंसा का मार्ग समझाने लगे लेकिन राजमणि बचपन से ही यही मानती थी कि हिंसा का मार्ग ज़्यादा प्रभावशाली होता है.  

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आज़ाद हिन्द फ़ौज का सफ़र 

16 वर्ष की आयु में ही राजमणि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) के शब्दों और ओजस्वी भाषण से वो इतना प्रभावित हुई कि अपने सारे गहने आज़ाद हिन्द फ़ौज को दान कर दिये. नेताजी को 16 साल की लड़की की बात पर यक़ीन नहीं हुआ और वो राजमणि के घर पहुंच गये. राजमणि के घर पर न सिर्फ़ राजमणि ने इसका विरोध किया बल्कि राजमणि के पिता ने भी उनका उत्साह बढ़ाया. राजमणि के जज़्बे को देखकर नेताजी ने उन्हें फ़ौज का हिस्सा बना लिया और उन्हें सबसे कम उम्र की और पहली महिला जासूस बनाया.  

लड़के के भेष बनाकर पहुंची अंग्रेज़ों के कैम्प 

Live History India के एक लेख के अनुसार, जब आज़ाद हिन्द फ़ौज, इम्फ़ाल और कोहिमा के उत्तर-पूर्वी हिस्से की तरफ़ बढ़ रही थी तब फ़ौज की रानी झांसी रेजिमेंट को उत्तरी बर्मा के Maymyo क्षेत्र भेजा गया. इस टुकड़ी में राजमणि और उनकी पार्टनर दुर्गा भी थीं. इन दोनों को ब्रिटिश सिपाहियों के कैम्प में सिक्रेट जासूसी मिशन पर जाना था. राजमणि और दुर्गा अपने केश काटे और कैम्प पहुंच गईं. अंग्रेज़ सिपाहियों के कपड़े धोते, जूते पॉलिश करते और अन्य काम करते हुये दोनों को कई अहम जानकारियां मिलीं.  


एक वक़्त ऐसा आया जब राजमणि अंग्रेज़ों के पकड़ में आते-आते बचीं, हालांकि उन्हें अपनी दोस्त को छोड़कर निकलना पड़ा. राजमणि ने हार नहीं मानी और एक ‘डांसिंग गर्ल’ का रूप बनाकर अंग्रेज़ के कैम्प में घुसी, अंग्रेज़ को बेहोश कर अपने पार्टनर को छुड़ाया.  

गोली लगने की वजह से राजमणि का एक पैर पूरी तरह से ठीक तरह से काम नहीं कर रहा था लेकिन राजमणि ने इसे बतौर सम्मान स्वीकारा. नेताजी ने उन्हें ख़ुद शाबाशी देते हुये चिट्ठी लिखी थी और उन्हें ‘भारत की पहली महिला जासूस’ कहा. 

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आज़ादी के बाद देश ने नहीं दिया उचित सम्मान 

1957 में राजमणि भारत लौटीं और त्रिची (Trichy) में बस गईं. राजमणि का जीवन यहां आसान नहीं था और उन्हें भारत सरकार से पेंशन पाने के लिये काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी. इसी वजह से राजमणि को चेन्नई जाकर बसना पड़ा. बर्मा में पैतृक संपत्ति बेचकर जो पैसे मिले थे राजमणि उससे अपना गुज़ारा चलाने लगीं. 1971 में आज़ादी के 25 साल बाद राजमणि और फ़ौज के बाक़ी सिपाहियों को पेंशन मिलने लगई लेकिन राजमणि का जीवन फिर भी मुश्किल भरा था. 2005 तक राजमणि एक कमरे के मकान में रहती थीं, 2005 में तमिलनाडु सरकार ने उन्हें चेन्नई में एक घर दिया.   


13 जनवरी, 2018 देश की इस वीरांगना ने आख़िरी सांस ली.