IPS Asha Gopal: भारत में एक से बढ़कर एक बहादुर पुलिस ऑफ़िसर हुये हैं जिनकी बहादुरी से प्रेरित होकर आज कई युवा देश सेवा की ओर अग्रसित हो रहे हैं. इन्हीं बहादुर पुलिस अधिकारियों में से एक मध्य प्रदेश कैडर की पहली IPS अधिकारी आशा गोपाल (Asha Gopal) भी हैं. आशा गोपाल मध्य प्रदेश की पहली महिला IPS अधिकारी जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान शिवपुरी के बीहड़ों से डकैतों का सफ़ाया करने में कामयाबी हासिल की थी. (IPS Asha Gopal)
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मध्य प्रदेश सन 1950 के दशक से ही डक़ैतों के लिए मशहूर रहा है. ये राज्य जितना डकैतों के लिए मशहूर है उतना ही मशहूर यहां के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अधिकारियों के लिए भी है. एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की इस लिस्ट में अधिकतर नाम पुरुष पुलिस अधिकारियों के हैं. लेकिन इस दौरान आशा गोपाल एकमात्र ऐसी महिला IPS अधिकारी थीं जिनकी एक दहाड़ से ही डक़ैत अपने इलाक़े छोड़ देते थे.
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प्रोफ़ेसर से IPS अधिकारी बनीं
आशा गोपाल ( Asha Gopal) का जन्म 14 सितंबर 1952 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ था. उनके पिता सरकारी कर्मचारी जबकि मां टीचर थीं. आशा ने अपनी स्कूली के बाद भोपाल के ‘मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय’ से वनस्पति विज्ञान में एमएससी की थी. इसके बाद उन्हें प्रोफ़ेसर की नौकरी मिल गई, लेकिन आशा का सपना UPSC क्लियर करके अधिकारी बनना था. इसलिए उन्होंने अपना पूरा ध्यान सिविल सर्विसेज़ की तैयारी में लगा लिया. आख़िरकार सन 1976 में UPSC क्लियर करके आशा मध्यप्रदेश कैडर की पहली IPS महिला अधिकारी बनीं.
IPS Asha Gopal
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क्या ख़ास बात है IPS आशा गोपाल की?
आईपीएस अधिकारी बनने के बाद आशा गोपाल को पहली पोस्टिंग मध्य प्रदेश के शिवपुरी ज़िले में मिली थी. किरण बेदी के बाद आशा गोपाल किसी ज़िले का स्वतंत्र प्रभार संभालने वाली दूसरी महिला आईपीएस अधिकारी थीं. आशा ने जब ये ज़िम्मेदारी संभाली तब देश में केवल 16 महिला पुलिस अधिकारी ही हुआ करती थीं. ये पहला मौका था जब मध्यप्रदेश के बीहड़ों से ख़तरनाक डक़ैतों को खदेड़ने के लिए गठित की गई विशेष टीम को एक महिला अधिकारी लीड कर रहीं थीं. (IPS Asha Gopal)
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शिवपुरी ज़िले में पोस्टिंग से डरते थे अधिकारी
आशा गोपाल ने 26 साल की उम्र में उस वक़्त मध्यप्रदेश के शिवपुरी ज़िले की कमान संभाली जब ये इलाक़ा डकैतों के आतंक के लिए मशहूर था. डाकुओं के गढ़ कहे जाने वाले शिवपुरी इलाके में तब दुर्दांत डाकू देवी सिंह का आतंक हुआ करता था. उस समय शायद ही देश का कोई पुलिस अधिकारी सपने में भी शिवपुरी में अपनी पोस्टिंग चाहता हो, लेकिन इतनी कम उम्र में आशा गोपाल ने बहादुरी दिखाते हुये शिवपुरी ज़िले की कमान संभाली. आशा गोपाल का ये कदम उन्हें रातों-रात सुर्खियों में ले आया था. ये पोस्टिंग उनके लिए किसी जंग से कम नहीं थी.
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डाकू देवी सिंह गैंग का किया ख़ात्मा
Indiatoday के मुताबिक़, आशा गोपाल को जब किसी मुख़बिर से डाकू देवी सिंह गैंग के शिवपुरी से 125 किमी पूर्व में राजपुर गांव की छुपे होने की जानकारी मिली. इसके बाद आशा तुरंत अपने 100 साथियों के साथ राजपुर गांव की ओर निकल पड़ीं. रात के अंधेरे में पुलिस ने उस गन्ने के खेत को घेर लिया, जिसमें डाकू देवी सिंह गैंग छिपा हुआ था. इस दौरान पुलिस ने रात भर इंतज़ार किया और फिर सुबह होते डक़ैतों को सरेंडर करने के लिए कह दिया, लेकिन डक़ैतों ने सरेंडर करने की बजाय गोलीबारी शुरू कर दी. इसके जवाब में पुलिस की ओर से भी फायरिंग की गई और इस एनकाउंटर में डकैत देवी सिंह सहित उसके 4 साथी मारे गये.
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1984 में मिला राष्ट्रपति पुलिस पदक
डकैत देवी सिंह के एनकाउंटर के बाद भी आशा गोपाल ने अपनी टीम के साथ मिलकर शिवपुरी ज़िले से डकैतों का आतंक हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया. आशा गोपाल को उनके इन्हीं कारनामों के लिए सन 1984 में ‘राष्ट्रपति पुलिस मेडल’ और ‘मेधावी सेवा मेडल’ से सम्मानित किया गया. इसके बाद उनकी पोस्टिंग जहां भी हुई, बदमाश उनके नाम से कांपने लगते थे. सन 1980 के दशक में मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध डकैत प्रभावित क्षेत्रों में कई कठिन पोस्टिंग को उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया. 24 साल तक मध्यप्रदेश पुलिस में अपनी सेवाएं प्रदान करने के बाद आशा गोपाल ने पुलिस महानिरीक्षक के रूप में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली.
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आशा गोपाल ने सन 1999 में एक जर्मन पुलिस अधिकारी क्लॉस वॉन डेर फ़िंक से शादी की. इसके बाद आशा और उनके पति ने भोपाल में ग़रीब और झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले अनाथ बच्चों के लिए ‘Nitya Seva’ नाम के एक NGO की स्थापना की. इसके वो अब ग़रीब बच्चों को छत, शिक्षा और पौष्टिक भोजन देने का नेक काम कर रहे हैं. (IPS Asha Gopal)
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