इतिहास की किताबों में हमने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में बहुत कुछ जाना-समझा है. नेताजी की दुर्लभ तस्वीरों में उनके शानदार व्यक्तित्व की झलक भी देखी है. इसलिये आज हम नेताजी के बारे में बात न करके उस महिला के बारे में बात करेंगे, जिसने हर क़दम पर सुभाष चंद्र बोस का साथ निभाया. यही वो महिला थी, जिसके लिये रेलवे को अपना नियम भी बदलना पड़ा.  

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हम बात कर रहे हैं बेला मित्रा की. 1920 में कोडालिया परिवार में जन्म लेने वाली बेला मित्रा नेताजी की भतीजी थीं. उन्हें बेला बोस के नाम से भी जाना जाता था. बेला बोस के पिता सुरेंद्र चंद्र बोस, नेताजी के बड़े भाई थे. कहा जाता है कि बेला और उनकी छोटी बहन इला अपने चाचा यानि नेताजी से काफ़ी प्रेरित थे. यही नहीं, 1941 में जब नेताजी नज़रबंद किये गये, तो उनकी भतीजी बेला ने उन्हें वहां से भगाने में अहम भूमिका अदा की. बेला बेहद कम उम्र में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गई थी.

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बेला नेताजी के उन क़रीबियों में थी, जिन्होंने हर पल उनका साथ दिया. नेताजी का साथ निभाने के लिये बेला ने 1940 में, रामगढ़ में कांग्रेस विधानसभा भी छोड़ दी थी. इसके बाद जब INA (भारतीय राष्ट्रीय सेना) का गठन किया गया, तो बेला ने ‘झांसी रानी’ ब्रिगेड की ज़िम्मेदारी संभाली. इस दौरान उन्हें INA की देख-रेख के लिये कोलकाता जाना पड़ा. वो अब नेशनलिस्ट ग्रुप के साथ-साथ रेडार कम्यूनिकेशन की प्रभारी भी बन चुकी थीं.  

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बेला के पति भी हरिदास मिश्रा भी एक क्रांतिकारी थे और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें भी जेल में डाल दिया गया था. आज़ादी के बाद बाक़ी क्रांतकारियों के साथ हरिदास मिश्रा रिहा कर दिये गये थे. इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गये और विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी संभाल ली. इधर नेताजी की भतीजी ने राजनीति से दूर रहने का निर्णय लिया.  

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बेला राजीनित का हिस्सा नहीं बनीं, लेकिन लगातार विभाजन से पीड़ित लोगों की मदद कर रही थीं. उन्होंने 1947 में ‘झांसी रानी रिलीफ़ टीम’ नामक एक सामाजिक संगठन का घटन भी किया था. ये संगठन पश्चिम बंगाल में बसे शरणार्थियों के लिये बनाया गया था. बेला उन समाजसेविकाओं में थीं, जो अंतिम समय तक बेघरों की सहायता करती रहीं.  

समाज के प्रति उनके सेवाभाव को देखते हुए रेलवे ने हावड़ा ज़िले के एक स्टेशन का नाम ‘बेला नगर रेलवे स्टेशन’ रख दिया. ये सम्मान हासिल करने वाली वो इतिहास की पहली महिला थीं.