Kamla Bai’s Inspiring Story: शिक्षा हर एक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. एक शिक्षित व्यक्ति समाज को बदलने की ताकत रखता है. लेकिन भारत में आज भी ऐसी कुछ जगहें हैं, जहां शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता है. आज भी लोग बेटियों को पढ़ाने से कतराते हैं. इसलिए तो सरकार और सामाजिक कार्यकर्ता बेटियों को पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं.

एक ऐसी ही महिला हैं मध्य प्रदेश के झांझर गांव में रहने वाली कमला बाई (Kamla Bai). जो खुद 5वीं पास होकर भी गांव की लड़कियों को शिक्षित करने का बिड़ा उठाई हैं. आज हम इनकी इंस्पायरिंग स्टोरी बताने जा रहे हैं.

महिला दिवस यानि Womens Day के मौक़े पर शुरू हमारे #DearMentor  कैंपेन चला के ज़रिए चलिए जानते हैं बुरहानपुर की सरपंच कमला बाई की कहानी-

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चलिए जानतें हैं कैसे उठाया कमला बाई ने गांव की बेटियों को पढ़ाने का जिम्मा-

बुहरानपुर (मध्य प्रदेश) के आदिवासी झांझर गांव में समाज के रूढ़िवादी सोच के कारण महिलाएं 5वीं कक्षा से ज़्यादा पढ़ नहीं पाती थीं. लेकिन ऐसा ना हो इसलिए कमला देवी ने इस कुप्रथा को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया. उन्होंने अकेले ही आदिवासी समाज में ‘शिक्षा’ को एक नई पहचान दी. इसी वजह से आज उस गांव की 50 लड़कियां पढ़ने के लिए स्कूल और कॉलेज तक जाती हैं.

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कमला बाई ने खुद 5वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी

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‘एक कलम से दुनिया बदली जा सकती है’. इसी सोच की साथ कमला बाई ने अपने गांव में बदलाव लाने का सोचा. कमला बाई खुद सिर्फ़ 5वीं कक्षा तक पढ़ पाई. क्योंकि बाद में उनकी शादी करा दी गई. जिसकी वजह से वो आगे पढ़ नहीं पाई. लेकिन उन्होंने अपने सपने दूसरों के ज़रिये पूरे किये. इस गांव में क़रीबन 10 साल पहले तक लड़कियों को घर के काम-काज में लगा दिया जाता था. उन्हें पढ़ने की आज़ादी नहीं दी जाती थी और उनकी शादी करा दी जाती थी.

गांव के हर एक घर में लोगों को किया जागरूक

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कमला ने इस बदलाव की शुरुआत 2015 से की. जहां वो गांव के हर एक घर जाकर लोगों को शिक्षा का महत्व बताती थीं. लेकिन गांव में शिक्षा का स्तर इतना ज़्यादा ख़राब था कि लोग उनकी बात सुनते ही नहीं थे. इसी कारण उन्होंने शुरुआत अपने घर से की और अपने परिवार को शिक्षा का महत्व समझाया और अपनी दोनों बेटियों को स्कूल भेजना शुरू किया. इसका असर दिखा और गांव के लोग उनकी बातें मानने लगे.

50 से ज़्यादा लड़कियां अब स्कूल जाती हैं

कमला ने बताया, ” बेटियों के ख़िलाफ़ इस रूढ़िवादी सोच के कारण मेरे माता-पिता ने भी मुझे सिर्फ़ 5वीं कक्षा तक पढ़ाया और बाद में मेरी शादी करा दी गई.”

आज गांव में 50 से ज़्यादा लड़कियां स्कूल जाती हैं. धीरे-धीरे गांव में सबने शिक्षा का महत्व समझ लिया है. साथ ही कमला बाई 2005 में इस गांव की उप-सरपंच रहीं. बाद में उनके अटल साहस और सक्रियता ने उन्हें गांव का सरपंच बना दिया. इस बदलाव में उनके पति ने उनका बहुत साथ दिया था. इसी वजह से अकेली महिला ने गांव में शिक्षा का स्तर बढ़ा दिया और आज भी वो बेटियों को पढ़ाने के लिए काम कर रही हैं.

बदलाव एक व्यक्ति से लाया जा सकता है. ये कमला बाई ने बख़ूबी साबित कर दिया.