जब वो बेघर हुई, तब वो इतनी छोटी थी कि ये भी नहीं समझ पायी कि बेघर हो जाने का मतलब क्या होता है. कश्यप नेहा पंडित अपने परिवार के साथ कश्मीर के शोपियां ज़िले से चली आई थी. आतंकवादी हमलों से बचने के लिए उन्हें ये कदम उठाना पड़ा था.

जम्मू के झिरी इलाक़े में वो टेंट में रही, किसी तरह एक कमरे में गुज़ारा किया और संघर्ष करते हुए सफ़लता की कहानी लिखी.

27 वर्षीय नेहा ने पांच लोगों के परिवार में बुरे हालातों में बचपन गुज़ारा. अब उसके पास ऑर्गनिक केमिस्ट्री में स्नातकोत्तर की डिग्री और एजुकेशन में स्नातक की डिग्री है. अब वो Kashmir Administrative Service (KAS) का एग्ज़ाम भी क्रैक कर चुकी है.

1992 में वो अपने परिवार के साथ शोपियां से आई थी. उनका परिवार सरकार द्वारा दिए जाने वाले राशन और पैसों से गुज़ारा करते थे. उसके अंकल रतन लाल और भाई डॉक्टर विरेश कश्यप ने उसे प्रेरित किया और वो यहां तक पहुंची.

उसने पहले प्रयास के समय एक महीना कोचिंग की थी, लेकिन इस बार उसने बिना किसी कोचिंग के ही ये एग्ज़ाम निकाला. मेरिट लिस्ट में उसका नाम चौथे नंबर पर आया है.

प्रीलिम्स में नेहा ने जीव विज्ञान (zoology) विषय लिया था और Mains में जीव विज्ञान और एंथ्रोपोलॉजी. 2011 में उनके परिवार को बाकि कश्मीरी पंडितों की तरह फ़्लैट दिया गया था. शोपियां District Treasury में उन्होंने अकाउंट असिस्टैंट के तौर पर भी काम किया है. ये नौकरी उन्हें कश्मीरी पंडितों के लिए आई ख़ास योजना के तहत मिली थी.

नेहा बताती हैं कि उन्होंने इस एग्ज़ाम के लिए 12 से 14 घंटे भी पढ़ाई की है. वो चाहती हैं कि सभी माता-पिता अपने बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें.