Padma Awards 2022: भारत ने बीते 26 जनवरी को अपना 73वां गणतंत्र दिवस मनाया. इस दौरान शाम को 128 लोगों को पद्म पुरस्कारों (Padma Awards 2022) से सम्मानित किया गया. इनमें 4 पद्म विभूषण, 17 पद्म भूषण और 107 पद्मश्री पुरस्कार दिए गए. इन्हीं विजेताओं में से एक थीं, मणिपुर की रहने वाली मोइरांगथेम मुक्तामणि देवी (Moirangthem Muktamani Devi), जो काकचिंग, मणिपुर की रहने वाली हैं. पद्मश्री पुरस्कार तक पहुंचना उनके लिए सपने जैसा होगा, लेकिन ये सपना पूरा होना आसान नहीं था.

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Padma Awards 2022:

इस सपने को पूरा करने में मुक्तामणि ने बहुत कठिन संघर्ष किया है, तो चलिए जानते हैं एक मां से बिज़नेसवुमेन बनीं मुक्तामणि देवी के बारे में, जिन्होंने पद्मश्री पुरस्कार (Padma Awards 2022) अपने नाम किया है.

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कौन है मुक्तामणि देवी?

मुक्तामणि देवी वो महिला हैं, जिन्होंने जीवन की कठिनाइयों को बचपन से झेला, लेकिन हार नहीं मानी. Book of Achievers में छपे एक आर्टिकल के अनुसार,

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इनका उनका जन्म दिसंबर 1958 में मणिपुर में हुआ था. इनकी मां विधवा थीं और उन्होंने अकेले इनको पाल-पोसकर बड़ा किया. मुक्तामणि की शादी महज़ 16-17 साल की उम्र में हो गई थी. इनके चार बच्चे हैं और अपने परिवार को चलाने के लिए मुक्तामणि देवी कई काम करती थीं. इसके चलते, दिन में धान के खेत में काम करतीं तो शाम को सब्ज़ियां बेचतीं इसके बाद रात में झोले और हेयरबैंड्स बनाती थीं. 
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कैसे बनीं मुक्ता शूज़ कंपनी?

दरअसल, एक बार मुक्तामणि देवी की दूसरी बेटी के जूते का सोल फट गया तो उन्होंने उसे ऊन के सोल बनाकर दिए और वो वही जूते पहनकर स्कूल गई, लेकिन वो उन जूतों को स्कूल पहनकर जाने में डर रही थी कहीं टीचर डांट न दें. अगले दिन जब वो स्कूल गई तो टीचर ने उसे पास बुलाकर पूछा की ये जूते किसने बनाए, उन्हें भी एक जोड़ी चाहिए. बस इसी एक घटना ने मुक्तामणि देवी की पूरी ज़िंदगी बदल दी.

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फिर 1990-91 में मुक्तामणि देवी ने अपने नाम पर मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री बनाई और कंपनी के प्रोडक्ट्स का प्रमोशन एग्ज़ीबीशन और ट्रेड फ़ेयर्स के ज़रिए किया. इनकी मेहनत रंग ला रही थी लोगों को उनके डिज़ाइन कुछ ही समय में पसंद आने लगे और उनकी मांग बढ़ने लगी. आज मुक्तामणि देवी हज़ार से ज़्यादा लोगों को जूते बुनना सीखा चुकी हैं. इनकी कंपनी में हर उम्र के लोगों के लिए जूते बनाए जाते हैं और इनके जूते ऑस्ट्रेलिया, यूके, मेक्सिको और अफ़्रीकी देशों में एक्सपोर्ट किए जाते हैं.

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हालांकि, हम सब जानते हैं कि हमारे समाज में महिलाओं को चूल्हे के आगे खटते देखकर किसी को तकलीफ़ नहीं होती, लेकिन जैसे ही वो दहलीज़ लांघती है सबको तकलीफ़ होने लगती है. ऐसा ही कुछ मुक्तामणि देवी ने भी सहा, मगर उनके पक्के इरादों ने उन्हें मंज़िल की तरफ़ बढ़ने से नहीं रोका. बिज़नेस से जुड़ी दिक़्क़तें और परिवार के संघर्ष का मुक्तामणि ने पूरे साहस के साथ सामना किया और अपनी मुक्ता शूज़ को सफ़लता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया. आज इनकी कंपनी के शूज़ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पहने जा रहे हैं. मुक्ता शूज़ की ख़ासियत ये है कि, पैरों को आराम देने के साथ-साथ धोने में भी आसान है.

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30 Stades से बात-चीत के दौरान उन्होंने अपने जूतों के बनाने से लेकर उन्हें बेचने तक के बारे में पूरे विस्तार से बताया, उन्होंने कहा,

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जूते बनाना आसान काम नहीं है. एक जोड़ी जूते को बनाने में लगभग तीन दिन लग जाते हैं. हम लोग जूते बनाने के लिए ऊन स्थानीय बाज़ारों या फिर इम्फ़ाल से मंगाते हैं. हालांकि, मुझे स्थानीय बाज़ारों में मिलने वाली ऊन की क्वालिटी अच्छी नहीं लगती है.  ऊन मंगाकर जूते बुनते हैं, लेकिन मेरा बजट मुझे कोलकाता या फिर गुवाहाटी से ऊन या सोल मंगाने की इजाज़त नहीं देता. ऐसा करने से हमें जूतों के दाम बढ़ाने पड़ेंगे.

-मुक्तामिणि देवी

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कई लोग मिलकर बनाते हैं जूते?

जूतों के डिज़ाइन की पूरी ज़िम्मेदारी मुक्तामणि देवी ही संभालती है. बाकी कामों को कई पुरूष और महिलाएं मिलकर करती हैं, जैसे पुरूष जूतों के सोल बनाते हैं तो महिलाएं बुनाई करती हैं. एक कारीगर एक दिन में कम से कम 100 से 150 सोल बनाता है और उन्हें एक सोल का 50 रुपये दिया जाता है. वहीं, महिलाओं को एक जूता बुनने पर 30 से 35 रुपये मिलते हैं.

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मुक्तामणि देवी के बेटे क्षेत्रीमायूम देवदत्त सिंह ने बताया,

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बुनाई करने में सबसे ज़्यादा समय और मेहनत लगती है. हम एक महिला को एक जूता बुनने का एक दिन का 500 रुपये देते हैं. हमारी कंपनी एक दिन में 10 जूते तैयार कर लेती है. हमने बदलते वक़्त के साथ जूतों के दाम और डिज़ाइन दोनों में बहुत बदलाव किए हैं. इसके चलते, पहले एक जोड़ी जूता 200 से 800 रुपये के बीच बिकता था अब वही जूता 1000 रुपये का कर दिया है.

-क्षेत्रीमायूम देवदत्त सिंह

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आपको बता दें, मुक्तादेवी मणि मिलाओं को अपने घर पर फ़्री में बुनाई सिखाती है. कभी-कभी वो कारीगर को अपने पास रख लतेी हैं नहीं तो कारीगर को अपना काम शुरू करने की भी इजाज़त होती है. इसके अलावा, कुछ कारीगरों को सरकार भी 10,000 रुपये का स्टाइपेन्ड दे देती है. मुक्तामणि देवी ने ख़ुद काम किया और बुलंदियों को छुआ ये तो तारीफ़ की बात है, लेकिन वो अपने साथ-साथ सैंकड़ों लोगों को भी लायक बना रही हैं ये बहुत नेक काम है.