Sujatha Kanthan Empowering The Lives Of The Disabled: तमिलनाडु में 15 लाख से अधिक दिव्यांग लोग रहते हैं, इनके कल्याण के लिए राज्य सरकार 82 विकलांग कल्याणकारी योजनाएं चला रही है.
मगर इनका फ़ायदा उठाने के लिए दिव्यांग लोगों को फ़ॉर्म भरना होता है और विकलांगता का सर्टिफिकेट बनवा कर रजिस्ट्रेशन भी करना होता है. दिव्यांग लोगों के लिए ये करना आसान नहीं होता क्योंकि इनमें से अधिकतर कम पढ़े लिखे और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले होते हैं.
ऐसे लोगों के लिए आशा की किरण हैं सुजाता कंथन (Sujatha Kanthan), जो स्वयं दिव्यांग होते हुए भी राज्य के दिव्यांग लोगों को हर संभव मदद करने के लिए एक संगठन चलाती हैं. हमारी आज की #DearMentor की कड़ी में हम सुजाता जी की कहानी आपके लिए लेकर आए हैं. इनके बारे में जान आप भी इन्हें सैल्यूट करते नज़र आएंगे.
ये भी पढ़ें: Viji Penkoottu: केरल की महिला दर्जी जो ‘Saleswomen’ की Rights के लिए लड़ीं, पढ़िए उनकी कहानी
सुजाता अक्का के नाम से हैं मशहूर
तमिलनाडु (Tamil Nadu) में सुजाता अक्का के नाम से फ़ेमस हैं सुजाता जी जो दिव्यांग लोगों के अधिकारों की पैरोकार हैं. उन्होंने राज्य के हज़ारों दिव्यांगों को सरकारी और गैर-सरकारी मदद दिलवाकर उनकी ज़िंदगी आसान करने का काम किया है. इनमें से अधिकतर महिलाएं हैं और आज वो अपने पैरों पर भी खड़ी हैं.
ये भी पढ़ें: सुदामा वृद्धाश्रम, जहां 22 बुज़ुर्गों को एक मां की तरह संभालती हैं 30 साल की आशा राजपुरोहित
बचपन में हो गई थीं दिव्यांग
वो Development Forum for Women with Disability नामक ट्रस्ट की संस्थापक भी हैं. इस ट्रस्ट के ज़रिये वो दिव्यांग लोगों का जीवन रौशन कर रही हैं. मगर उनके लिए ये सब करना आसान नहीं था. जब उनका जन्म हुआ था तो सुजाता हेल्दी थीं, लेकिन 1.5 साल की उम्र में वो पोलियो की शिकार हो गईं. उनके माता-पिता ने चेन्नई के थाउज़ेंड लाइट, क्रीम्स रोड में रहते थे. बेटी के इलाज के लिए उन्होंने हर बड़े अस्पताल का दरवाज़ा खटखटाया. मगर उनका पैर सही न हो सका.
स्कूल में हुईं भेदभाव की शिकार
जब वो स्कूल जाने लगी तो उनके लिए स्पेशल शू बनवाए गए जिनकी मदद से वो चल सके. लेकिन स्कूल में उन्हें दूसरे छात्रों से अलग बैठना पड़ता था. यहां छात्रों ने उनके साथ काफ़ी भेदभाव भी किया. दिव्यांग होने के कारण उन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. 10वीं तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया. बड़े होने पर उन्होंने कई जगह काम किया ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें. सेल्स गर्ल से लेकर दुकान में काम करने तक.
पीसीओ चलाते समय मिली दिव्यांग लोगों की मदद करने की प्रेरणा
कुछ समय बाद वो एक PCO चलाने लगीं. पीसीओ चलाते समय उन्हें बहुत सारे ऐसे दिव्यांग मिले जिन्हें सरकार से मिलने वाली उनके लिए रियायतों का पता ही न था. वो जानते ही नहीं थे कि उनके क्या अधिकार हैं. तभी उन्होंने तय किया कि वो ऐसे लोगों की मदद करेंगी और उनके हक़ के लिए लड़ेंगी. वो जिस भी दिव्यांग से मिलती उसे सरकारी योजनाओं के बारे में बताती और ख़ुद उनका फ़ार्म भर उन्हें पेंशन, व्हीलचेयर आदि दिलाने का काम करतीं.
कोरोना काल में भी की लोगों की मदद
इसके लिए वो स्वयं ही उनका फ़ार्म तहसील और कलेक्टर ऑफ़िस तक पहुंचाती थीं. इतना ही नहीं पेंशन के पैसे निकवालने के लिए सुजाता जी उनके साथ बैंक भी जाती. इस तरह उन्होंने अपने आस-पास के बहुत सारे दिव्यांगों की हेल्प की. कोरोना काल के दौरान छोटी दुकान और स्टॉल चलाने वाले बहुत सारे दिव्यांगों का काम ठप हो गया. तब सुजाता जी ने कई NGO की खोज कर उन्हें आर्थिक सहायता दिलाई और उनका काम फिर शुरू करवाने में हेल्प की.
ग़रीब बच्चों की शिक्षा के लिए भी लड़ रही हैं
यही नहीं अपने दम पर वो लगभग 10 दिव्यांग छात्रों को 2 लाख रुपये की स्कॉलरशिप भी दिलवाने में कामयाब रहीं. आज उनके ट्रस्ट से क़रीब 400 दिव्यांग जुड़े हैं. वो अपने दूसरे साथियों के साथ मिलकर राज्य के ग़रीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार (RTE) के तहत मिलने वाली मुफ़्त शिक्षा दिलाने में भी हेल्प कर रही हैं.
डटकर किया बाधाओं का सामना
सुजाता जी ने इस दौरान आई बहुत सी बाधाओं का डटकर सामना किया. कभी अपनी दिव्यांगता को भी लोगों की भलाई के कार्य में बाधा नहीं बनने दिया. उन्होंने टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल करना सीखा. सुजाता जी ने Google Docs, Drive, Meet का प्रयोग करना सीखा. इसके ज़रिये लोगों के साथ मीटिंग और अन्य दस्तावेज बनाकर उनकी सहायता करनी शुरू की.
इन सबके साथ ही सुजाता जी तमिलनाडु के दिहाड़ी मज़दूरों को भी सरकारी योजनाओं के बारे में बता रही हैं. साथ ही ऐसे लोगों को भी तैयार कर रही हैं जो इन सबको हासिल करने में दूसरे लोगों की मदद कर सके.
अगर सुजाता कंथन जी जैसे लोग हर राज्य में हो जाएं तो कितने ही ग़रीब-वंचितों को जीवन ख़ुशहाल हो जाए.