Cardiology मेडिकल फ़ील्ड का बहुत ही जटिल क्षेत्र है. इसमें अधिकतर पुरुष डॉक्टर ही काम करते नज़र आते हैं. लेकिन आज हम आपको ऐसी महिला से मिलवाएंगे जो न सिर्फ़ देश की पहली, बल्कि सबसे उम्रदराज महिला कार्डियोलॉजिस्ट है. इनका नाम है डॉ. शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती जो 103 साल की उम्र में भी दिल के मरीज़ों का इलाज कर रही हैं.
डॉ. शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती को कार्डियोलॉजी की फ़ील्ड का लेजेंड कहा जाता है. इन्होंने ही 1981 में दिल्ली के National Heart Institute की स्थापना की थी. वहां से रिटायर होने के बाद भी वो लगातार अपने गंभीर मरीज़ों को देखने अस्पताल जाती थीं.
आजकल भी वो सप्ताह में एक या दो बार गंभीर मरीज़ों को देखने अस्पताल जाती हैं. इतने लंबे समय तक हेल्दी रहने और याददाश्त तेज़ होने का सीक्रेट भी इन्होंने लोगों से शेयर किया है. डॉ. पद्मावती कहती हैं- ‘मेरी मां भी 104 साल तक जीवित थीं, मैं उनके द्वारा अपनाया गया हेल्दी लाइफ़स्टाइल ही आज भी अपना रही हूं. याद रखिए हम भी कुदरत का ही हिस्सा हैं.’
इतनी बुज़ुर्ग होने के बाद भी उनके अंदर कमाल की फुर्ती है. वो किसी जवान इंसान की तरह हमेशा ऊर्जा से भरपूर नज़र आती हैं. उनके सहयोगी डॉ. विनोद दुआ ने बताया कि 90 के दशक में वो रात-रात भर जाग कर उनके साथ काम किया करती थीं. साथ में रिसर्च पेपर भी लिखती थीं.
डॉ. पद्मावती का जन्म 20 जून 1917 को बर्मा(म्यांमार) में हुआ था. उन्होंने रंगून मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली थी. 1949 में जापानियों के हमले के बाद वो वहां से भारत चली आईं. उसी साल वो लंदन चली गई. यहां उन्होंने Royal College Of Physicians से मेडिकल की आगे की पढ़ाई जारी रखी.
उन दिनों कार्डियोलॉजी को अलग से पढ़ाया नहीं जाता था. लेकिन उन्हें इसमें काफ़ी इंटरेस्ट था. इसलिए डॉ. पद्मावती ने Johns Hopkins University से कार्डियोलॉजी की पढ़ाई शुरू कर दी. उन्होंने यहां Dr. Helen Taussig के साथ मिलकर हृदय की कई बीमारियों से पीड़ित बच्चों का इलाज किया.
1952 में इन्होंने Harvard Medical School में काम करना शुरू कर दिया. यहां वो Dr. Paul Dudley White जिन्हें आधुनिक कार्डियोलॉजी का जनक माना जाता है उनके साथ काम किया. 1953 में वो भारत आ गईं और दिल्ली के Lady Hardinge Medical College में बतौर लेक्चरार काम करने लगीं. कुछ दिनों बाद उन्हें प्रमोट कर प्रोफ़ेसर बना दिया गया.
डॉ. पद्मवाती ने इसके बाद Rockefeller Foundation की मदद से देश की पहली Cardiac Catheterization Lab की स्थापना की. यहां पहले सिर्फ़ महिलाओं का ही इलाज किया जाता था, लेकिन इसके प्रसिद्ध होने के बाद पुरुषों का भी इलाज यहां किया जाने लगा. 1965 में इन्हें Cardiological Society of India का अध्यक्ष भी चुना गया था.
देश की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. पद्मावती को इस क्षेत्र में किए गए अतुलनीय कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया है. उन्हें 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था. डॉ. पद्मावती आज भी दिल के मरीज़ों का इलाज करने के लिए तत्पर हैं.
लेकिन उन्हें एक ही बात का मलाल है. वो कहती हैं- ‘मुझे इस बात का ख़ेद है कि मैं उच्च अधिकारियों को चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के मानकीकरण के लिए राज़ी नहीं कर पाई. ताकि ये आम लोगों के लिए भी सुलभ और सस्ती हो जाए.’
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